गुरुदक्षिणा – नताशा हर्ष गुरनानी

अजय की मौत की ख़बर ने जैसे अंजली को तोड़ ही दिया। बदहवास सी बस रोते ही जा रही थी; माँ पापा सब परेशान थे। अजय, अंजली बचपन से ही एक साथ पले, बढ़े थे।

अजय, अंजली के पापा के घनिष्ट मित्र का बेटा था। 4 साल की उम्र में उसके माता पिता एक प्लेन क्रेश में नहीं रहे थे। तब ही से अजय की पूरी जिम्मेदारी अंजली के पिता ने ले ली। अंजली जब 2 वर्ष की थी जब अजय घर आया, दोनों साथ साथ बड़े हुए। एक अच्छा मित्रता का बंधन था दोनों में।अंजली मन ही मन न जाने कब से अजय को चाहने भी लगी थी।

मैं हर साल गर्मी की छुट्टियों में अपने काका के घर जाया करती थी। वहीं पास वाले बंगले में डॉ. शर्मा रहते थे अंजली उनकी इकलौती बिटिया है।

हम दोनों में भी घनिष्ट मित्रता हो गई। अंजली मुझसे कुछ न छुपाती उसकी जिंदगी मेरे लिए खुली किताब थी।

अचानक माँ के ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज़ें आई मैंने दौड़कर देखा तो अंजली घर के पंखे पर झूल रही थी पापा ने उसे उतारा और हॉस्पिटल ले गए पर तब तक हाथ में कुछ न था।

याद है खाई में कूदने के पहले अजय मुझसे मिलने आया था। काश कि मैं ये हादसा रोक पाती। आज दो ज़िंदगियां बच जातीं।

याद है मुझे अजय का सपना विदेश में बसने का था वो शुरू से ही बहुत अच्छा डांस करता था और इसी कला को आगे बढ़ाते हुए देश विदेश में अपना नाम कमाना चाहता था।

पहले तो डॉक्टर साहिब को उसके डांस करने से कोई दिक्कत नही थी बल्कि वो तो शान से सबको बताते थे की अजय एक बहुत अच्छा डांसर है।

पर जब से उन्हें अंजली और अजय के प्यार के बारे में उनके नौकर से पता चला तब से वो अजय से चिड़ने लगे उन्हें अब अजय की हर बात बुरी लगने लगी।

 जब कभी अजय नृत्य करता डॉक्टर साहिब उसे डाट देते। बात बात में नीचा दिखाते उसे।

 वो कुछ कह नहीं पाता था पर उसे दुख बहुत होता था।

एक दिन उसने हिम्मत करके डॉक्टर साहिब से पूछ ही लिया कि अंकल जी अब आप मेरे साथ इस तरह का व्यवहार क्यों करते है?

उस दिन डॉक्टर साहिब ने उससे कहा कि मैने तुम्हे अपने घर में जगह दी, पाला पोसा, पढ़ाया  लिखाया, इस काबिल बनाया कि तुम समाज में कुछ नाम कमा सको और तुमने मेरी परवरिश पर एक धब्बा लगा दिया।

तुमने मेरे घर में ही मेरी बेटी को अपना प्यार के जाल में फसा दिया।




मैंने तुम पर अहसान किया और तुम मेरा दामाद बनने की सोच रहें हो।

बरखुरदार, मैं ये कभी नहीं होने दूंगा।

अंकल जी सुनिए तो मेरी बात वो वो….

मैं नहीं तुम सुनो मेरी बात

जैसे गुरु अपने शिष्य से गुरु दक्षिणा लेता है ठीक उसी तरह आज मैं भी तुम्हे, अपने यहां तुम्हे रखने, पालने, पढ़ाने कि एक गुरु दक्षिणा याने एक वादा मांगता हूं।

कैसा वादा अंकल जी?

यही कि तुम अंजली के मन में अपने लिए नफरत पैदा करोगे और फिर उससे बहुत दूर चले जाओगे।

तुम्हे विदेश जाने का मन था ना तुम जाओ तुम्हारे जाने की पूरी व्यवस्था मैं कर दूंगा।

पर वादा करो कि फिर कभी लौट कर भारत नही आओगे और हमेशा हमेशा के लिए अंजली को भूल जाओगे।

अब से तुम्हारा और हमारा रिश्ता खत्म।  बस 7 दिन देता हूं तुम्हे तब तक अंजली के मन में अपने लिए नफरत पैदा करो।

अंकल जी ये कैसी बात कर रहे है मैं अंजली से बहुत प्यार करता हूं प्लीज मुझे और अंजली को एक दुसरे से दूर न करिए।

मैं आपके हाथ जोड़ता हूं, पैर पड़ता हूं।

नही मैने जो कह दिया सो कह दिया।

सिर्फ 7 दिन है तुम्हारे पास

6 दिन बीत गए थे अजय अंजली के सामने खुद को हर तरह से गलत साबित करने में लगा था बिचारी अंजली बार बार अजय से कहती कि अजय तुम्हे क्या हो गया है तुम ऐसे तो नही थे।

पर अजय बिचारा कुछ कह नही पाता और अंजली के आगे बुरा बनता रहता।

अंजली रोते रोते दिया(मेरे) के पास गई और उसे सब बता दिया।

फिर मैं अजय के पास गई और उससे पूछने लगी कि तुम अंजली के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हो आज अजय टूट गया और रोते रोते  उसने  दिया को सब बता दिया।

सुनकर दीया ने उसे आश्वासन दिया कि सब सही होगा तुम चिंता ना करो पर अजय अब टूट गया था वो अब कुछ सोचने समझने की हालत में ही नही था।

और वो वहां से निकल कर रोड पर बदहवास हालत में चलता रहा और चलते चलते वो खाई में कूद गया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।

जब अंजली को अजय  और उसके पिता के बीच की इस सच्चाई का पता चला तो उसे अपने पिता से नफरत होने लगी और रोते रोते अपने पिता से बोली पापा आपको पालने, पोसने, पढ़ाने की गुरुदक्षिणा चाहिए थी ना अजय से तो ले ली आपने।

उसने आपके अहसानों की कीमत अपनी जान देकर चुका दी अब मैं भी आपके अहसानों की कीमत चुकाउंगी।

आप जीते जी हमे साथ नही देखना चाहते थे तो ठीक है अब हम मरकर एक होंगे और उसने खुद को कमरे में बंद कर दिया और फांसी के फंदे पर झूलकर अपनी इहलीला समाप्त  कर दी।

इस तरह आज दो जिंदगियां असमय समाप्त हो गई।

और दिया दोनों की लाश को बस देखती रही और भगवान से कहती रही भगवान अब इनको वहां अलग न करना।

नताशा हर्ष गुरनानी

भोपाल

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