सुभाष जिया से कुछ कहने की कोशिश कर रहा था और कई तरह की भूमिकाएं बना रहा था।वो सोच रहा था कि जिया को कैसे बताए कि वो उससे तलाक लेना चाहता है।
जिया रोज की तरह सुबह से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में लगी थी पर वो बहुत उदास थी। मुरझाया सा उसका चेहरा बता रहा था कि ना जाने कितने दर्द सीने में दबाए वो एक रोबोट की तरह सिर्फ काम किए जा रही थी।
सुभाष ने आज निर्णय ले ही लिया था कि आज वो इस रिश्ते से मुक्ति पा कर रहेगा।दूसरी तरफ उसकी गर्लफ्रेंड गीत ने उसको आज आखिरी चेतावनी दी थी कि अगर वो जिया को सबकुछ नहीं बताएगा तो वो उससे रिश्ता तोड़ देगी।
सुभाष ने चाय पीते – पीते कहा कि,” मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं जिया।”
जिया ने सिर झुकाए – झुकाए हामी भर दी।
मैं तुमसे तलाक चाहता हूं जिया…. “पेपर तैयार है हस्ताक्षर कर दो और मैंने तुम्हारे नाम ये घर और बैंक बैलेंस कर दिया है। तुम्हारी बाकी की जिंदगी अच्छी तरह से गुजर – बसर हो जाएगी” एक ही सांस में में सुभाष ने कह कर चैन की सांस ली… जैसे कितना हिम्मत जुटा कर उसने ये सब कहा हो।
सच पूछो तो जिया में क्या कमी है वो खुद नहीं जानता था और उसे अपनी जिंदगी में क्या उम्मीदें थीं जिया से जो वो पूरा नहीं कर पा रही थी, उसके पास वजह दे पाना कठिन था।
एक बच्चे के जन्म के बाद जिया ने अपने आपको उसी में लगा दिया था।सजना – संवरना, घूमना-फिरना सब जैसे बंद ही हो गया था।ये बात सुभाष को चुभने लगी थी। सही मायने में वो तो बच्चा भी नहीं चाहता था, उसे तो एक ऐसी बीवी चाहिए थे जो सजे – संवरें और उसके साथ पूरा वक्त गुजारे।इसी तलाश में उसकी मुलाकात गीत से हो गई थी।
गीत को भी शादी विवाह के झमेले से दूर बस आजाद रहना और मौज मस्ती करना पसंद था। गीत और सुभाष आफिस के बाद कहीं भी निकल जाते घूमने। सुभाष को ये दुनिया बहुत रास आने लगी थी।दूसरी तरफ घर आता तो जिया ना ढंग से तैयार मिलती और खाना पानी देकर बच्चे की देखभाल में लग जाती थी।
जिया ने बिना मां के जिंदगी गुजारी थी तो वो अपने बच्चे को भरपूर लाड़ प्यार देना चाहती थी।
सुभाष ने तलाक के कागजात आगे बढ़ाए तो जिया बिना देखे कमरे में चली गई।
सुभाष हैरान – परेशान था कि जिया के मन में क्या चल रहा है? वो कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी…वो तलाक देगी की नहीं?
अगर नहीं देगी तो गीत को क्या जबाब दूंगा। वो तो कब से इस बात को टाले जा रहा था पर गीत की जिद्द थी कि जबतक वो अपने पुराने रिश्ते में उलझा रहेगा,वो दोनों खुश नहीं रह सकते हैं।
सुभाष पीछे – पीछे कमरे में आया… “जिया क्या फैसला लिया है तुमने?”
“कैसा फैसला? ये मेरा फैसला नहीं आपका फैसला है”
शादी व्याह तमाशा है क्या सुभाष? मैं कोई गुड़िया नहीं की तुमको जब तक मन की खेले और जी भर गया तो फेंक दिया कचरे के डिब्बे में।”
“सब कुछ तो तुमको दे रहा हूं? और बताओ क्या चाहिए?
