पिता का क्षमादान – सरोज माहेश्वरी

 भारत के एक गांव में रामदीन अपनी पत्नी ,बच्चे के साथ रहते थे। अपनी थोड़ी सी पुश्तैनी ज़मीन पर खेती बाड़ी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। खुद्दारी इतनी किसी से भी कोई मदद न लेते। उनका एक बेटा रोहित था …. रोहित उनकी जान था। रामदीन बेटे को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाना चाहते थे। रोहित भी बड़ा होने के साथ साथ माता पिता को भगवान के रूप में मानता था।

            रोहित बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि था।गरीब रामदीन  ने कर्ज लेकर उसे शहर पढ़ने भेज दिया। बड़ा होकर वह एक कुशल इंजीनियर बन गया।  नौकरी करके दिन दूनी रात चौगानी उन्नति करने लगा। शुरू शुरू में हर महीने मिलने आता धीरे धीरे यह सिलसिला कम होता चला गया। बूढ़े माता पिता बेटे की पढ़ाई के लिए  कर्ज़ को उतारने में लगे रहे। एक दिन मां ने कहा …बेटे रोहित की बहुत याद आ रही है। कुछ पैसे इकठ्ठे  कर लेते हैं फिर अगले सप्ताह शहर बेटे रोहित के पास चलते हैं। 

        पत्नी की इच्छा को पूरा करने के लिए एक दिन थैले में खाने पीने का सामान बांधकर दोनों बस पकड़कर शहर पहुंचे।वे बेटे से अचानक मिलकर उसे आश्चर्य चकित कर देना चाहते थे सो बिना बताए ही बेटे के दफ्तर पहुंचकर सीधे बेटे के कक्ष में पहुंच गए। रोहित इस हालत में माता पिता को देखकर आश्चर्य चकित रह गया। थोड़ी देर में रोहित के कुछ सहायक कमरे में कुछ काम के लिए आए उन्होंने इंग्लिश में पूछा .. सर! ये लोग कौन हैं। रोहित ने अंग्रेजी में उत्तर दिया ..ये मेरे सर्वेंट हैं।सहायकों को ऐसा अनुभव कराया जैसे उसकी ज़िंदगी में उनका कोई महत्व नहीं हो… माता पिता आंग्ल भाषा से अनभिज्ञ थे।वे सर्वेंट का मतलब कुछ और समझ बैठे। उन्हें अपने बेटे पर इतना विश्वास था कि वे बेटे के हावभाव को भी न समझ पाए।

      थोड़ी देर रुकने के बाद माता पिता गांव वापस आ गए।आस पड़ोस के लोगों ने पूछा तो रामदीन ने बताया कि बेटे ने बहुत सत्कार किया वह बड़ा अफसर बन गया है। उसने अपने सहायक को बताया कि ..”.ये हमारे सर्वेंट हैं” हमारे लाडले ने हमें बहुत सम्मान किया। आज उसने हमें भगवान कहा। रामदीन सर्वेंट का मतलब “भगवान ” समझ रहे थे।जब गांव के एक युवक ने बताया कि सर्वेंट का मतलब नौकर होता है तब रामदीन को लगा मानों उन्हें किसी ने सातवें आसमान से नीचे धकेल दिया हो। उन्हें बहुत दुःख हुआ बचपन में माँ बाप को भगवान मानने वाला बेटा उन्हें नौकर कैसे कह सकता है … उनकी नज़रों में बेटे का यह कृत्य माफी के योग्य न था ….सो रामदीन ने अपने बेटे से फोन पर भी बात करना भी बंद कर दिया… पद और धन के मद में बेटे ने भी में मां बाप की कोई ख़बर न ली।

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                                  भविष्य के गर्त में क्या छिपा है यह कोई नहीं जानता….कभी कभी ज़िन्दगी ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहां पर केवल अपनों का सहारा ही नज़र आता है…हुआ यूँ….रोहित जिस कम्पनी में काम करता था वह कम्पनी बंद हो गई।उसकी नौकरी चली गई ….जैसे तैसे सेविंग के पैसों से चार छः महीने तक घर का खर्च चलता रहा …व्यापारिक मंदी के कारण उसे दूसरी जगह भी नौकरी नहीं मिल रही थी।अब फ्लैट का किराया देना मुश्किल हो रहा था….तभी  एक और मुसीबत ने दस्तक दे दी।रोहित की बेटी स्कूल से आते समय एक वाहन से टकरा गई उसके सिर पर गहरी चोट आई । अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ डॉक्टरों ने आपरेशन करने की सलाह दी…कहीं से भी पैसे की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी …. रोहित के तथाकथित सभ्य  दोस्तों और रिश्तेदारों ने हाथ खड़े कर दिए…अब रोहित को केवल गांव में पिता का ही सहारा नज़र आया….रोहित समझ गया था कि उसने सर्वेंट कहकर पिता का अपमान किया है।वह किस मुंह से मां पिता के पास जाए…. वह अपने जन्मदाता से माफ़ी मांगना चाहता था….दूसरे दिन गांव जाकर पिता के चरणों में गिरकर माफी मांगी …पिताजी! मुझे माफ कर दो।मैं अपने कृत्य पर बहुत शर्मिन्दा हूँं,जो मैंने ईश्वर समान माता-पिता को अपनी झूठी शान में आकर सर्वेंट जैसे शब्द से सम्बोधित कर अपने-आप को महान समझने की कोशिश की…मुझे माफ़ कर दीजिए …माफ़ कर दीजिए।आपके आशीर्वाद के बिना यह जीवन निरर्थक हैं। 

                                    रामदीन ने कहा…रोहित!वैसे तो तुम्हारा यह कृत्य क्षमा के योग्य नहीं हैं। युवकों में इस तरह की पनपती मानसिकता समाज़ में नैतिकता का हनन करती है। खून के रिश्तों में जहर घोल सकती है।इससे समाज़ में विकृतियां पैदा होती हैं। सफलता की सीढिय़ाँ चढकर भविष्य में तुम्हारे बच्चे तुम्हें ऐसी ही नज़रों से न देखे यह मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा….यह तुम्हारा तथाकथित नौकर तुम्हें माफ़ करते हुए अपनी आधी जमीन बेचकर अपनी पोती का इलाज अवश्य कराएगा…यह कहते हुए रामदीन ने अपनी आधी जमीन के कागज़ों पर हस्ताक्षर करते हुए बेटे रोहित की ओर बढ़ा दिए…. रोहित के नेत्रों से अश्रु की अविरल धारा बह निकली और पिता को अपने आगोश में भरकर उसे प्रतीत हुआ कि उसे मानों “क्षमादान” मिल गया….

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना 

सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)

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