दादी का पेंशन – उमा वर्मा

दादी, दादी देखो ये तुम्हारा पेंशन आ गया मंजूर हो कर ।मीरा चिल्लाती हुई दादी के कमरे में भागी ।” अब उठो भी दादी,कितना देर तक सोती रही हो” दादी का हाथ पकड़ कर बैठ गयी वह ।” यह क्या? दादी का हाथ तो एक दम ठंढा है” अम्मा, देखो न दादी को” सरला दौड़ कर आयी।” अम्मा नहीं रही”। यह अचानक कैसे हो गया? अभी थोड़ी देर पहले तक तो ठीक ठाक थी।सब को आश्चर्य हो रहा था ।बेचारी अम्मा! पेंशन के लिए कितना परेशान थी।

अब मिला भी तो किस काम का ।सरला उनकी बहू  हमेशा उनका खयाल रखती थी ।खाने पीने से लेकर सारी सुख सुविधा पर ध्यान देती ।लेकिन अम्मा जी तो बस अपने पेंशन के लिए रट लगाए रहती ।पोती पूछती ” क्या करोगी दादी पेंशन का?” अरे करना क्या है? मुझे खाने पीने की दिक्कत थोड़ी न है ।जो सब लोग खाते हैं वह मै भी खाती हू।जो पहनते हैं वैसा ही मुझे भी देते हैं ।लेकिन अपने हाथ के पैसे की बात ही अलग होती है ।अब मुझे किसी को देने का मन है तो क्या बेटा बहू से माँग कर देंगे ।

अच्छा लगता है क्या? कभी तुम लोगों का जन्म दिन है, कभी अपने ही बेटे बहू को देना चाहूँ तो क्या उसी से माँग कर उसी को देंगे? नाती पोतों को कहाँ से देंगे? सिर्फ खाना और पहनने के अलावा भी बहुत सारी जरूरत होती हैं पैसे की ।इस आर्थिक युग में पैसे की बहुत अहमियत होती है बेटा ।अपना पैसा हो तो इज्जत भी करते हैं सब।दादी के बात में दम था ।सही कह रही थी वह ।दादी बहुत अच्छी थी ।सब को प्यार करने वाली ।दादी का चले जाना मीरा के लिए बहुत दुखद हो गया था ।उसे याद आया एक दिन अखबार में पेंशन के बारे में लिखा था कि सरकार ने सीनियर सिटीजन का और विधवा पेंशन को एक हजार रुपये का कर दिया है ।बस तभी से दादी बेचैन हो गई थी ।

खुद ही जाकर फार्म ले आयी,खुद ही सारे डिटेल  भर दिया ।कुछ जरूरी पेपर के फोटो कापी करा आई।सारे काम के लिए दौड़ती रही ।पढ़ी लिखी तो थी ही ।अब जमा करना था तो उसके लिए भी तैयार हो गई ।सीओ आफिस में गयी तो मालूम हुआ वार्ड आफिस से साइन चाहिए ।बेचारी पोते को लेकर दौड़ती रही ।लेकिन बात नहीं बनी ।हिम्मत हारना दादी ने नहीं जाना था ।थक जाती ।फिर दौड़ती ।लोगों ने कहा ब्लाक आफिस में जमा होगा ।फिर पोते को खुशामद किया ” बेटा, इस बार जमा कर दो” पैसे मिलते ही सबसे पहले तुम्हारी फरमाइशी पूरी ।




एक हजार बहुत है मेरे लिए ।खाने पहनने की जरूरत ही क्या है ।वह तो मेरा बाल बच्चा करता ही है ।दादी उंगली पर जोड़ती ” अगर मै दस साल जी गयी न,तो बहुत पैसे जमा हो जायेंगे ।सरला मजाक में पूछती ” अम्मा जी, इतने पैसे का क्या करेंगी? ” ” तुम ही  लोगों को बाँट देंगे और क्या ” लेकिन देखते देखते पाँच साल बीत गए ।पेंशन नहीं मिलना था, नहीं मिला।वे सोचती लोगों ने भरोसा तो दिलाया था कि आपको पेंशन जरूर मिल जायेगा ।लेकिन कहाँ मिला?

 समय आगे बढ़ने लगा ।बच्चे भरोसा देते।” हमलोग हैं न दादी, आपकी हर जरूरत पूरा करने के लिए ” दादी कहती- हाँ बेटा, तुम लोग तो हो ही ” पर मिल जाता तो काम चल जाता ।अब नहीं मिलेगा तो क्या जान दे दे ? कभी पढ़ा था कृश्न चन्द्र का लिखा हुआ ” जामुन का पेड़ ” आँधी तूफान से एक आदमी पर जामुन का पेड़ गिर गया था ।

वह चिल्लाने लगा ” मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ” लेकिन सरकारी काम का लेखा जोखा इतना कठिन हो गया कि पेपर हर हाथ से, हर आफिस में जमा होता और वापस आ जाता।सरकारी तंत्र ऐसे ही चलता रहा और वह आदमी मर गया ।लेकिन जामुन का पेड़ नहीं हटा ।दादी अपने जमाने में पढ़ने की बहुत शौकीन थी ।घर में पुस्तकों की लाइब्रेरी बना कर रखा था, मजाल कि कोई उनकी पुस्तकों को इधर से उधर कर दे।अब दादी लगभग निराश हो चुकी थी ।

जीवन के थोड़े दिन शेष रह गयें हैं ।न मिले पेंशन ।उसके लिए जान नहीं देना है ।पैसा बहुत जरूरी है लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं है ।मेरे पास मेरा अच्छा परिवार भी तो है ।मैं बहुत भाग्यशाली हूँ ।अब दिमाग से पेंशन की बात को निकाल देना है ।मन हल्का हो गया है ।जब किसी चीज की लालसा खत्म हो जाती है तब मन शान्त हो जाता है ।यह सोचकर दादी सोने चली गई ।अब चैन की सांस लेने का समय आ गया है ।गहन नींद में सोयी हुई थी कि पोती दौड़ती आई।” दादी, ये लो तुम्हारे पेंशन का पेपर, मंजूर हो गई है ।अब खुश हो जाओ” पर दादी कहाँ थी? वह तो चैन की नींद सो गयी थी हमेशा के लिए ।उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित ।

#माफी

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