मुझसे भी ढंग से बात न करती है – चाँदनी झा 

निहारिका, यदि तुम्हारी शिकायत सबसे है तो सबको भी तुमसे शिकायत है। ऐसे हमेशा अपनी किस्मत को कोसना, और जो किस्मत ने दिया, उसके लिए कभी खुश रहती हो तुम? आखिर क्या नहीं है तुम्हारे पास। माता-पिता, मायके में भाई, भतीजा, ससुराल में भरा परिवार, खुद भी दो प्यारे प्यारे बच्चे, इतना कमाता है मनीष(पति), खुद सिलाई से कितना कमाती हो, अपना घर अपनी पहचान, और क्या चाहिए इंसान को। खुश रहना सीखो। बचपन से तुम्हारी आदत है, जो मिला है उसका आदर न कर, जो नहीं मिला उसकी शिकायत करना। जिंदगी सबको सबकुछ नहीं देती, यह नहीं जानती हो क्या? और जो दिया है वो कम है क्या? आखिर तुम ये सब कह कर, ऐसा व्यवहार कर क्या जताना चाहती हो, उससे तुम्हें मिलता क्या है, सुकून?

निहारिका, अपनी मां से ऐसे सब शब्द सुन आवाक रह गई! निहारिका चार बहन, दो भाई  हैं, तीनों बहन के पति सरकारी सर्विस में थे, दोनों भाई भी सरकारी सर्विस में। ससुराल में इसके पति के आलावा दोनों जेष्ठ और एक देवर भी सरकारी जॉब में। एक नंदोई थे, वो भी सरकारी पद पर थे। बस निहारिका के पति, मनीष एमबीए किए हुए थे, प्राइवेट सेक्टर में काम करते थे। और इसी बात की शिकायत हमेशा रहती थी, निहारिका को। सबके सब सरकारी कर्मचारी, सिर्फ मेरी ही फूटी किस्मत, मेरे पति प्राइवेट कमाते हैं। 

वह कहती, न मां ने मेरी जिंदगी के बारे में सोचा, और न ही सास ने मेरे पति को इस लायक बनाया। सभी बहनें मुझे कम समझती हैं, भाभियां भी मुझसे ज्यादा अन्य बहनों को भाव देती हैं। देवरानी, जेठानी तो मुझे कभी परिवार का हिस्सा समझती ही नहीं। इस बात को लेकर कभी पति से, कभी सास से कभी मां से उलझ जाती थी निहारिका। सभी रिश्तेदारों से उसका रिश्ता कटा-कटा ही रहता था। पति से कहती, आपमें आत्मसम्मान नाम की कोई चीज ही नहीं है, आप क्या समझेंगे, एक सरकारी नौकरी की कीमत, आपके खुद के भाई ही आपको कम समझते लेकिन आपका जमीर नहीं जगता। मां मायके बुलाती तो कहती, कैसे आऊं? इनको क्या सरकारी नौकरी है, बड़ी मुश्किल से घर चलता है। जबकि कमाई में मनीष किसी से कम नहीं था।



 लेकिन निहारिका की सोच अन्य सभी से बिल्कुल नीचे थी। वह सरकारी नौकरी के मोह में घिरकर अपने सभी रिश्तों को खराब कर रही थी। लोग तो उससे बात करने से कतराने लगे। जबकि उसने भ्रम पाल लिया था कि, सभी मुझे अनदेखा कर रहें हैं। जबकि लोग समझ चुके थे की इसे फोबिया हो गया है, जिसके कारण यह हमेशा चिड़चिड़ी रहती है। सब तो पीछा छुड़ा लेंगे, पर निहारिका की मां को उसकी चिंता लगी रहती थी। हर किसी को समझाती, अरे! समय के साथ निहारिका समझ जायेगी। 

यहां तक कि मनीष भी अपनी सास से निहारिका की शिकायत लगाता, मांजी, आपको अभी भी अपनी बेटी के लिए सरकारी नौकरी पति ढूंढ दीजिए, इसने अपने को एक भ्रम में कैद कर लिया है कि, उसकी जिंदगी में कुछ है ही नहीं, क्योंकि, पति को सरकारी नौकरी जो नहीं है। जबकि मांजी मैं अपने सभी भाइयों से ज्यादा कमाता हूं। निहारिका कहती, हां, हां, सरकारी नौकरी की फैसिलिटी तो नहीं है न। मनीष कहता, पर कम भी तो नहीं है, निहारिका, और मनीष का पति-पत्नी का रिश्ता भी खराब हो रहा था। मांजी “उसे जो कुछ जिंदगी से मिला था उसमें वह खुशी न ढूंढ सकी!”

हां बेटा मैं समझ रही हूं, मुझसे भी ढंग से बात न करती, मुझे भी बहुत दुःख होता, अपनी बेटी के लिए। आप इसे डॉक्टर को दिखाइए। मनीष बिना निहारिका को बताए, निहारिका के बारे में डॉक्टर से सलाह लिया। तो उसे, हकीकत से रूबरू कराने कहा गया। साथ ही कुछ दवाइयां दी गई। कहा गया की, वह जो है, वह नहीं देख पा रही है, वह जो नहीं है, उसके बारे में सोच रही है। फिर मां ने, निहारिका को, आईना दिखाया, धीरे-धीरे दवाई और  मां बार-बार जो कहती, जो है उसे देखो, तुम सबसे बेहतर हो। प्राइवेट रहकर भी, बच्चों को इतनी अच्छी शिक्षा दे रही हो, तुम्हारे पास किसी चीज की कमी नहीं है, सब तुमको प्यार करते। असर हो रहा था, निहारिका पर, निहारिका बदल रही थी, खुद की अहमियत समझ आ रही थी। मनीष से भी प्यार से पेश आती। आखिर मां की मेहनत और मनीष का साथ काम आया। आज निहारिका बहुत खुश है। न किसी से उसे, न किसी को उससे कोई शिकायत है।

 

 

चाँदनी झा 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!