समान अधिकार – स्नेह ज्योति

हम दोनो भाईयों का छोटा सा परिवार एक ही छत के नीचे अपने गाँव में रहता था । जब बाबू जी की तबियत ख़राब रहने लगी तो बड़े भाई ने बाबू जी से वसीयत बनाने को कहा, करते क्या ना करते बाबू जी ने पेपर बनवा के दोनो भाईयो के हिस्से बराबर कर दिए ।

लेकिन ये बात बड़े भैया को अच्छी नहीं लगी ।”बाबू जी इसकी तो दो लड़की है वंश तो लड़कों से आगे बढ़ता है इसको ज़्यादा देने की क्या ज़रूरत है ? “अपने भाई की ऐसी छोटी सोच जान विजय को आश्चर्य हुआ वो बहुत कुछ कहना चाहता था ।लेकिन उससे पहले बाबू जी ही बोल पड़े “तू कौन होता है !! मुझे समझाने वाला”तुम तो दो ही भाई हो ।

हमारा सोचो हम सात बच्चे थे अपने माँ-बाप के उन्होंने कभी कोई फर्क नही किया ,सब भाई बहनो को बराबर दिया और किसी ने कोई गिला भी नही किया और तुम दो होके ये बोल रहे हो ! दोनो को बराबर मिलेगा चाहें तुम्हें पसंद हो या ना !!

कुछ दिनो में बाबू जी चल बसे ! सब वीरान हो गया । घर में बड़ो का साया हो तो हिम्मत मिलती है और बरकत भी रहती है पर ये बाते अपनों को खो देने के बाद ही समझ आती है । भले ही दोनों भाईयो में प्यार ना हो, पर इनके बच्चों में सगों से बढ़कर प्यार था ।

जब राखी आती तो दोनों बहने अपने ताया के बेटों को राखी बांधती और दोनों भाई भी अपनी बहनो से बहुत प्यार करते थे ।उनके लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहते थे । ये देख मानसी के बदन पे साँप लौटने लग जाते थे ।”बता ये दोनो भाई तो ऐसे करते है जैसे ये इनकी सगी बहनें हो “। दुनिया जले तो जलती रहे,इन चारों ने कभी अपने बीच अपने बड़ों की नफ़रत को आने नहीं दिया ।

विजय अपनी बेटियों को खूब पढ़ा-लिखा अपने पैरों पे खड़ा देखना चाहता था ।शांता कहती रहती की लड़कियाँ है थोड़ा तो लड़की वाले काम भी सीखने दो ! विजय कहता क्या शांता लड़की है तो क्या ? देख लेना बुढ़ापे में यही सहारा बनेगी ! और “आज की दुनिया में बेटी कोई बेटो से कम नही है “।

वही वीरेंद्र दो बेटे होने के बावजूद भी वो परेशान ही रहता क्योंकि दोनो पढ़ाई से भागते थे । अपने बच्चों के भविष्य का सोच वो अपने भाई की ज़मीन पे नज़रें लगाए बैठा था ।इसकी ज़मीन की कीमत मेरी ज़मीन से ज्यादा है और जगह भी काफी अच्छी है जो आगे जाकर मुनाफ़ा ही देगी ।एक तरफ वीरेंद्र ज़मीन हासिल करने की कश्मकश में लगा था ।




वहीं दूसरी ओर रूही और पीहू दोनो ने कॉलेज में टॉप किया और एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी करने लगी । इसी बीच विजय को कैन्सर हो गया और दिन प्रति दिन हालत ख़राब रहने लगी । शांता भी आने वाले कल का सोच इनके बाद हमारा क्या होगा ! भाई साहब तो वैसे ही हमें इस घर से निकालने की आस लगाए बैठें हैं ।काश मेरा भी एक बेटा होता ! जो अपने परिवार की ढाल बन सब को सुरक्षित रखता ।अगले ही पल विजय के प्राण यमराज द्वारा हर लिए गए और शांता की सोच धीरें-धीरें सच का रूप धारण करने लगी ।

कुछ महीनों बाद वीरेंद्र शांता के पास आए और बोले मैंने विजय के इलाज के लिए तुम्हें कुछ रुपए उधार दिए थे।अब वो मुझे वापस चाहिए ।

लेकिन भाई साहब मैं विधवा अकेली ! कमाने वाला कोई नही,तो आपका उधार कैसे चुकाऊँगी !!

मुझ पे दया करो जब होंगे तो दे दूँगी ।

रुही – माँ आपको हाथ जोड़ने की ज़रूरत नही हम इनके पैसे चुका देंगे।

शांता- कैसे चुका दोगी ?? चुप रहो !

रूही – नौकरी कर के माँ,”लाखों लड़कियाँ काम करती है मैं भी काम करूँगी”

पीहू – लेकिन आपकी पढ़ाई ???

मेरी जगह तुम पढ़ना !!