सुभाष की आवाज अब गम्भीर हो गई थी।
‘सबकुछ.’… जिया ने जोर डालते हुए कहा।
चलो मैं भी तुम्हें एक आफर देती हूं कि मैं इससे दुगनी प्रापर्टी तुम्हारे नाम करने को तैयार हूं… जिया बोली।
“मतलब क्या है तुम्हारा?” मैं क्या करूंगा पैसे रूपए लेकर
सुभाष ने जिया का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था।
“यही मैं भी कहना चाहती हूं कि पैसे रुपए का क्या मतलब है? जिया की बातें सुभाष के समझ से बाहर निकल रही थी।
‘चलो मैं तैयार हो जाती हूं तुम्हें तलाक देने के लिए पर मेरी एक शर्त मंजूर है तो बोलो ‘ जिया की आवाज में एक भारीपन था।
हां… हां मुझे मंजूर है।
“सोच लो एक बार…. तुम्हें इतनी जल्दी है मुझको छोड़ने की कि तुमने बिना जाने – समझें हां कर दी ” जिया अपना काम निपटाते – निपटाते बोली जा रही थी।
सुभाष को भरोसा था कि जिया को पैसे रूपए का लालच नहीं है तो कुछ ऐसी – वैसी शर्त होगी… हां मुझे मंजूर है बोलो।
सुभाष! ” तुमको दस दिन तक घर में रह कर बच्चे की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी और इन दस दिनों में तुम घर से बाहर नहीं जा सकते। बच्चा हम दोनों का है तो तुम्हें भी इसके लिए वक्त देना पड़ेगा क्योंकि तलाक के बाद मैं तुम्हें बच्चे से मिलने भी नहीं दूंगी।”
सुभाष का सिर चकराने लगा था। बच्चे को संभालना?
वो हड़बड़ा सा गया था।
हां… अगर तलाक चाहिए तो।
अब उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वो कैसे करेगा ये सब… उसने तो कभी भी कुछ नहीं किया था। तलाक तो चाहिए था और उसने हां भी कर दिया था।मैन इगो सामने आ रहा था। उसने गीत से जिया के शर्त के बारे में बताया। पहले तो गीत बहुत नाराज़ हुई फिर बोली ठीक है..दस दिनों की बात है और सब निपटाओ और आ जाओ।
जिया ने सुभाष को बच्चे को पकड़ाया और सारी बातें समझा कर… तैयार होने लगी।
तुम कहां जा रही हो?
“दस दिनों तक तुम्हारी जिम्मेदारी है ना बच्चे की?” अभी तक मैं तुम्हारे बिना मदद के सबकुछ अकेले कर रही थी ना अब तुम करोगे। यही शर्त थी मेरी और हां मैं कितने समय से ना तो बाहर गईं हूं ना कुछ खरीदारी की अपने लिए तो मैं जा रही हूं।”
सुभाष के पसीने छूट रहे थे क्योंकि उसने सिर्फ नौकरी की थी घर और बच्चे की जिम्मेदारी जिया ने अकेले ही उठाई थी।
बच्चे को जब गोद में लिया तो बच्चा तेज से रोने लगा उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि कैसे चुप कराए? उसने दिमाग पर जोर डाला कि जिया कैसे घुमा – घुमा कर बच्चे को चुप करती थी। बच्चे को लेकर अंदर – बाहर घूमने लगा।अब थोड़ा – थोड़ी उन दोनों की दोस्ती होने लगी थी।वो बच्चे के साथ जब वक्त बिताने लगा तो उसे बहुत अच्छा लगने लगा था।
दिन भर की जद्दोजहद के बाद कुछ खिला पिलाने के बाद नन्हा सा सुजैन अब उसकी ऊंगली कसकर पकड़ कर सो रहा था। सुभाष बड़ी मुश्किल से शाम को नहा पाया था।अब उसकी दसा भी बहुत बिगड़ सी गई थी। उसे अहसास होने लगा था कि वो एक दिन में कितना थक गया तो जिया तो घर के काम के साथ – साथ रात में भी जग कर सुजैन को संभालती है और कितनी बार दूसरे कमरे में सो जाती है कि मेरी नींद ना खराब हो जाए।
उफ! बहुत कठीन काम है बच्चे को पालना… चलो आज का दिन जैसे – तैसे निकल ही गया अब नौ दिन ही बचे हैं , सोचते – सोचते ना जाने कब आंख लग गई और जब नींद खुली तो जिया मेज पर खाना लगा रही थी।
“तो बताओ कैसा रहा तुम्हारा दिन? जिया ने सुभाष से पूछा।
“पता नहीं तुम ये सब कैसे करती हो? बहुत कठीन है बच्चे पालना… सुभाष जल्दी – जल्दी खाना खाए जा रहा था।उसको देख कर लग रहा था कि शायद दिन में कुछ खास नहीं खा पाया था वो।
” और तुम बहुत खुश लग रही हो ताजगी तुम्हारे चेहरे पर है।
कैसा रहा तुम्हारा दिन?
