मुस्कान-पुष्पा पाण्डेय

रजनी को अपने निर्णय पर हमेशा पश्चाताप होता रहा था। शादी के दस साल बाद भी जब वह माँ नहीं बन पायी और न ही भविष्य में बनने की सम्भावना थी, तो डाॅक्टर पति ने अस्पताल के गेट पर छोड़े दो दिन की बच्ची को उठाकर घर लाए। पत्नी से विचार विमर्श करने के बाद कानूनी तौर पर अपनी बेटी बना लिए थे। शुरू-शुरू में तो जैसे दुनिया की सारी खुशी उसके दामन में ही आकर सिमट गयी थी। अब तो घर में नित्य ही त्योहार का माहौल बना रहता था। बेटी की एक मुस्कान रजनी को जन्नत की सैर करा देती थी। हमेशा बेटी बाँहों में ही झुलती रहती थी। उसकी प्यारी मुस्कान को देखकर नाम ही मुस्कान पड़ गया। नित्य नये सपने सजने लगे।  बेटी को इंजिनियर बनाना चाहती थी। हर हाल में इंजिनियर बनना है और कक्षा में प्रथम नहीं तो द्वितीय तो आना ही है। 

अब मुस्कान स्कूल जाने लगी और धीरे-धीरे पढ़ाई की बोझ से दबती गयी। तीन साल की उम्र से ही वह टेलिविजन देखकर नृत्य करना शुरू कर दिया था। शुरू-शुरू में पति-पत्नी दोनों बेटी कीइस अद्भुत प्रतिभा को देखकर फूले नहीं समाते थे। रजनी तो अपनी मित्र मंडली में इसका प्रदर्शन जरूर करवाती थी। धीरे-धीरे पढ़ाई का दबाव बढ़ता गया और नृत्य पर प्रतिबन्ध लगता गया। ज्यों-ज्यों मुस्कान उच्च कक्षा में पहुँचती गयी उसका रूझान कला की तरफ बढ़ता गया।

मुस्कान को विज्ञान में बिल्कुल रुचि नहीं थी। उसे कला का क्षेत्र प्रभावित करता था। रजनी को अपनी इच्छा थोपने के कारण मुस्कान न इधर की रही और न उधर की। रजनी अपनी मित्र-मंडली में स्वयं को नीचा समझने लगी और बेटी दोहरे भार से दबती जा रही थी।

अब तो अक्सर अपने पति से कहती रहती थी।

“न जाने किसका खून था। लड़की बिल्कुल मंद बुद्धि है। दो-दो ट्यूशन लगाने के बाद भी…..मेरी तो नाक ही कटवा दी इस लड़की ने।”


रिश्तों में एक खिंचाव पैदा होता गया।

कभी-कभी वह घर पर नृत्य का अभ्यास करती थी। स्कूल में अतिरिक्त विषय की जगह मुस्कान ने नृत्य ले रखा था। नृत्य-शिक्षिका ने उसकी प्रतिभा को देखकर नृत्य में ही उसे अपना कैरियर बनाने की सलाह देती थी, पर घर में तो पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ बात ही नहीं होती थी।——–

अब तो घर का माहौल तनावपूर्ण रहने लगा।  मेहनत के बाद भी मुस्कान कभी अपनी माँ को खुश नहीं कर पायी।

एक दिन अचानक स्कूल की नृत्य शिक्षिका रजनी से मिलने घर आ पहुँची। वह जानती थी कि मुस्कान के माता-पिता को मुस्कान का नृत्य करना पसंद नहीं है।अतः वह रजनी को समझाना चाहती थी।

” रजनी जी, आपकी बेटी की प्रतिभा को मैने पहचान लिया है। इसे सरस्वती का आशिर्वाद मिला है। आप इसे नृत्य सीखने की  अनुमति दीजिए।”

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स्कूल के तरफ से भरतनाट्यम नृत्य का एक बालिकाओं का समूह गणतंत्र दिवस के अवसर पर राज्य की तरफ से दिल्ली जा रहा था। ग्यारह साल की उम्र में मुस्कान का नृत्य मंजे हुए लोगों के साथ मुकाबला कर सकता था। सोलह साल से नीचे का यह समूह था।

इसके लिए बीस दिन का अतिरिक्त प्रशिक्षण लेना था, जो स्कूल के बाद होगा। इसी के लिए शिक्षिका मुस्कान  के लिए रजनी से सिफारिश करने आई थीं। बड़ी मुश्किल से रजनी तैयार हो गयी।——–

आज मुस्कान विजयी होकर लौटी है। उस छोटे शहर में चारों तरफ मुस्कान की ही चर्चा हो रही थी। समाचार पत्रों में अपनी बेटी की तस्वीर देखकर रजनी की आँखें में खुशी के आँसू आ गये।

अब रजनी समझ पायी कि हर बच्चा में कोई-न-कोई विशेष गुण अवश्य होता है। अन्दर-ही-अन्दर आत्मग्लानि से ग्रसित थी। बेटी को गले से लगाया और होंठो पर स्थायी मुस्कान बिखर गयी।

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