कार दरवाजे पर आकर खडी हो गयी थी,
कला का मन बार बार उधर ही जा रहा था! नयी बहू आयी थी “
पर वो खुद को रोके हुए थी!
वजह उसका विधवा होना, अंश उसका इकलौता बेटा था!
नीचे बहू परछन की तैयारी हो रही थी!
बड़ी ननद ने सारा जिम्मा लिया था और निभा भी रही थी!
कही कुछ कमी नहीं “
अरे कला नीचे चल अब तो बहू का मुहं देख ले,
इतनी प्रतीक्षा की कुछ देर और सही,
चल ठीक है, तेरी इच्छा, पडोसन सविता बोली “
कुछ ही घंटो में सारे रीति रिवाज समाप्त हो गये, पर कला के कान उधर ही लगे थे!
कला भाभी,
बडी ननद की आवाज थी, जो दरवाजे पर अंश और नयी बहू के साथ खडी थी!
अंश बहू के साथ कला के समीप आ गया,
माँ “
कला ने बाहे फैला दी “
पर अंश उसके पैरों में झुक गया ” जुग जुग जिऐ”
उसने अंश को गले लगा लिया “
कोमल हाथों ने उसके पैरों को धीरे से छुआ, कला अंश को हटा झट से नीचे झुक गयी “
बहू को गले लगा लिया, बहू घूघट मे थी, पर उसने महसूस किया की उसकी आंखे सजल हो गयी!
माँ पिता को छोड़कर आयी थी,
कला के गले लगते ही सुबक पडी “
कला उसके सिर पर हाथ फेरे जा रही थी!
कला के मन मे एक और ममत्व का बीज उग गया””
भाभी अब आप संभालो अपनी गृहस्थी, हमे भी आज्ञा दो”
अरे दीदी आज आप नही होती तो कैसे सबकुछ सम्भालाती,
ननद के सम्मान मे दोनों हाथ बंध गये कला के “
आज अनुज भैया होते तो, आंखे भर आयी, बडी ननद आरती की “
दीदी “” एक कसक सी जाग उठी, कला के सीने में “”
भाभी चलो सारे मेहमान जा रहे है,!
बेटा” अब तुम दोनों यही आराम करो, दोनों थक गये होगे “
अंश की आंखों में नीदं साफ झलक रही थी!
कला, ननद आरती के साथ बाहर आ गयी!
पूरा घर मेहमानों के जाने के बाद बिखरा पड़ा था!
कला साफ सफाई में लग गयी “
दो चार खास मेहमान अभी भी रूके हुए थे!
अब तक कुछ घंटे बीत चुके थे!
उसे अंश और बहू की याद आयी, वो रूम की ओर बढ गयी,
दरवाजा खुला था,
अंश पंलग पर सोया था, और बहू नीचे बिछी चटाई पर,
कला बहू के करीब आ गयी,
उसके मन में आया बहू को उठा कर पंलग पर सुला दे “
पर नींद टूट जाऐगी, ये सोच कर नही उठाया “
उसे चद्दर उढा कर बाहर आ गयी!
दीदी शाम के खाने में क्या बना दूं,,,
कला की छोटी भाभी ने पूछा जो की वही रूकी हुई थी!
भाभी जो मन करे “
ठीक है दीदी, भाभी रसोई की ओर बढ गयी!
आज अंश मे कला को अनुज की छवि नजर आयी “
पर अब समय बदल चुका था!
उन तीन सालो में अनुज ने कला को सारी खुशियाँ दे दी थी!
कला पुरानी यादों में खो गयी!
कला, की नींद खुल गयी, बाबू जी माँ को बता रहें थे, जमींदार का इकलौता बेटा है, तीन बहने है, अपनी कला राज करेगी,
आगे से रिश्ता आया है, बहुत किस्मत वाली है हमारी कला बिटिया “””
हा जी कल ही चलते हैं, माँ की आवाज में खुशी साफ झलक रही थी!