दोनों आपस में बातचीत करते – करते हंसी ठहाके लगा कर खाना खा रहे थे। ना जाने कितने महीनों के बाद वो एक दूसरे के साथ इस तरह वक्त बिता रहे थे।
अब धीरे-धीरे सुजैन और सुभाष की दोस्ती बढ़ने लगी थी और सुभाष को बाहर की दुनिया का होश ही नहीं रहता था। बीच-बीच में गीत का फोन आता तो वो काट देता कि अभी वो सुजैन को खिला रहा है या सुला रहा है।अब उन दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी थी और जिया के साथ वक्त बिताने में उसको समझने में उसे अच्छा लगने लगा था।
“आज नौवां दिन है सुभाष…कल के बाद तुम आजाद हो ।
जिया की बातों ने उसे अंदर तक झकझोर दिया था। अरे नौ दिन निकल गए मुझे तो पता ही नहीं चला।अब उसको सुजैन की आदत लग चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था कि ये रात गुजरे ही नहीं।
दसवां दिन आ चुका था। जिया ने उसकी अटैची तैयार की और नाश्ते की मेज पर तलाक के पेपर और कलम रख दिया।
सुभाष जैसे ही मेज पर आया तो उसने देखा कि जिया को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और उसने कितने शांति से सब कुछ कर दिया।अब उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी।उसे उम्मीद नहीं थी कि जिया सुबह – सुबह ऐसा कुछ करेगी।
सुभाष ने अटैची कमरे में वापस रख दिया और तलाक के पेपर को फ़ाड़ दिया।
उसने जिया से माफी मांगी कि,” मैं सिर्फ जिम्मेदारियों से भागकर अपनी दुनिया में ही जी रहा था। मैंने तुम्हें कभी भी समझने की कोशिश नहीं की कि तुम किस तरह से सारे काम करती हो?
मैं तुमको सजा संवरा देखना चाहता था और मेरे लिए वक्त की कमी ने मुझे कहीं ना कहीं गलत सोचने को मजबूर कर दिया था।जब मैंने दस दिन सुजैन के साथ गुजारा तो मुझे अहसास हुआ कि एक मां कितना कुछ त्याग कर देती है अपने बच्चे के लिए बिना कुछ शिकायत किए वो भी खुशी – खुशी। अगर तुम मुझे माफ कर सको तो मैं अपने इस परिवार को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहता हूं।”
जिया जो समझाना चाह रही थी सुभाष को ,उसको समझ में आ चुका था। फिर भी जिया ने बोला कि,” ये तुम्हारा आखिरी फैसला है ना?
हां… जिया मैं रास्ता भटक गया था।अब मैं तुम्हारे साथ मिलकर सुजैन की जिम्मेदारी उठाना चाहता हूं। जिया की जिंदगी में एक ‘नई सुबह’ ने दस्तक दी थी और सूरज की लालिमा उसके घर के सभी कोनों को रौशन कर गई थी।
जिया जानती थी कि सुभाष को जब तक उसकी जिम्मेदारी और कर्तव्य का अहसास नहीं दिलाया जाएगा तब तक वो कभी भी नहीं समझेगा और उसकी जिया की समझदारी ने एक टूटते रिश्ते को मजबूती से बांध लिया था।पूरा परिवार एक हो गया था और बहुत खुश थे सब।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी