मिथिला की ननद मोहिनी उसकी हम उम्र थी। ननद भाभी के रिश्ते से ज्यादा दोनों प्यारी सखियां थी। दोनों की पसंद,
रहन-सहन, विचार, व्यवहार मेल खाते थे। सबको लगता वे दोनों बहने ही हैं।
साईकिल सवार हो दोनों साथ प्रशाला जाती। मिथिला बाहर से ही मोहिनी को पुकारती। जब कभी मोहिनी का भाई आतिश घर में होता, मिथिला को डांट देता।
“क्या बाहर खडी होकर चिल्लाती हो?”
“भैया लेट हो रहा हैं हमें। टीचर डांटेगी।”
” समय पर क्यों नहीं आती तुम्हारी सखी?”
चलते-चलते दोनों ठहठहाकर
हंसती। मोहिनी कहती, शादी हो जाने दो भैया की। आने दो भाभी को, मजा आयेगा। पीछे-पीछे लगी रहुंगी।”
” लेकिन, जब भी तुम आती हो, भैया बहाने ढूंढते हैं बात करने के।”
अब मैं ना नहीं कहूँगी – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi
” कहीं तुम्हें चाहते तो नहीं?”
“अरे, तुम क्यों शरमा रही हो?”
” मिथिला” ठुड्डी पकडते हुए मोहिनी ने पुछ ही लिया,
” तुम भी चाहती हो भैया को?”
बस फिर क्या था। जाना पहचाना परिवार। लड़का होनहार। झट मंगनी, पट शादी हो गयी।
आतिश के साथ मजे से कट रही थी जिंदगी। साथ-साथ ऑफीस जाना छुट्टी के दिन पिकनिक मनाना या परिवार के साथ होटल जाना। कभी-कभी मां के साथ तीर्थ दर्शन करने जाना। आतिश और मोहिनी भाई बहन का रिश्ता भी प्यारा था। घर परिवार में चहुँ ओर खुशियां ही खुशियां खनक रही थी जैसे।
मिथिला सोचते-सोचते अतीत के पन्ने पलटने लगी।
अपनी बहन की हर मनीषा को पूरी करना, आतिश को खूब अच्छा लगता।बड़े भाई का फर्ज वह शिद्दत से पूर्ण करता। भाभी से तो प्यारा रिश्ता था ही उसका।
आतिश और मिथिला माता-पिता की सेवा में सदा तत्पर रहते।
मिथिला को आतिश का व्यवहार, सादगी बहुत पसंद थी। दोनों एक दूसरे को खूब चाहते थे।
मिथिला मां बननेवाली है, जानकर मोहिनी को तो जैसे पंख मिल गये।
” छोटे से बेबी के साथ मैं खूब खेलूंगी।”
” भुआ हूं तो लाडले का नाम भी तो मैं ही रखुंगी।”
” अभी से सोचती हूं सुंदर सा नाम।”
गोद भराई का आयोजन धूमधाम से किया गया। आतिश ने परिवार के साथ सुंदर नाटिका प्रस्तुत की। पारिवारिक प्रेम और सामंजस्य देख सबका मन गदगद हो गया। आनेवाले नवागत मेहमान के प्रति दादा दादी ने ‘ चंदा से होगा वह प्यारा, फूलों से होगा वह न्यारा।’ गीत गाकर अपने भाव प्रस्तुत किए। मोहिनी ने बडे जोश के साथ सुंदर नृत्य प्रस्तुति दी। सभी मेहमान ढेर सारे आशिर्वाद देकर विदा हुए।
मिथिला के माता पिता उसे अपने घर ले गये। आराम से पीयूष का अवतरण हुआ।खूब जश्न मनाया गया।
स्वागत में ढोल नगाडे बजाये गये।
मिथिला छोटे से पीयूष की सार संभाल में व्यस्त रहने लगी।
आतिश पीयूष को खूब प्यार करता। लेकिन मिथिला से थोडा नाराज रहने लगा।
” दिन भर केवल पीयूष पीयूष करती रहती हो। हमें तो भूला ही दिया है।”
कभी गुस्सा, कभी चिडचिड। पता नही क्या हो गया है। मम्मीजी भी गांव गये है।
आज तो हद ही हो गयी। जरा सी बात पर आतिश ने हाथ उठा दिया।
और तो और आजकल काम का बहाना कर लेट आने लगा था। कभी कभी फोन पर देर रात तक बातें करता। पूछने पर कहता,
“बहुत ही महत्वपूर्ण काम अधूरा रह गया है। तुम पीयूष का ध्यान रखो।”
” बस, अब और नहीं।”
सोच ही रही थी क्या करूं? कि मोहिनी का फोन आ गया। ऑफीस के काम के लिये वह दिल्ली गयी थी हुई थी।।
” भाभी, छोटे राजकुमार को मिलने मैं कल आ रही हूं। खूब मस्ती करेंगे हम दोनों। आप मुझे डांटना मत।”
” मोहिनी, जल्द से जल्द आओ। प्लीज…”
घर का बदला-बदला बिखरा माहौल देख मोहिनी ने मिथिला से पुछ ही लिया।
” मैं ननद तो हूं, पर सखी भी तो हू। मुझे बता नहीं सकती थी भैया के व्यवहार के बारे में?”
