घर को दोनों की ही जरूरत है!!! – मधू वशिष्ठ 

मम्मी रीना ने आज फिर बिना नहाए ही रसोई में गैस जलाई है। बिना भगवान का भोग लगाए कुछ भी खा लेती है। आप तो उसे कुछ नहीं कहती जो मर्जी पहनती है। जब से रीना और पवन हैदराबाद से आए हैं तब से भावना जी दोनों बहुओं के बीच रेफरी की ही भूमिका निभा रही थी।

               पवन की नौकरी हैदराबाद में थी और वहीं उसने ऑफिस की सहकर्मी रीना से विवाह का फैसला कर लिया था।  शादी तो दोनों परिवारों की रजामंदी से हुई थी लेकिन नीता और भावना जी पवन की शादी नीता की चचेरी बहन प्रिया से करना चाहते थे। लेकिन रीना से रजामंदी होने पर रीना के माता-पिता ने हैदराबाद से दिल्ली में ही आकर दोनों का विवाह करवा दिया था और शादी के दो-तीन दिन बाद ही पवन और रीना भी हैदराबाद चले गए थे।

        नीता  भावना जी का और उनके संस्कारों का पूरा ख्याल रखती थी। जब से नीता के दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे तब से नीता ने ही घर का सारा काम संभाल लिया था। भावना जी तो  बच्चों के साथ ही अपना समय व्यतीत करती थी। विनय और वर्मा जी तो सुबह ही खाना खाकर दुकान पर निकल जाते थे।

      पवन की ट्रांसफर नोएडा होने पर भावना और वर्मा जी की खुशी का कोई ठिकाना न था। उम्र के इस दौर में अगर सारे बच्चे साथ रहे तो खुशी बयां नहीं की जा सकती। लेकिन रीना के आने के बाद रोज कोई ना कोई नई उलझन आन खड़ी होती थी। रीना को ना तो कोई रीति रिवाज का पता था और ना ही वह बहु नीता के जैसे पारंपरिक साड़ी पहन कर सर ढक सकती थी। भावना जी देखती थी कि रीना  घर में एडजस्ट करने की पूरी कोशिश कर रही थी। हैदराबाद की नौकरी तो वह छोड़ आई थी और 5 महीने बाद वह भी मां बनने को थी। खाली समय मिलने पर वह नीता और उसके तीसरी और चौथी में पढ़ने वाले दोनों बच्चों को भी होमवर्क इत्यादि करवा देती थी। रसोई में भले ही उसे पारंपरिक सब्जी रोटी अच्छी नहीं बनानी आती थी लेकिन फिर भी पिज़्ज़ा पास्ता या ऐसी कोई भी चीज वह ब्रेकफास्ट में या शाम को सबको बना कर खिलाती थी।



           कई बार जरूरत पड़ने पर वह गाड़ी लेकर बाहर के काम भी कर आती थी। भले ही उसे त्योहारों पर कुछ करना ना आता हो लेकिन जैसे जैसे नीता कहती थी वह मानती थी। नीता को उसका अलमस्त व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। हालांकि भावना जी भी  घर की परंपरा में चूक  बर्दाश्त नहीं कर सकती थी  लेकिन अब अपने छोटे बेटे बहू का दोबारा से कहीं और जाना भी वह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।

अंत में यह फैसला हुआ कि रीना के बच्चा होने के बाद रीना और पवन ऊपर शिफ्ट कर जाएंगे और नीचे नीता के साथ वर्मा जी और भावना जी पहले के जैसे ही रहेंगे। वर्मा जी ने यह फैसला भी किया कि अब गांव का मकान बेच देंगे और उन पैसों से दोनों बच्चों को अलग करने से पहले घर को और अच्छा बनवा लेंगे। पवन हैदराबाद में जब अपने दफ्तर के किसी काम से गया हुआ था तभी विनय और वर्मा जी को भी गांव जाना पड़ा क्योंकि कोई पार्टी उनका गांव का मकान खरीदने को तैयार थी।



           नवरात्रि में नीता पूरे व्रत रखती थी और रोज सुबह 4:00 बजे उठकर वह और उसकी कई पड़ोसिने कालका माई के दर्शन को भी जाती थी। उस दिन उसके जाने के बाद कमरे में बिट्टू 5:00 बजे जग गया और अपनी मम्मी को बिस्तर पर नहीं पाकर वह भावना जी के कमरे की तरफ जा रहा था कि उसका पैर सामने पड़े शैल्फ से टकरा गया। जमीन पर वह और शैल्फ का सामान जोर से उस पर गिरा। उसके माथे से भी बेइंतेहा खून बह रहा था। आवाज सुनकर रीना और भावना जी दोनों दौड़ी आईं। आते ही रीना ने बिट्टू को पकड़ा और उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर डॉक्टर के ले गई। घर में उस समय कोई और आदमी तो था ही नहीं, भावना जी को उसने मिनी के साथ घर पर रहने के लिए कहा।

           9:00 बजे तक जब नीता  घर लौटी और  सारे हादसे का पता लगने पर वह घबरा गई। तभी रीना भी बिट्टू को लेकर वापिस आ गई। उसने बिट्टू के माथे पर पट्टी बंधवा दी थी और पैर में हल्का सा फ्रैक्चर था जिसके कारण कि उसे प्लास्टर बंध गया था। पर उसने दोनों से कहा घबराने की बात नहीं है , माथे पर एक टांका आया था और अब खून भी बंद है।दवाई मैं ले आई हूं। रोते हुए पहली बार नीता ने रीना को गले लगाया और कहा कि मैं तो सोचती थी कि तुम देर से उठती हो परंपरा नहीं निभाती हो ,बेहद मॉडर्न हो , तुम घर के लिए उपयुक्त नहीं हो पर मैं गलत सोचती थी।आज अगर तुम ना होती तो——-?

         तभी भावना जी भी मुस्कुरा कर उठी और बोली नहीं बेटा तुम दोनों ही बहुत अच्छी और मेरी लाडली हो। इस घर को तुम दोनों की ही जरूरत है।  घर की सारी परंपराएं नीता के कारण जीवित रहेंगी और  घर की छोटी मोटी मुसीबतें तो रीना यूं ही दूर कर देगी।भावना जी ने दोनों बहुओं के सर पर हाथ रखा और बोला  तुम दोनों से ही मेरा घर पूर्ण होता है। प्रेम के अतिरेक में गले लगी हुई नीता और रीना दोनों की ही आंखों से अश्रु धारा बह रही थी।

मधू वशिष्ठ 

 

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