मुझे शादी करनी है…..समझौता नही – किरन विश्वकर्मा

मां मैं यह शादी नहीं कर सकती….. क्योंकि यह शादी….शादी नही एक समझौंता होगी और जहाँ शादी में समझौंता होगा तो वह शादी सफल नहीं हो सकती…..अगर यह शादी हो भी गयी तो मां आपकी बेटी को हमेशा घुट कर रहना होगा। मुझे इस घर में आने के बाद अपने सपने….अपनी इच्छाओ का गला हमेशा-हमेशा के लिए घोंटना होगा और मुझे लगता है ऐसा आप कभी नही चाहेंगी………जैसे ही शिवाली ने कहा तो शिवाली की मां प्रज्ञा ने गुस्से से उसकी ओर देखा और पूछा…..की क्या कमी है प्रखर में!!! इतना बड़ा बिजनेस है…इतने पैसे वाले लोग हैं…..ये लोग शहर के नामी लोगों में आते हैं और फिर उन्होंने खुद से तुझे अपने बेटे के लिए तेरा हाथ मांगा है…..तू तो शादी के बाद राज करेगी…….तूने तो दो दिन रह कर सभी को देख और समझ लिया है…..तब तू ऐसी बातें बोल रही है और यह अपने सपने, अपनी इच्छायें यह क्या होता है हर लड़की को शादी के बाद अपने पति और ससुराल वालों के हिसाब से रहना पड़ता है…… मै भी तो जब से ब्याह कर आई तो तब से तेरे पिता जी और तेरे दादा, दादी के हिसाब से ही तो रह रही हूँ।

 

हाँ तभी कह रही हूँ…….मैंने आपकी एक बार डायरी पढ़ी थी उसमें आपको क्या क्या पसंद था और फिर कैसे आपने अपने शौक और इच्छाओ को उस डायरी में लिख कर हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया………आपको गाना गाना और हार- मोनियम बजाना कितना पसंद था पर पिता जी की वजह से आपने सब छोड़ दिया। वो हारमोनियम जो आप आपने मायके से लाई थी मैंने अक्सर सबसे छुपकर आपको उसके पास बैठे हुए और उस पर हाथ फिराते हुए देखा है, मुझे यह भी पता है कि आपका सपना था एक म्युज़िक स्कूल खोलकर बच्चों को म्युज़िक सिखाने का था पर अफसोस वह सपना सपना ही रह गया और डायरी के पन्नो में कैद होकर रह गया। मैंने सब कुछ देख लिया है और समझ लिया है….मां उनमें और हम लोगों में जमीन-आसमान का फर्क है और फर्क सोच का भी है।

 

दरअसल शिवाली अपने मामा की बेटी की शादी में गई थी वहीं पर लड़के वालों की तरफ से प्रखर भी शादी में आया था। प्रखर ने जब शिवाली को देखा तो प्रखर ने शिवाली को एक नजर में ही पसंद कर लिया। शिवाली थी ही इतनी खूबसूरत कि कोई भी उसे एक नजर में पसंद कर ले। यह बात प्रखर ने जब अपने परिवार वालों को बताई तो परिवार वालों ने भी जब शिवाली को देखा तो उन्होंने भी एक नजर में शिवाली को पसंद कर लिया फिर उन्होंने शिवाली के माता-पिता से बात की और कहा की बाइस अगस्त को प्रखर का जन्मदिन है तो आप लोग बीस तारीख को दिल्ली ही आ जाइएगा। वहां पर हमारा होटल है आपको रुकने में कोई दिक्कत भी नहीं होगी और दो-तीन दिन में शिवाली और प्रखर एक- दूसरे को देख समझ लेंगे। साथ में हम परिवार वाले भी एक- दूसरे से परिचित हो जाएंगे।



 

