आज, रिया और राघव शादी के बंधन में बंधने वाले थे। दो ऐसे लोग जिनकी नियति कुछ अलग ही कहानी लिखने वाली थी।
अग्रवाल हवेली में चहल-पहल थी। हर कोना रोशनी और फूलों से सजा था, और हवा में शहनाई की मधुर धुन गूँज रही थी। यह कोई साधारण शादी नहीं थी,यह थी खुशी और उम्मीद की एक नई शुरुआत।
रिया एक वास्तुकार थी। वह अपने विचारों में हमेशा कुछ नयापन लाती थी। उसकी आँखें सपनों से भरी रहती और उसका हर कदम आत्मविश्वास से चलता था।
राघव, एक शांत और दूरदर्शी बिजनेसमैन था, जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से अपने बिजनेस को ऊंचाइयों तक पहुंचाना चाहता है। लेकिन उनका मानना था कि जीवन की सबसे बड़ी पूंजी रिश्ते होते हैं।
उनकी पहली मुलाकात एक अजीबोगरीब ढंग से हुई थी। एक सेमिनार में, जहाँ रिया अपनी प्रस्तुति दे रही थी, तभी बिजली चली गई। पूरा हॉल अँधेरे में डूब गया और रिया थोड़ी घबरा गई। तभी एक रोशनी उनकी तरफ आई और राघव अपने मोबाइल की टॉर्च जलाकर रिया के पास खड़े थे। उस पल, अँधेरे में रोशनी की तरह, राघव ने रिया के दिल में एक नई उम्मीद जगा दी।
फिर दोस्ती हुई,प्यार बढ़ा और आज….
रंग-बिरंगे फूलों से सजा मंडप, ढोल-नगाड़ों की गूँज और चारों ओर खुशियों का माहौल था। रिया, लाल जोड़े में सजी, किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी, और राघव शेरवानी में, किसी राजकुमार सा दिख रहा था।
शादी की रस्में पूरे ज़ोर-शोर से चल रही थीं। हल्दी की रस्म में जहाँ रिया के दोस्तों ने उसे रंग-बिरंगे फूलों से सजाया, वहीं संगीत संध्या में दोनों परिवारों ने मिलकर खूब नृत्य किया।
रिया के पिता, श्री अशोक अग्रवाल, अपनी बेटी को देखकर भावुक थे। उनकी आँखों में खुशी के आँसू थे, यह देखकर कि उनकी बेटी अपने सपनों के राजकुमार के साथ एक नया जीवन शुरू करने वाली है।
रात ढलते ही फेरों का समय आया। मंडप को गेंदे और गुलाब के फूलों से सजाया गया था। मंत्रों की पवित्र ध्वनि से पूरा वातावरण गूँज रहा था। रिया और राघव ने अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए, सात वचन लिए, जीवन भर साथ निभाने के। हर फेरे के साथ, उनके रिश्ते की डोर और मज़बूत होती गई। रिया ने राघव का हाथ थामा, और राघव ने महसूस किया कि यह सिर्फ एक शादी नहीं,
बल्कि दो आत्माओं का मिलन है, जो एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं। रिया और राघव ने एक-दूसरे की आँखों में देखा। उस पल, उन्होंने न केवल अपने प्यार को महसूस किया, बल्कि एक-दूसरे के प्रति अपने समर्पण को भी गहरा किया।
उन्होंने सात फेरे लिए ही थे कि हल्की बूँदा-बाँदी शुरू हो गई। बड़े-बुजुर्गों ने कहा, “यह शुभ है! यह ईश्वर का आशीर्वाद है जो इस नई शुरुआत को और भी पवित्र बना रहा है। कुछ बूँदें उनके माथे को छूकर गुज़र रही थीं, जैसे प्रकृति भी उनके नए जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएँ दे रही हो।
विदा का क्षण आया, जो हर बेटी के लिए सबसे मुश्किल होता है। रिया ने अपने माता-पिता को गले लगाया। उसकी आँखों में आँसू थे, पर मन में एक शांति भी थी। उसे पता था कि वह एक नए घर जा रही है, जहाँ उसे प्यार और सम्मान मिलेगा। राघव ने रिया का हाथ थामा और उसे आश्वासन दिया, “यह सिर्फ एक विदाई नहीं है, यह एक नई सुबह है, जहाँ हम मिलकर अपने सपनों को पंख देंगे।”
राघव के घर भी मेहमानों से भरा था। जैसे ही दूल्हा-दुल्हन की गाड़ी घर से बाहर रुकी राघव की मां और बहन भाभियों ने उन्हें गाड़ी से उतारा और दरवाजे तक ले गई।
रिया का भव्य स्वागत हुआ। गृह प्रवेश की रस्में हुईं।
फिर राघव और रिया को कमरे में ले जाया गया,
जहाँ रिया ने अपनी माँ के हाथों से बनी खीर का स्वाद चखा।
राघव की माँ, श्रीमती सरला देवी, ने रिया को अपनी बेटी की तरह गले लगाया। परिवार का हर सदस्य रिया के आने से खुश था, क्योंकि उन्हें पता था कि वह इस घर में खुशियाँ लेकर आई है।
शुभ विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होता, यह दो परिवारों, दो संस्कृतियों और दो सपनों का संग़म है।
यह एक नई सुबह का आगाज़ होता है, जहाँ प्यार, विश्वास और सम्मान की बुनियाद पर एक खुशहाल भविष्य का निर्माण होता है।
मधुलिका सिन्हा
गुरुग्राम (हरियाणा)