नशे का चौराहा – आरती झा आद्या Moral Stories in Hindi

“आज फिर छोटे को देख़ मन ख़राब हो गया, नशे में धुत चौराहे पर बैठा हुआ था। घर की इज्जत मिट्टी में मिला क़र रख दिया है इसने।” कॉलेज से आए शांतनु अपनी टाई ढीली करते थकी हुई आवाज़ में अपनी पत्नी शाम्भवी से कह रहे थे।

शाम्भवी टाई लेती हुई कहती है, “देखिए इतनी नाराजगी भी ठीक नहीं है। आखिर हैं तो आपके भाई ही ना। उनके दोनों बच्चे भी अभिभावक की कमी के कारण चौक चौराहे पर भटकते रहते हैं। परसों ही तो उनकी बेटी किसी के साथ बाइक पर बैठी किसी के गले में हाथ डाले कहीं जा रही थी, अभी उम्र ही क्या है उसकी, बारह साल की तो ही है। ऐसी परिस्थिति में उसे बरगलाना किसी के लिए भी आसान है। कुछ अनहोनी हो जाए, उससे पहले उनकी बाँह थाम लीजिए।”

पत्नी की बात पर बिना कोई उत्तर दिए थके क़दमों से शांतनु अपने कमरे की ओर बढ़ गए।

**“फेल हो गया तो हो गया, आठवीं ही तो फेल हुआ है, ऐसे भी पहलवान बनने के लिए कौन सी पढ़ाई लिखाई की जरुरत होती है।” छोटे के आठवीं फेल करने पर माँ की चिंता पर पिता ने यही उदगार व्यक्त किए थे।

“मुझे क्या दिक्कत है, एक बेटे को पढ़ा लिखा क़र अफसर बनाऊँगा और एक को पहलवान बनाऊँगा, जिससे कोई घर की ओर नजर उठा क़र भी ना देख़ सके। इसलिए तो इसका नाम भीम रखा है।” कमरे में खिड़की के पास आकर खाड़े हुए शांतनु के कान में पिता के कहे शब्द अक्षरशः गूँज रहे थे।

“अच्छा है भीम है, घटोत्कच नहीं।” दसवीं में पढ़ने वाले शांतनु ने चिढ़ाते हुए कहा था लेकिन बाद में पढ़ाई के महत्व को समझाने की भी कोशिश की थी शांतनु ने। लेकिन पिता की शह पर भीम इतनी अकड़ में रहता था कि शांतनु उसे हमेशा अपना दुश्मन ही प्रतीत होता था। 

समय के साथ शांतनु प्रतिष्ठित महाविद्यालय का प्रिंसिपल बन गया और भीम नशेड़ी और जब तब उसी पिता को जलील क़र कभी घर से निकाल देता, कभी हाथ छोड़ देता। पिता कब तक सहन करते, माँ तो ऐसी जलालत भरे दिन को देखने से पहले ही अलविदा कह गई थी। पिता भी कब तक सहन करते, भीम की इस उद्द्ण्डता का कसूरवार खुद को मानते हुए एक रात सोये तो सोये ही रह गए। 

***भीम पहले भी बेख़ौफ़ था और अब तो शांतनु पूरी तरह से उसकी आँखों में खटकने लगा था। एक दिन उसने शांतनु पर हाथ उठा दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि शांतनु ने उसी समय अपने परिवार सहित घर छोड़ क़र अलग हो गया। लेकिन भीम की और भीम के परिवार की दुर्दशा देख़ उसका हृदय उसे कचोटता रहता है और आज पत्नी द्वारा उसकी बेटी के बारे में सुनकर उसका दिल दहल उठा। जो भी हो पूरी दुनिया को शिक्षा देने वाले के घर के बच्चे भँवर में फँसते जा रहे हैं और वो कुछ नहीं क़र पा रहा है। जब ये सूख गए पौधे उचित खाद पानी से हरे भरे हो सकते हैं, तो छोटे के बच्चों का भी अभी समय नहीं बीता है। शांतनु खिड़की के बाहर बगीचे के माली द्वारा सूख गए पौधे का सार संभाल करते देख़ सोच रहा था।

“ये लीजिए चाय”….

