“मुझे माफ कर दो रिया – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

कुछ तो बोलो, यूॅं चुप मत रहो। मैं कभी ऐसी गलती दोबारा नहीं करूॅंगा।’’

रिया बिल्कुल चुपचाप सोफा के एक कोने पर बैठी थी, न उसके चेहरे पर गुस्सा था ना दुख जैसे वो पहले से ही तैयार थी इस पल के लिये लेकिन अन्दर ही अन्दर वह जाने कितने झंझावतों से लड़ रही थी। 

“जाओ, मैने तुम्हे माफ किया…….एक बार फिर से।’’ रिया ने थोड़ा रूककर कहा और किचन की ओर चल पड़ी। सोफे के पास जमीन पर बैठा मानव हतभ्रत अवाक सा बैठा रिया को जाते हुये देखता रहा। उसका मन मानने को तैयार नहीं था कि रिया ने आज उसे रेस्टोरेंट में किसी अन्य लड़की के साथ रंगे हांथों पकड़ा था और उसने मानव से एक शब्द भी नहीं कहा। न लड़ी न झगड़ी, ना रोयी। पिछली बार जब उसकी सेक्रेटरी के साथ आफिस के केबिन में उसकी बाहों में देखा था तो बात अपने मायके तक पहुॅुचा दी थी, जाने कितना बवाल हुआ था।

“खाना लगा दूॅं, खाओगे।’’ रिया ने किचन से आवाज दी। रिया की आवाज बिल्कुल सामान्य थी रोज की तरह। मानव अब और भी चैंक गया था, या यूॅं कहे, डर गया था। किसी तूफान के पहले की शान्ति जैसा माहौल लग रहा था। मानव डर और अचम्भे के मिले जुले मिश्रण के साथ जाकर चुपचाप डाइनिंग पर खाना खाने बैठ गया। कनखियों से वो रिया को देख रहा था जो कि बिल्कुल सामान्य दिख रही थी, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिये वो अपना काम करने में मस्त थी। 

दिन बीत रहे थे। रिया ने कोई झगड़ा नहीं किया, न ही अपने माता पिता को कुछ भी बताया न ही मानव के माता पिता से। जिन्दगी दोबारा पटरी पर आ गयी। एक दिन मानव अपनी मीटिंग के सिलसिले में एक होटल में बैठा था तभी उसकी नजर कुछ दूर पड़ी एक टेबल पर गयी जहाॅं पर रिया किसी आदमी के साथ बैठी हुई थी। ’’रिया ने मुझे तो कुछ नहीं बताया था कि वो किसी से मिलने वाली है, ये है कौन?’’ मानव का मन बिल्कुल भी मीटिंग में नहीं लग रहा था। वो जल्दी से जल्दी मीटिंग खतम कर रिया के पास जाना चाहता था लेकिन उससे पहले ही रिया वहाॅं से उठकर चली गयी। 




मीटिंग खतम करने के बाद जब मानव फ्री हुआ तो उसने तुरन्त रिया को फोन लगाया,

“कहाॅं हो तुम?’’

“बाहर आयी हूॅं, एक दोस्त के साथ।’’

“किस दोस्त के साथ।’’

“मानसी’’

“मानसी? तुम मुझसे झूठ बोल रही हो। मैने तुम्हे देखा होटल मे, कौन था वो?’’

“ओह तो तुमने देख लिया, साॅरी।’’ रिया ने हंसते हुये जवाब दिया और फोन काट दिया। 

“साॅरी….. ये कैसा जवाब था।’’ मानव एकदम झुझला उठा। शाम को मानव ने घर पहुंचते ही रिया से फिर से उसी बात को लेकर सवाल किया लेकिन रिया के चेहरे पर केाई घबराहट नहीं थी, “हाॅं वो मेरा एक दोस्त है, अगर मिल लिया तो क्या बुराई है?’’ 

“तो तुमने मुझसे झूठ क्यों बोला, सच भी तो बोल सकती थी।’’

“जरूरी है क्या, हर बात तुम्हे बताउॅं?’’

” और तुमने अपने फोन में पासवर्ड क्यों लगा रखा है?’’

“अच्छा वो भी चेक कर लिया तुमने।’’ रिया ने तंज कसते हुये कहा। 




“हाॅं, और मुझे पता है कि तुम किसी से छिप छिप कर बातें भी करती हो।’’

“अच्छा ठीक है, साॅरी…..बस खुश।’’ रिया के मुॅंह से सारी शब्द किसी मजाक की तरह सुनाई दे रहा था। 

“साॅरी…..तुम्हारे साॅरी में कोई शर्मिन्दगी नहीं है, तुम्हे अपनी गलती का अहसास भी है?’’ मानव के चेहरे पर चिन्ताओं की लकीरे गहरी होती जा रही थी। 

“तुम्हे हुआ कभी अपनी गलती का अहसास? क्या तुम कभी शर्मिन्दा हुये अपनी किसी हरकत पर?’’ रिया के चेहरे पर गम्भीरता के साथ साथ क्रोध की झलक दिखने लगी। रिया के एक सवाल ने मानव को उसकी पिछली हर हरकत का एक नजारा दिखा दिया जब वो रोज नई नई लड़कियों से फोन पर बात करता रहता था, और उसे हमेशा से ही धोखा देता आ रहा था। सीधी सी बात कही जाये तो मानव को घर की दाल से ज्यादा बाहर की बिरियानी पसन्द थी। 

“मैने तुम्हे हर बार इसलिये माफ किया कि शायद तुम मेरी माफी का सम्मान करोगे लेकिन तुमने हर बार मेरी माफी को किसी और लड़की के कदमों में रख दिया। मैं तुम्हारे हर बार के धोखें से परेशान हो चुकी थी इसलिये इस बार मैने बिना किसी लड़ाई झगड़े के तुम्हे माफ कर दिया और ये सब नाटक किया जिसमें तुम्हारे माता पिता भी शामिल थे लेकिन अगली बार ये नाटक सच भी हो सकता है और उसके लिये मैं तुमसे कोई साॅरी नहीं बोलूॅंगी क्योंकि अब हमारी जिन्दगी में ’’सारी’’ शब्द के मायने पूरी तरह से खतम हो चुके हैं। अब इसे तुम मेरी माफी समझो या धमकी।’’ मानव के पास कोई जवाब नहीं था लेकिन रिया अपनी माफी के साथ साथ अपना फैसला भी मानव को सुना चुकी थी कि शतरंज की बिसात बिछ चुकी है और अब मानव की चाल के हिसाब से ही रिया की चाल होगी।

मौलिक 

स्वरचित 

अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “

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