नयी पहचान – मधु झा

स्निग्धा और उसका पूरा परिवार खुश था। शैलेश के साथ रिश्ता करके। शैलेश उच्च शिक्षित और अच्छे पैकेज पर एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था। देखने में भी खूबसूरत और स्मार्ट था और स्निग्धा को जो बात सबसे ज़्यादा पसंद आयी , वो ये थी कि शैलेश और उसके परिवार वालों को स्निग्धा की आगे की पढ़ाई को लेकर कोई एतराज नहीं था। इसके पहले भी कई जगह रिश्ते की बात हुई थी पर कभी लड़के वालों को स्निग्धा पसंद नहीं आयी या कभी स्निग्धा को लड़का पसंद नहीं आया,,। कहीं लड़का तो कहीं उसके परिवार वाले स्निग्धा की पढ़ाई को लेकर राजी नही हो रहे थे।

मगर शैलेश के साथ ये बात नहीं थी, शैलेश और उसके परिवार वाले माडर्न ख़यालात के थे ,उन्हें स्निग्धा की पढ़ाई से कोई शिकायत न थी।

लेन-देन की भी कोई बात न थी,,बस उपहार स्वरूप उन्हें बिटिया को जो देना था उससे उन्हें कोई परहेज भी न था। 

“यूँ तो दहेज लेना और देना जुर्म मानते हैं लेकिन उपहारों की शक्ल में इस जुर्म को दोनों पक्ष खुशी-खुशी अंजाम भी देते हैं।”

दो महीना तैयारी करते कब बीत गया पता ही न चला और शादी का दिन आ गया।

दुल्हन बनकर स्निग्धा पिता के दिये गये उपहारों के साथ ससुराल पहुँची।

सास-ससुर, ननद-देवर और शैलेश सभी बहुत खुश थे और सभी ने उसका खुले दिल से स्वागत किया ।

दो दिन बाद पगफेरी के लिए स्निग्धा मायके जाने लगी तो सास ने एक नया  रिवाज़ बताया कि अभी जो विदाई होगी, उसमें नये गहनों और कपड़ों के साथ ही दुल्हन का गृहप्रवेश होता है। स्निग्धा और उसके माता-पिता ने उनके घर का ख़ास रिवाज़ समझकर कोई विशेष ध्यान न दिया और सब कुछ उनके मन मुताबिक किया गया। कुछ दिन बहुत आराम से ख़ुशी-ख़ुशी बीता मगर धीरे-धीरे उनके घर का ये ख़ास रिवाज़ आम हो गया,।अब हर पर्व-त्यौहार में मायके से दी हुई वस्तुओं का प्रयोग होना कहकर डिमांड बढ़ती गयी। हर बात में टोका-टोकी और बहाने से बढ़ती फरमाइशों ने पहले दिन से ही उसे सशंकित कर दिया था कि वो शायद गलत घर में आ गयी मगर नसीब का लिखा कौन मिटा सकता है।




स्निग्धा ने जब इसका अपोज करना  करना चाहा तो उसे और अधिक प्रताड़ित किया जाने लगा। आये दिन पति और परिवार वाले अपमान करने लगे,,और तो और इस दौरान उसके साथ मार-पीट भी आम बात हो गयी थी। स्निग्धा सब सहती रही,। छोटे भाई-बहन के प्रति माता-पिता की ज़िम्मेदारी को वह नज़रअंदाज नहीं कर सकी और वह सब कुछ एकतरफ़ा निबाहती रही। 

हालांकि उसने अपने पिता से इस बात का ज़िक्र बहुत पहले किया था लेकिन उसके पिता ने इसे जीवन का एक छोटा-मोटा किस्सा समझकर ध्यान नहीं दिया,,। धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा,,

यही समझाते रहे । वे लोग भी स्निग्था को ही कसूरवार ठहरा रहे थे। स्निग्धा शादी बचाने के लिए सब कुछ सहती रही। अब तो अपनी नियति मानकर उसने जीवन से समझौता ही कर लिया था।