रोज़ रूही नौकरी ढूँढने जाती पर निराशा ही हाथ लगती । ऊपर से ताया जी को किश्त देने का समय आ रहा था, यही सोच सड़क पे बेसुध हो रास्ता पार करने लगी ,तभी मेरे दोनो भाई आए और मुझे बचा लिया ।क्या रूही तुम्हारा ध्यान कहाँ है अगर कुछ हो जाता तो ! ये लो पहली किश्त के पैसे पिता जी को जाकर दे दो ।

लेकिन भैया ये तो आप लोगों के पैसें है तो मैं कैसें ??

तो क्या हुआ तू हमारी बहन है और भाई अपनी बहन को अकेला कैसें छोड़ सकते है ??

माना आज मेरी माँ का कोई बेटा नही है , पर मेरे भाई हमेशा मेरे लिए खड़े रहेंगे । इसी होसले की वजह से मैं डट के खड़ी रही ।

आज मेरे पास एक नौकरी है जो ज़्यादा बड़ी तो नही है पर हम सब खुश है पीहू भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई।

लेकिन आज तो हद हो गई ताया जी ज़मीन के कागज बनवा कर ले आए और माँ से साइन करवाने लगे । जो कर्ज लिया है वो तो अब चुकाना पड़ेगा क्योंकि समय सीमा समाप्त हो गयी है ।

ये देख शांता सोचने लगी बताओ ये अपने सगे भाई के बच्चे बीवी के साथ ऐसा कर रहे है ,और एक तरफ़ इनके बेटे है जो हमें सगों से बढ़ कर प्यार और रक्षा करते है कितना फ़र्क़ है ….

माँ ने मुझे कुछ ना बोलने दिया और पेपर साइन कर दे दिए।

फिर भी उनकी लालच की भूख शांत नही हुई और वो हमारे घर को भी हड़पने की साज़िश करने लगे । पीहू इन सब बातो से अनजान दूसरे शहर पढ़ने गई हुई थी ।वक्त बदला पर ताया जी की साजिशें नहीं बदली ।




आज के जमाने में भी कई जगह पंचायत की महफ़िल सजती है । उन्ही में से एक हमारा गाँव भी है ।वैसे तो उन्नति विकास की बाते करते है पर पंचायत में आज भी पुराने नियम पुरानी सोच के आधार पर ही फ़ैसले होते है ।

वीरेंद्र बोला पंचो मेरे भाई के कोई बेटा नहीं है बस दो बेटी ही है ।जो कल को शादी कर चली जाएगी, अगर ये अपना घर मेरे नाम कर दे तो मैं इनकी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार हूँ । आज एक जुल्म करने की पेशी हैं,कोई नही हैं साथ हमारे सब पैसे के भोगी है ।

तभी मेरे भाई पीहू के साथ सभा में उपस्थित हुए ,उन्हें देख एक उम्मीद सी जागी ,पर सब पंचों ने अपना मन बना लिया था । तभी पीहू बीच में बोल पड़ी “माफ़ करना सरपंचो आप का निर्णय मान्य नहीं है “ अब नया दौर है नयी बात करो । लड़की कोई लड़कों से कम नही है अब बाप की प्रॉपर्टी में भी उसका हक़ हैं तो तुम कौन होते हो ये सब छीनने वाले ??

पीहू जो अब पेशे से एक वकील बन चुकी थी , ताया के सब दाव पेंच समझ गयी थी ।

ताया जी घर में कोई मर्द नही है तो नारी को अबला बेचारी ना समझना ,छठी का दूध याद दिल दे ! ऐसी है आज की नारी ,जल्दी करो कही आ ना जाए तुम्हारी बारी !!

ये सब सुन पंचायत भी बर्खास्त हुई ,क्योंकि वो तो सिर्फ़ नोट के ज़ोर पे बनी थी । सब एक एक कर साफ गए ।ताया जी भी अब भाप गए ,नहीं चलेगा अब कोई ज़ोर क्योंकि छोरी है अब छोरों पे भारी …..

शांता भी आज बहुत खुश थी और विजय को याद कर शुक्रिया अदा कर रही थी ।जो उन्होंने मेरी ना मान लड़कियों को इतना पढ़ाया-लिखाया कि आज वो मेरे दो बेटों के रूप में मेरे दो मज़बूत बाजू बन संग खड़ी है ।

वीरेंद्र को भी अपनी गलती का एहसास हुआ जब दोनो बेटे उन्हें छोड़ के चले गए । ये सब मैं अपने बेटों के लिए कर रहा था ,पर आज वो ही मेरे संग नही तो किस काम की ये दौलत …..

आज शांता की ख़ुशी देख मुझे जलन होने लगी और मैं जान गया कि लड़का या लड़की होने से ज़्यादा औलाद का होना जरूरी है जो आपके साथ खड़ी रहे ।

शांता की दोनो लड़कियों की अच्छी जगह शादी हो गयी पर उन्होंने अपनी माँ को नही छोड़ा कभी एक बेटी के पास तो कभी दूसरी के पास रह ज़िंदगी हंसी- ख़ुशी कट रही थी ।तो दूसरी ओर वीरेंद्र जो हमेशा कहता रहा लड़कों से वंश चलता हैं ,पर आज अकेला बिना वंश के जी रहा था शायद यही उसकी सजा है ।

#अप्रैल मासिक

तीसरी स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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