” क्या मैं परायी हूं?”
मोहिनी के गले मिल मिथिला खूब रोयी।
मोहिनी ने भी उसे नहीं रोका। दिल का भार उतरते ही दोनों सखियों ने कुछ सोचा।
मोहिनी के पति बडे अफसर थे, जहां आतिश काम करता था। ऑफीस अलग होने की वजह से वे मिल नहीं पाते थे।
पर उन्होंने समस्या सुलझाने का वादा किया।
आतिश के ऑफीस में जो नयी बाॅस ‘नीलाक्षी’ मॅम आयी थी, वह उसे चाहने लगी थी। मिथिला की व्यस्तता के कारण वह उसे यह बात कह नहीं पाया।
लेकिन आतिश की बेरूखी से वह चिढ जाती, बिना मतलब उसका अपमान करती। इसी कारण से वह चिड़चिड़ा हो गया था।
मोहिनी ने अपने पति से सलाह मशविरा कर नीलाक्षी जी को अपने घर आमंत्रित किया। साथ ही आतिश और मिथिला को भी बुलाया।
सब खाना खाने बैठै तब नीलाक्षी मॅम को जानबूझकर दोनों के साथ बिठाया। ताकि उसे पता चले, आतिश सिर्फ अपनी पत्नी, छोटे पीयूष और परिवार के साथ रहने के लिए लालायित रहता है। वह सिर्फ मिथिला को प्यार करता है। नन्हा पीयूष उसकी आंखों का तारा है। उसके माता पिता, छोटी बहन बहनोई उसे प्राणों से प्यारे हैं।
अब तक मां बाबूजी भी गांव से पहुंच गये थे। मां ने तो आते ही नीलाक्षी को आडे हाथ लिया।
” प्यारा सा परिवार है हमारा। तुम ने सोच भी कैसे लिया कि आतिश तुम्हें चाहेगा? अगर आतिश ने पहले ही बता दिया होता, बात बढती ही नहीं।”
नीलाक्षी को अपनी गलती का एहसास हो गया था। समझ गयी थी, प्यार छीना नहीं जा सकता। सबसे माफी मांगकर
बिना भोजन किये ही वह चली गयी।
मिथिला ने मां बाबूजी के पैर छूकर आशिर्वाद लिया। मोहिनी को गले लगा लिया।
मिथिला मोहिनी की भाभी बनकर आ गयी थी, लेकिन वास्तव में मोहिनी के साथ ननद से ज्यादा रिश्ता मैत्री का ही रहा। शादी के बाद रिश्तें में और थोडी मिठास घुल गयी थी।
आतिश ने अपने कार्यस्थल से विदा ले ली थी।
मिथिला और आतिश ने अपने घर में ही एक छोटा सा ऑफीस खोल दिया था।
सब कुछ जैसे चाहा, हो रहा था।
पीयूष के साथ खेलते-खेलते वह कब जवां हुआ, पता ही न चला।
मिथिला रोज परम प्रभु से प्रार्थना करती, हे प्रभु, मोहिनी सी ननद सबको देना।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र