नीम की छांव – वंदना चौहान

ट्रीन, ट्रीन , ओह!  डोर वेल , आई बाबा ।

गेट खुलते ही रमन का गले में बाहें डाल कर,” आई हैव अ सरप्राइज फॉर यू।”

 क्या बात है ?

पापा, पापा पहले हम सुनेंगे सरप्राइज।

 दोनों बच्चे अपना-अपना गेम छोड़कर दौड़ते हुए गेट पर आ गए ।

हाँ,हाँ सब को एक साथ बताऊँगा, चलो चलो, सब अंदर चलो।

 अंदर आकर , तो सुनो, 

 इस वेकेशन हम सब शिमला चलेंगे। ये रहीं चारों टिकट।

 ओ वाओ ! शिमला, दीया और शिखर खुशी से उछलने लगे।  बहुत मजा आएगा वहाँ।

 क्या हुआ ? तुम्हें खुशी नहीं हुई ।

मेरी तरफ इशारा करके रमन ने पूछा ।


 आपको टिकट बुक करने से पहले पूछ तो लेना चाहिए था ।

मतलब तुम खुश नहीं हो ।

नहीं, ऐसी बात नहीं, आप ही तो कह रहे थे इस बार पैसे की शॉर्टेज है। जब से कोविड आया कहीं नहीं गए।  इस बार मेरा मन अपने मायके जाने को था और मैंने अपनी फ्रेंडस से भी बात कर ली थी, आज आपको बताती तब तक आप ।

अरे यार, क्या करोगी मायके जाकर, अगले साल चली जाना, रखा ही क्या है तुम्हारे मायके में। टूरिस्ट प्लेस की टिकट देखकर भी खुश नहीं हो ।हम सब मिलकर नई-नई जगह देखेंगे और मौज मस्ती करेंगे। जस्ट चिल।

क्या कहा आपने? रखा ही क्या है मेरे मायके में।  आप क्या जानो?

चार साल हो गए मुझे अपनी माँ के घर गए।

 ‘मायका’  ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही मन ताजे फूलों की खुशबू से भर स्मृतियों के किसी गहन गह्वर में विचरण करने लगता है, चिड़िया-सा चहकने लगता है ऐसा लगता है जैसे जल्दी से उड़कर पहुँच जाऊँ और हर एक चीज को सीने से लगाकर कहूँ , “मेरा जिस्म वहाँ पर मेरी जान यहाँ बसती है, गलियों में, छतों पर, मुँडेर पर ,नीम के नीचे ,पीपल की छाँव में ……..हर जगह।

 ओ यार, तुम तो सेंटी हो गईं ।

सेंटी क्यों न होऊँ,  छोटे भाई का फोन आया था बोल रहा था  कि दीदी इस बार थोड़ा ज्यादा दिनों के लिए आना ।  कोविड के कारण आप कई सालों से घर नहीं आ पाईं ।

 मम्मी आपके बचपन का नन्हा-सा गिलास, छोटा खटोला व आपकी पलकिया (छोटे बच्चों के लिए बुना छोटा-सा पलंग ) को देख कर कई दिनों से रो रही हैं ।

इतना कहते-कहते रागिनी की आँखों  से झर- झर आँसू बहने लगे।

 यह देख कर दीया एवं शिखर दौड़कर मम्मा के पास पहुँच गए ।

चुप हो जाओ मम्मा । 

 पप्पा, हमें भी नानी के घर जाना है। बहुत मजा आता है वहाँ और अब तो मेरे साथ खेलने को मामा की बिटिया आरना भी बड़ी हो गई है ।  रोज जब भी कॉल करती है मम्मी से कहती है बुआ जी आ जाओ ,बुआ जी आ जाओ । हम लोगों से भी कहती है दीदी-भैया आ जाओ, आ जाओ और केशी मौसी के घर भी जाएँगे अंगूर की बेलें और ढेर सारे फलों के पेड़ हैं उनके बगीचे में।  हम सब मिलकर वहाँ खूब धमाल मचायेंगे।  मम्मा अब आप खुश हो जाओ ।

नहीं बच्चों, परेशान मत हो मैं कुछ विचार करता हूँ । अगर तुम्हारा प्लान पहले पता होता तो शायद कन्फ्यूजन न  होता ।

ओके, अब सब खुश हो जाओ, हम दोनों ही जगह घूमने जाएँगे रमन ने कहा ।

यह सुनकर सब खुशी से नाचने लगे। शिमला का ट्रिप खत्म कर रागिनी ने अपने मायके फोन किया , “मम्मी मैं आ रही हूँ तीन दिन के लिए अगली बार ज्यादा दिन के लिए आऊँगी ।

चल कोई बात नहीं, कुछ दिन ही सही , जल्दी आ मेरी लाडो, मेरी आँखें तरस रही हैं तुम सब को देखने के लिए।


 हाँ माँ , इंतजार की घड़ियाँ खत्म।

 नियत दिन रागिनी अपने मायके के लिए रवाना हो गई । 

रास्ते की हर चीजों से अपनी यादें बातें ताजा करती हुई जब वह अपने माँ के घर पहुँची तो देखा उसकी माँ,पापा, दोनों ताई और भाभी सब इंतजार में दरवाजे पर खड़े हैं । 

भतीजे-भतीजी सब सड़क पर  आकर बुआ आ गईं, बुआ आ गईं  चिल्ला रहे हैं ।

 उन सब की खुशी देख उन सबका हृदय गदगद हो उठा ।

दामाद जी की आवाभगत होने लगी। बच्चे भाई बहनों के साथ धमाचौकड़ी मचाने लगे ।

रागिनी के चेहरे की खिलखिलाहट देख रमन ने कहा कि अब तो खुश हो ।

हाँ बिल्कुल, एक बेटी के लिए दुनिया का सबसे बड़ा टूरिस्ट प्लेस उसका ‘मायका घर’ ही होता है ।

इतना कह उसने अपनी माँ को गले लगा लिया ।

 

 

स्वरचित/मौलिक

 वंदना चौहान 

 

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