इस बीच उसने एक बेटे को जन्म दिया,,।उसने सोचा कि शायद अब स्थिति में सुधार हो मगर बाक़ी बातें यथावत चलती रही। स्निग्धा इस बात से अंजान थी कि उसके खिलाफ़ कोई साज़िश भी रची जा रही है,, शैलेश और उसके परिवार वालों ने उसके माता-पिता को भी उल्टी-सीधी पट्टियाँ पढ़ाकर स्निग्धा के खिलाफ़ कर दिया था। उन्होंने उसके चरित्र पर लांछन लगा शिकायत की,, फ़िर तो स्निग्धा के परिवार वालों ने भी उसे ये कहकर कि वो उन लोगों के लिए मर चुकी है,,ससुराल में अकेला छोड़ दिया।

अब तो ससुराल वालों को लाइसेंस मिल गया था उसे प्रताड़ित करने का,,। स्निग्धा ने इस उम्मीद में अपनी नियति मानकर समझौता कर लिया था कि कभी शायद स्थिति में सुधार हो,, कभी उसके लिए भी जीवन में खुशियाँ आये। मगर इस बात से बेख़बर थी कि वे लोग तो स्निग्धा से मुक्ति चाहते थे।




एक दिन किसी बात पर बहुत झगड़ा हो गया और उसके पति व उसकी सास ने मिलकर केरोसिन छिड़क कर माचिस लगा दिया। जान तो बच गयी मगर शरीर बुरी तरह झुलस गया था। चेहरा बुरी तरह खराब हो चुका था। इसका भी दोष उन लोगों ने स्निग्धा के सर मढ़ दिया और अपने रसूख का इस्तेमाल कर सभी कानूनी झमेलों से बरी हो गये थे। 

कई महीने के इलाज और सर्जरी के बाद कानूनी मजबूरियों के कारण उसका पति उसे घर तो ले आया मगर अब वो उससे पूरी तरह छुटकारा चाहता था। उसने बेटे को भी बहाने से उससे अलग कर दिया।

स्निग्धा की समस्यायें यहीं तक सीमित नहीं थी। अब उसे ज़िल्लत और अपमान के साथ घृणा का सामना भी करना पड़ रहा था। 

लोग उसे देखते ही डर जाते थे।

सहानुभूति के दो बोल कहने की बजाय किनारा कर लेते थे। लोगों का ये व्यवहार उसे और अधिक दुखी करता था। बिल्कुल अकेली हो गयी थी वो।

मगर कब तक ऐसे रहती,,?? स्निग्धा ने साहस बटोरा और तय किया कि अब इस चेहरे को नयी पहचान देगी और इज्ज़त और मान-सम्मान की ज़िन्दगी जियेगी।

एक दिन उसने घर छोड़ दिया,, ज़िन्दगी चलाने के लिए छोटी-मोटी नौकरी की,, लोगों की तीखी व तिरस्कार भरी नजरों का सामना किया मगर हार नहीं मानी।

स्निग्धा की मेहनत, साहस और कर्मठता देखकर वक्त ने भी करवट बदला। आज उसके पास  दौलत और शोहरत सब कुछ है।आज वो एक संस्था चलाती हैं जहाँ  घरेलू हिंसा व एसिड हमले की शिकार महिलाओं की मदद करती हैं,,।

आज उसके चेहरे से लोग डरते नहीं, घृणा नहीं करते बल्कि आज सोहायटी वाले आदर सम्मान के साथ “स्निग्धा जी” कहकर बुलाते हैं,,तथा महिला-दिवस व महिलाओं के लिए खास कार्यक्रम पर मुख्य अतिथि के रूप में भी बुलाते हैं,,।आज स्निग्धा नये चेहरे और नयी पहचान के साथ सम्मानजनक जीवन जी रही हैं तथा साथ ही अनेक महिलाओं की प्रेरणा भी हैं,,।

 #मासिक_कहानी_प्रतियोगिता_अप्रैल 

मधु झा,,

स्वरचित,,

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