नारियल वाली टॉफी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

महीने की पांच तारीख आते ही घर में गहमागहमी मच जाती।वैसे तो अब तीन लोग ही रह गएं हैं घर में।पति जब तक थे,किराने का सामान लाना पूरी तत्परता से निभाते थे।कोई भी चीज छूटती ना थी।अपने पापा के लिए बोरोलीन,मां की वैसलीन अत्यंत आवश्यक चीजें थीं।उसके बाद बच्चों की हर फरमाइश पूरी करते थे।सारा घर उनके तनख्वाह मिलने की प्रतीक्षा करता था।छोटी बेटी ज्यादा लाड़ली थी,तो मौका देखकर बाहर खाने की

फरमाइश करती।मजे की बात यह कि हम सभी (सास,ससुर,पति और बच्चे )एक साथ जाते।बड़ी सी टेबल बुक कर जब हम सब खा रहे होंगें थें,सासू मां और ससुर दोनों एक दूसरे को देखकर खाते थे।सासू मां की आंखों में शिकायत होती,और ससुर जी की आंखों में माफी की गुहार।अब पिता के ना रहने से किराना लाने की जिम्मेदारी सलिल(बड़े बेटे)पर थी।तनख्वाह मिलते ही मां को साथ ले जाकर किराने का सारा सामान वहीं लाता था।हालांकि पिता की तरह अनुभवी नहीं था ।

आज ड्यूटी से आते ही बोला”मां लिस्ट बना लीं हैं ना आपने।चलो आज जाकर ले आतें हैं।फिरदोस्तों की शादियों में समय नहीं‌ मिल पाएगा।और हां दीदू(दादी)से पूछ लेना,उन्हें क्या चाहिए?”शिखा (बहू)ने पूछा “मां आपको क्या -क्या चाहिए,बता दीजिए।”,इस संसार में बुढ़ापे को जीने की बहुत सारी चीज़ें कहां लगती हैं बहू।बस एक वैसलीन,बोरोलीन लेना। हां पैराशूट नारियल तेल लेना मत भूलना।भगवान का धूप,माचिस और बताशा लेते आना।बस!मेरी सामान की लिस्ट ख़त्म।”

दादी की फरमाइश सुनकर हर बार की तरह सलिल हंसकर बोला”कितना अच्छा लगता है ना मां।दादी अभी भी  तकलीफ़ से उबरी नहीं है।जवान बेटा खोया है,पति को खोया हैं।अब मुझे और आपको ही वे सब कुछ समझती हैं ।तुम रोक -टोक मत करना।खुश‌ होकर जो भी मांगें,देना उन्हें खाने को।थोड़ा सा देने में,कोई शुगर नहीं बढ़ेगा।”

शिखा ने हंसकर बेटे की हां में। आं मिलाई।बेशक उनके अहसान हम कभी नहीं उतार सकते।दोनों बच्चों को सनातनी संस्कार देकर पाला है उन्होंने।किराना दुकान में पहुंचकर सामान निकाला जाने लगा।तब तक शिखा कुछ और सामान‌ देखने लगी।तुरंत शिखा ने उन चीजों को खरीदना शुरू किया। नारियल की चॉकलेट उनकी फेवरेट थी,जो कम ही दिखती थी आजकल।माज़ा उनका मनपसंद कोल्डड्रिंक था।नारियल वाले बिस्किट ,जो भी दिखा,शिखा ने ले लिया।

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घर‌ पंहुंचते ही सामने ड्राइंग रूम में बैठी मिलती वे।साथ में नींबू पानी जरूर देती थीं।

कांपती हुई काया में दो चमकदार आंखें ही उनको जीवंत बनाती।शिखा ने प्यार से उन्हें बुलाकर डिब्बे देने के लिए कहा।बड़ी लगन से करती थीं‌ वे सारे काम।बोरा तो खाली हो गया। सासू मां का मुंह उतर जाता किसी बच्चे की तरह।शिखा ने जानबूझकर पूछा”मां सामान‌ पूरा नहीं‌ है क्या?क्या छूट गया ?तुम्हारा सब सामान‌ आया है ना।”वो बिना गुस्सा हुए हूं कहतीं

उनकी पसंद की चीजें‌ तो शिखा ने अलग थैले में रखा था,कैसे मिलता।शाम की चाय बनाकर सासू मां के कमरे में उनका‌ सामान दिया जब शिखा ने यह कहकर”देखो मां,इस बार तुम्हारी पसंद का सारा सामान मिल गया है।आलमारी में‌  रख लेना।अपने पोते-पोतियों को खिलाते मत बैठना‌।”

उन‌ दो बूढ़ी आंखों में‌ ऐसी चमक आ गई कि मानो उन्हें‌ कुबेर का‌ खजाना मिल गया। धीरे से शिखा से पूछा”बहू मंहगाई तो बड़ी होगी अब।बच्चों का‌‌ सारा सामान तो ली है ना तुमने।

उन्होंने आगे किराना का पूरा पैसा पूछा तो शिखा ने कहा”पूरा पैसा आपके बेटे देकर ही खरीदते हैं।आप  पैसों की चिंता मत करो।

शाम को लाड़ से पोते के सर में हांथ फिराते हुए कहा उन्होंने”भगवान‌ तुझे 

हमेशा ऐसा ही साधा -सीधा बनाए रखें।खूब तरक्की करे मेरा राजा।क्यों रे एक साथ इतना क्यों लाने को बोला मां को।मैं इतना खामी पाऊंगी कभी!

पोते ने नारियल वाली टॉफी जैसे ही उनके मुंह में डाली,उनके चेहरे में अद्भुत संतोष दिख रहा था।ऐसा संतोष फाइव स्टार होटल में खाकर भी हमें कभी नहीं हुआ।खाने के मामले में पाबंद दादी ने बाकी की सारी चॉकलेट अलग से एक डिब्बे में रख ली।दोपहर को बड़ी बेटी को फोन में सुख के सागर में डूबीं एक दादी बता रही थी”देख ना कहां से ढूंढ़कर मेरी पसंद की नारियल वाली चॉकलेट लेकर आया है पोता।दो खा चुकीं हूं।एक तो इतनी मंहगाई ,ऊपर से मेरे खर्च अलग।बिचारों को ऊपर बहुत बोझ है रे।”

बड़ी बेटी  चुटकी लेते हुए बोली”ये टॉफी अब इतनी भी मंहगी नहीं है।तुम्हें तो बहू और पोते का गुणगान करने को मिल जाए बस।”

दादी ने लड़ाई नहीं छोड़ी”हां रे!दस हजार या दस लाख एक तरफ,मेरे पोते की लाई मिठाई मेरे लिए करोड़ों के मोल की है।”अब शिखा ने कहा”थोड़ा क्रेडिट इस बहू को भी दे दिया कीजिए।इस चॉकलेट को ढूंढ़ने का काम मैंने ही किया है,पोते ने नहीं।”,सासू मां ने भी सरलता से कहा”अरे बहू तुम जैसी मां है तभी तो ऐसा पोता है।”,

अब हम सब हंस रहें थें,उन नारियल वाली चॉकलेट को देखकर।

शुभ्रा बैनर्जी

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