“तुमने उचित कहा शाम्भवी, अनहोनी होने से सम्भल जाना अच्छा है। चाय पीकर तैयार हो जाओ, अभी छोटे के घर जाना है।” चेहरे पर चिंता और उम्मीद दोनों भाव के साथ चाय की प्याली हाथ में थामते हुए शांतनु कहते हैं।

***अपने घर को सँभालने आया हूँ।” बड़े भाई को दरवाजे पर देख़ नशे में झूमते हुए छोटे भाई के व्यंग्य के उत्तर में शांतनु कहते हुए उसे धक्का देकर घर के अंदर घुसते हुए कहते हैं।

अंदर का नजारा देख़ शांतनु सिहर गए थे। दो साल पहले जिस घर को दुरुस्त अवस्था में छोड़ गए थे, वह घर इतने दिनों में ही खंडहर सा लग रहा था। भीम की पत्नी फटी साड़ी और उजड़े बालों में इंसान कम और….शांतनु इससे ज्यादा नहीं सोच सके थे।

शाम्भवी को देखते ही भीम की पत्नी फूट फूट क़र रो पड़ी थी। पूरे मोहल्ले में सबसे सुंदर कही जाने वाली भीम की पत्नी आज सबसे ख़राब अवस्था में दिख रही थी।

“निकलिए मेरे घर से, सँभालने आए हैं।” वक्र हो गए चेहरे के साथ भीम शांतनु का हाथ पकड़ते हुए कहता है।

**“मिस्टर भीम, उनका हाथ छोड़िये और हमारे साथ चलिए।” जब तक भीम कोई और उच्छृंखलता करता तीन चार पुलिस वाले प्रवेश करते हुए कहते हैं और अतिशीघ्रता से भीम के हाथ में हाथकड़ी डाल और शांतनु को थाने आने का कहकर भीम को गाड़ी में बिठा क़र ले गए। यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि किसी को कुछ समझने का अवसर नहीं मिला।

“तुम चिंता ना करो। भीम को नशा मुक्ति केंद्र ले जाया गया है। सीधी तरह वो जाता नहीं, तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ी।” विस्फारित नजरों से दरवाजे की ओर देखती भीम की पत्नी से शांतनु कहता है और नशा मुक्ति केंद्र के लिए भीम के पंद्रह साल के बेटे के साथ निकल जाता है। भीम के बेटे को साथ ले जाने के पीछे शांतनु की मांश यह थी कि वह वहाँ की और नशा करने वाले लोगों की हालत खुद की नजर से देखे और भविष्य में इससे दूर रहे।

शांतनु और उसकी पत्नी का कदम पर कदम पर साथ होने के कारण भीम के परिवार की स्थिति सुधरती गई। शांतनु ने उसकी पत्नी के लिए घर पर ही सिलाई केंद्र की व्यवस्था करवा क़र दोनों बच्चों का अच्छे विद्यालय में प्रवेश दिलवा क़र स्वयं के देखरेख में पढ़ाने लगा। बच्चों को भी जब एक अच्छी साफ सुथरी जिंदगी महसूस हुई तो वो भी अपने जीवन को एक मुकाम देने में जी जान से जुट गए।

***आज चार साल बाद भीम नशे की कैद से पूरी तरह रिहा हो रहा था और बाहर उसका पूरा परिवार उसके स्वागत में पलक पाँवरे बिछाए हुए था। अगर कोई नहीं आया था तो वो शांतनु था, जिसका इंतज़ार भीम सुबह से ही क़र रहा था।

“भैया अभी तक नाराज हैं भाभी।” शायद उसने पूरे होश हवास में पहली बार शांतनु के लिए भैया शब्द का उपयोग किया था।

शाम्भवी उसके प्रश्न का बिना उत्तर दिए उसके पीठ को सहलाती गाड़ी में बैठने कहती है। भीम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गाड़ी में बैठता है, उनके बैठते ही शाम्भवी गाड़ी मंदिर की ओर मोड़ देती है।

“भैया”, मंदिर के बाहर शांतनु को देखते ही भीम भाई के पैरों पर गिर पड़ा।

“मेरे नहीं, उनके पैरों पर गिरो।” भगवान के विग्रह की ओर इशारा करता हुआ शांतनु कहता है।

“नहीं भैया, मैंने तो नशे की निंद्रा में अपने परिवार को समाप्त क़र दिया था। नशे के चौराहे पर खड़े इंसान को सिर्फ नशा ही दिखता है और वो अपने साथ साथ अपनों का जीवन भी लील जाने के लिए कमर कस चुका होता है। आप और भाभी नहीं होते तो…दीपक ने मुझे सब कुछ बता दिया है। आप दोनों तो अमृत वृक्ष हैं।” बेटे की ओर देखते हुए भीम कहता है।

“बस बस बहुत हो गया, अपने परिवार को सही रास्ते पर लाने के लिए हर कोई ये सब करेगा। अब ये रिश्तों की डोर टूटे ना, इसीलिए गठबंधन के लिए भगवान के समक्ष आए हैं मेरे भाई।”

हाँ मेरे भाई, आज हम भगवान के समक्ष एक दूसरे को वचन देंगे कि चाहे जो भी हो जाए, एक दूसरे से दिल से इतनी दूर नहीं जाएंगे क़ि सुख दुःख में भी शामिल ना हो सकें। अपनी हथेली आगे करता हुआ शांतनु कहता है और भीम उस हथेली को थाम हर पल साथ होने का मूक वचन देते हुए अपने आँखों से लगा लेता है।

आरती झा आद्या

दिल्ली

#रिश्तों की डोर टूटे ना

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