“घर का मर्द” – अंजु अनंत

गंगा जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती हुई शांति कुंज की तरफ बढ़ रही थी, आज उसे फिर से देर हो गई थी काम पर जाने में। दोनों बच्चों को स्कूल भेजकर खुद काम के लिए निकलती है, उसका पति बुधराम शराबी है। काम-धाम करता नहीं है, इसी कारण गंगा को लोगों के घरों में काम करना पड़ता है।

वैसे गंगा का पति शराबी जरूर है, लेकिन गंगा को मानता भी बहुत है, क्योंकि उसके खर्च के पैसे गंगा ही देती है। कभी-कभी दारू के नशे में वो गंगा पर हावी भी हो जाता है पर नशा उतरते ही हाथ पांव जोड़ने लगता है।

शांति कुंज की मैडम उर्मिला गंगा के आते ही भड़क गई – “तुम्हारा तो रोज का नाटक हो गया है गंगा देर से आने का! देखो कितना काम पड़ा है।

अब जल्दी से काम पर लग जाओ|

“”हाओ ना मैडम, आप नाराज़ मत होइए, मैं अभी सारा काम निपटा देगी”

“वाह बोल तो ऐसे रही हो जैसे अलादीन का जिन्न हो तुम्हारे पास, ऑर्डर दोगी और काम हो जाएगा” उर्मिला ने भी तुनक कर जवाब दिया।

“अरे मैडम मेरे सामने अलादीन का जिन्न भी फेल है, देखो कैसे यूँ (चुटकी बजाते हुए) काम निपटाती हूँ”

गंगा की बात सुन के उर्मिला के चेहरे पर हँसी आ गई। वैसे उर्मिला भी गंगा को बहुत मानती है, बस कभी-कभी गंगा की देर होने की आदत की वजह से वो झुँझला जाती है।

“अरे वाह गंगा तुम तो सच में अलादीन के जिन्न से भी ज्यादा फ़ास्ट निकली, वेरी गुड”

“अरे मैडम, मेरी काम की तारीफ तो सारी कॉलोनी करती है। मेरे तो मोहल्ले वाले भी कहते हैं कि ये तो “घर का मर्द” है।”



“ओह घर का मर्द क्यों??” उर्मिला ने आश्चर्य से पूछा।

“वो क्या है ना मैडम, घर का खर्चा मैं चलाती हूँ, बाहर का काम भी मैं ही देखती हूं। बच्चों को स्कूल छोड़ना, उनकी फीस भरना, सब्जी भाजी लाना, हाली बीमारी देखना। सब काम मैं ही करती है। मेरा मर्द तो पी के टुन्न रहता है।”

“तब तो तुम्हें कितनी तकलीफ होती होगी ना, अकेले इतना सब कुछ कैसे कर लेती हो?”

“नहीं मैडम, अब तो आदत हो गया है। अगर मैं पढ़ी लिखी होती तो शायद इस काम से ज्यादा अच्छा काम पकड़ी होती। लेकिन माँ बाप ने पढ़ाया ही नहीं। लेकिन अच्छा है अपने पैरों पर तो खड़ी हूँ। किसी के सामने हाथ फैलाने से अच्छा है, खुद इज्जत का कमाओ खाओ।

वैसे मेडम आप भी तो इतना पढ़ी लिखी हो, आप कोई काम क्यों नहीं करती? आपको तो कितना नौकरी मिल जाएगा”

गंगा की बात सुन के उर्मिला ने गर्व से कहा “मुझे क्या जरूरत है कमाने की। सारी सुख सुविधा है मेरे पास। मेरे पति मेरे लिए ही तो कमाते हैं और वैसे भी मुझे कोई शौक नहीं है घर का मर्द बनने का, मैं घर की औरत ही सही हूँ”

दोनो खिलखिला कर हँस देती हैं।

(शाम को)

“मेडम कही जा रही क्या आप?” गंगा ने उर्मिला को सजी-धजी देख कर पूछा””हाँ, मेरी एक सहेली की बेटी का जन्मदिन है, उसी के लिए रेडी हुई हूँ|

अच्छा सुनो, तुम साहब के आने के बाद चली जाना।”

“जी मैडम”

उर्मिला के निकलने से पहले ही उसका पति मयूर आ जाता है।



“कहाँ जा रही हो?”

“जी वो पारुल की बेटी का जन्मदिन है, उसी में जा रही”

उर्मिला की बात सुन के मयूर उसे जोर से थप्पड़ मारता है

-“मुझसे बिना पूछे तुम्हारी जाने की हिम्मत कैसे हुई?

कहा था न मैंने मेरी मर्ज़ी के खिलाफ जाओगी तो अच्छा नहीं होगा। आज के बाद मुझसे बिना पूछे कहीं भी जाने का प्लान बनाया न तूने तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा”

उर्मिला चुप-चाप अपने आंसू पोछने लगी तभी दरवाजे पर घंटी बजी,

गंगा का पति नशे में लड़खड़ाते हुए अंदर आया – “तू अभी तक यहीं है? साली चल घर तुझे बहुत शौक है ना रात में घर से बाहर रहने का, चल अभी बताता हूं तुझे”

आगे कुछ बोलता उससे पहले ही गंगा ने जोर का थप्पड़ बुधराम के गाल पर जमाया- “साले तू मुझे सिखाएगा। मेरी कमाई खाने वाला, तेरे बाप का खाती हूँ क्या रे मैं। चल घर तेरी तबीयत से पिटाई नहीं की ना आज तो मेरा नाम भी गंगा नहीं|

जाती हूँ मैडम, सुबह आऊँगी… टाइम पर”

उर्मिला अपनी अलमारी खोलकर अपने सर्टिफिकेट निकाल रही है।

अब समय आ गया है अपने पैरों पर खड़ा होने का।

घर का मर्द बनने का।

स्वरचित रचना

Anju Anant

1 thought on ““घर का मर्द” – अंजु अनंत”

  1. Yes, if one is literate, them woman must stand on her feet.
    Urmila had to face her husband who slapped her without any reason and out of pride which souls the relations in family.
    On the other hand a maid slapped his drunkard husband because he forgets his duties.Nice experience.

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