कला खुद मे ही शर्माकर सिमट गयी, अनुज के जाने कितने चित्र उसके मन ने बुन दिऐ “
फिर वो दिन भी आ गया, कला अनुज के साथ गठबंधन मे बंधकर हवेली आ गयी” हवेली की शानोशौकत, ने कला की जिन्दगी मे चार चांद लगा दिया “
अनुज कला की जोड़ी विधाता ने ख़ुद बनायी थी!
समय का पहिया खुशियों के पल इतनी जल्दी निगल लेता है,
की कब दुख का समय आ जाऐ समय को भी शायद पता नही होता!
विवाह के तीन बरस बीत चुके थे! नन्हा सा अंश कला और अनुज के जीवन में किलकारियां भर रहा था!
अचानक एक दिन मनहूस समय ने, सबकुछ निगल लिया “
अनुज की लाश नदी के किनारे मिली,
कला नन्हे अंश को सीने से चिपकाऐ , बेजान सी खडी थी “
हवेली मे कोहराम मच गया!
दादी सास ने सिर पीट लिया, हमार बचवा कल ही तो हमसे मिलकर गया था!
ससुर जी, सिर झुकाये बैठे थे!
भीड में तरह तरह की बाते हो रही थी!
अचानक से अंश कला की हाथों से छीन लिया गया!
और उसे गाँव की चौपाल वालो ने अपने कब्जे मे कर लिया “
कला बेटे के लिए भीख मांग रही थी!
पर उसकी बातों को सब अनसुना कर रहें थे! ननदो के चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी!
कला के सारे रंग उससे छीन लिऐ गये,
अनुज के जाने का दुख, और उस पर अंश, वो जार जार रोये जा रही थी!
उसे धवल धोती पहना दी गयी थी!
उसे कुछ कट्टर लोगों ने धमकाना शुरू कर दिया था “
समय कम है, सूर्य अस्त के पहले ही सती माता को अग्नि में प्रवेश करना होगा!
थोड़ा जल्दी करो, लोग इकट्ठा हो रहे है!
ये किसकी बात कर रहे है, चौकी कला,
तुम्हारी एक अंधेड औरत बोली “
कला की रूह काँप गयी, नही मैं नही अग्नि में, प्रवेश न करूंगी “
मेरा अंश कैसे जिऐगा,
तुम इतिहास मे अमर हो जाओगी, हमारे गाँव का गौरव बढ जाऐगा, एक वृद्ध बोला “
नही मुझे जीना है,!
पति के बाद औरत को जीने का अधिकार नहीं होता “
कला ने उठकर भागने की कोशिश की पर कामयाब नही हुई,
उसे दबोच लिया गया!
इसे घोल पिलाओ, बाहर भीड जयकारे लगा रही है ज्यादा , देर करना सही नही होगा “
प्यास से गला सूख गया था! कला का “
पानी, मांगा उसने “
उस प्रोढ औरत ने उसे मिट्टी का कुल्हड पकडा दिया!
कला ने बिना देखे ही उसे गटक लिया, उसका मुहं कडवाहट से भर गया “
क्या पीला दिया मुझे, कला ने वहाँ उपस्थित लोगों से पूछा,
कनक रस”
अब कनक रस का प्रभाव बढने लगा था!
उसकी आंखो के सामने सब धुधंलाने लगा,
तुम सती माता हो, हम गाँव वालो को हमेशा अशीर्वाद प्रदान करना जय हो सती माता की, मेरा अनुज, मेरा अंश कैसे जिऐगा मेरे बिना दया करो मुझे जीने दो “
उसकी आवाज को कोई नहीं सुन रहा था!
सती माता की जय “
उसके वस्त्र उतार दिऐ गये, नये सफेद वस्त्र मे शायद वो देवी लग रही थी!
माथे पर बडा टीका बडी नरियल की माला “
जिसका बोझ उसके कंधे नही उठा पा रहे थे!
उसके दोनों पैरो में एक सुतली बंधी थी जो किसी को नजर नहीं आ रही थी ” जो धोती से ढकी थी, इस वजह से उसकी चाल धीमी थी “
जय जयकारे गूंज रहे थे!
