शशि और कांता की उम्र मैं ज्यादा फासला तो नही दिखता था , होगा यही कोई दस बारह साल का अंतर अंदाजन , स्वभाव मैं बिलकुल विपरीत थी दोनो ,कोई नही जानता था क्या रिश्ता था दोनो का पर जिसने भी उन्हे यहां देखा एक दूसरे के आसपास ही देखा ।
शांति से हर कोई डरता था बदनाम गलियों के सबसे बड़े कोठे की मालकिन जो थी, एक से बढ़ कर एक चौकस लड़कियां थी उसके कोठे पर , मजाल है कोई लड़की आजतक उसके चंगुल से आजाद हुई हो वैसे इसकी वजह शांति कम कांता ज्यादा थी ।
शांति जितनी कठोर कांता उतनी ही निर्मल
सारी लड़कियों का ख्याल रखती , उनकी पसंद की चीजे उन्हे लाकर देती ,खाने की हो या सजने संवरने की , किसी को चोट लग जाती तो लड़की कांता के कमरे मैं रुकती और शांति की कभी हिम्मत न होती की वहां से लड़की को बुलवा ले , कोई ग्राहक किसी लड़की को अगर मारता तो उसका आना कांता बंद करवा देती । कहती की हम इज्जत बेचने का धंधा इज्जत से करते है ।
सब दबी आवाज मैं कहते तो थे की कांता मां है शांति की ,छोटी उम्र मैं ही शांति हो गई थी जब कांता पंद्रह की थी बस ,उसका प्रेमी उसे इस कोठे पर बेच गया था ,और शांति नफरत करती थी अपनी मां से क्योंकि उसे ऐसी जिंदगी मिली उसके कारण पर सच कोई नही जानता था ,वैसे शांति का तो पता नही पर कोठे की सब लड़कियों की मां ही तो थी कांता ।
शांति कभी कांता से बात न करती थी जाने क्या बैर था उसका कांता से ,पर कभी कांता की बात भी नही काटती थी , जानती थी उसका कोठा कांता की वजह से सबसे अच्छी लड़कियों से भरा था ।
आज पूरे कोठे पर सन्नाटा पसरा है , सारी लड़कियां बुत बन कर बैठी है ,उनकी मां जैसी कांता मां को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है पता नहीं वो सच की सुहागन थी या कोठे पर कोई विधवा होती ही नही ..
लड़कियों का रो रो कर बुरा हाल था कांता की वजह से कोठे का वो कमरा जो उनके लिए मायके जैसा था आज वो खाली हो गया था । और शांति वो आज बिलख बिलख के रो रही थी और मां मां पुकार रही थी ।