उसने ससुर की ओर देखा, उनकी गर्दन झुकी हुई थी,
उसे घृणा हुई “
कला पर कनक रस का असर तेजी से हो रहा था! उसकी सुधबुध खोने लगी, सामने चिता तैयार थी,
अनुज उसपर लेटा था, मेरा अनुज,,,उसे हटाओ वहा से , उसे मत जलाओ, वो चिता की ओर दौडी पर पैर बंधे होने के कारण गिर गयी!
उसे भीड ने कंधे पर बिठा लिया “
उसके आंसू बह रहे थे!
चिता के पास उसे अंतिम दर्शंन के लिए खडा कर दिया गया “
जनता मान मन्नत चढावा उसे अर्पित करने लगी “
वो सोच रही थी! मूर्ख, मैं खुद सब खो कर जा रही हूँ ” तुम्हे क्या दूगी!
वो खिलखिला कर हंस पडी “”
सती माता खुश है, उनका अशीर्वाद है, हम सब पर”
कनक रस का असर बढ रहा था, और कला के कहकहे भी “
अतिमं दर्शन के लिए, दादी माँ अंश को गोद मे लेकर आयी “
तीनों ननद साथ मे थी!
उसने गौर से देखा, सबके चेहरे पर मायूसी थी “
वो दादी के पैरों में झुक गयी!
दादी मै जीना चाहती हूँ!
वो फुसफुसाई, दादी ने उसे देखा फिर अंश को, उनके चेहरे पर कला को कुछ नजर आया, एक कुटिल मुस्कान के साथ वो चिता की ओर बढ गयी!
जय जय कारे गूंज रहे थे!
और दादी माँ के अंदर एक शक्ति जाग उठी थी!
उनकी आवाज से ढोल जयकारे बंद हो गये “
मै अपनी बहू का बलिदान नही दूंगी, हर बार स्त्री बलिदान क्यूँ,
सब ओर सन्नाटा फैला गया!
दादी ने कला का हाथ थाम लिया, बस अब बहुत हो गया!
आपको समाज से निकाल दिया जाऐगा!
एक वृद्ध गुस्से से बोला “
मै ऐसे समाज की अवहेलना करती हूँ!
धीरे धीरे भीड छंटने लगी “
अनुज के दाहसंस्कार में मात्र गिनती के लोग शामिल हुए “
अनुज पंचतत्व मे समा गया “
और कला अपने अंश के साथ हवेली आ गयी,
ससुर जी ने जल्दी ही शरीर त्याग दिया, दादी माँ की छात्रछाया मे कभी कुछ कमी न आयी “
दादी के जाने के बाद कला ने उनका मान सम्मान घटने न दिया!
और आज वो गाँव एक छोटे शहर के रूप मे विकसित है, अब वहाँ कोई सती नही होता “
दीदी खाना तैयार है, कहाँ खो गयी!
बैठो भाभी आज पुरानी यादों ने फिर से जकड लिया था!
आज मैने भी तो वही अंधविश्वास किया, अपने बेटे की खुशी के लिए, उसके विवाह में एक रस्म मे भी शामिल न हुई,
मुझे कौन रोकने वाला था!
दीदी अब सब अच्छा हो गया न, अब छोडो “
खाने की टेबल पर कहकहे गूंज रहे थे!
गुलाबी रंग की साड़ी मे बहू अंश की स्मृति बन गयी थी!
रीमा महेंद्र ठाकुर लेखिका “
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत”
इस कहानी के शब्द यदि किसी घटना से मिलते हो तो हम क्षमाप्रार्थी है, ऐ घटनाएं सत्य है पर इसका मेरे पास कोई सबूत नही है, पुराने लोगों के बीच बातचीत के दौरान ये बातें सामने आयी जिनके मिलना संयोग मात्र है’ ऐसी बहुत सी घटनाएं है जो समय की धूल में छिप गयी है उन्हें बाहर लाकर समाज को संदेश देना लेखिका का उद्देश्य है धन्यवाद