बीस तारीख को शिवाली के मम्मी- पापा शिवाली को लेकर दिल्ली आ गए। वहां पर प्रखर के होटल में वह लोग रुके। शिवाली से सभी ने मुलाकात की। दो दिन में जितनी देर भी शिवाली…प्रखर से या प्रखर के घरवालों से मुलाकात करती तो बस हर बार  वह लोग अपने बारे में बताते या फिर कैसे रहना है या फिर अपनी संपन्नता और वैभवता का दिखावा करते। इन दो दिनों में एक बार भी शिवाली से उसकी पसंद- नापसंद के बारे में नहीं पूछा गया वह अगर प्रखर से कुछ कहती भी तो प्रखर यह कह देता कि नहीं हमें तो यही पसंद है और तुम्हें ऐसे ही रहना होगा यह बात उसे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। प्रखर की मां भी जितनी देर शिवाली के पास बैठी…..तो वह सिर्फ यही बताती रही कि उनकी होने वाली बहू को कैसे रहना है और अपनी अमीरी का बखान करती रही। मध्यम वर्गीय परिवार में रहने वाली शिवाली यहां पर उन सब के बीच में असहज महसूस कर रही थी और सबसे ज्यादा दुख इस बात का लग रहा था कि एक बार भी उसकी इच्छा उसकी आशाओं के बारे में किसी ने बिल्कुल भी बात नहीं की।

 

आज प्रखर का जन्मदिन था…..शिवाली अपने मम्मी-पापा के साथ मार्केट आई थी रिया के पापा ने रोलेक्स की महंगी घड़ी जन्मदिन पर देने के लिए और हीरे की अंगूठी रिंग सेरेमनी के लिए खरीदी चूंकि एक दिन पहले ही बात हो गई थी कि प्रखर के बर्थडे के बाद रिंग सेरेमनी हो जाएगी और गोदभराई और अन्य कार्यक्रम बाद में होंगे। इसलिए शिवाली और उसके माता- पिता मार्केट में खरीदारी करने आए थे। प्रखर के घर वालों ने हीरे की अंगूठी तनिष्क से ही लेनी है और कितने कीमत की यह भी बता दिया था। बर्थडे और रिंग सेरेमनी के लिए ये दो सामान ही एक लाख से ऊपर का हो गया था…..जो की उनके बजट से बाहर था। लेकिन प्रखर के घर वालों ने कहा था इसलिए लेना ही पड़ा क्योंकि उन्हे सबके सामने दिखावा भी करना था। शिवाली ने शाम की पार्टी के लिए एक गाउन भी खरीद लिया था। शिवाली अपने रूम में तैयार हो रही थी तभी प्रखर की मम्मी हाथों में गाउन लेकर आई और बोली…….बेटा तुम क्या पहन रही हो……शिवाली जो गाउन खरीद कर लाई थी वह दिखा दिया पर प्रखर की मां को वह गाउन पसंद नहीं आया वह बोली पार्टी में इतने बड़े- बड़े लोग आ रहे हैं और तुमने यह सस्ता सा गाउन खरीद लिया तुम यह पहन नहीं पहनोगी……..मैं जो लाई हूं……वह पहनूंगी जैसे ही प्रखर की मम्मी ने गाउन दिखाया तो शिवाली ने देखा उसमें नीचे तो बहुत घेरा था लेकिन ऊपर कंधों पर सिर्फ पतली सी एक डोरी थी…..उसने इस तरह का गाउन कभी नहीं पहना था वह अपनी मम्मी की तरफ देखने लगी तो रीना जी ने हां में सिर हिला दिया।



 

तभी प्रखर की मम्मी बोलीं……..अब तो तुम ऐसे ही कपड़े पहनने की आदत डाल लो हमारे यहां तो आए दिन पार्टियां होती रहती हैं और उन पार्टियों में ऐसे ही कपड़े पहनने पड़ेंगे शिवाली कुछ नहीं बोली पर मन ही मन उसे बहुत बुरा लग रहा था। शाम को बर्थडे पार्टी में केक काटने के बाद प्रखर ने शिवाली को अंगूठी पहनाई शिवाली ने भी प्रखर को अंगूठी पहनाई। रात के ग्यारह बज रहे थे तभी प्रखर ने कहा…….एक पार्टी ऊपर हॉल में भी रखी है…….चलो मैं तुम्हें अपने दोस्तों से मिलवाता हूं………यह कहकर वह शिवाली को लेकर ऊपर चला गया। वह ऊपर गई तो उसने देखा वहां पर अलग ही पार्टी चल रही थी…….लड़के और लड़कियाँ सभी शराब- सिगरेट पी रहे थे। उसका तो वहां रहना ही मुश्किल हो रहा था सिगरेट की स्मेल इतनी ज्यादा आ रही थी कि उसे मितली सी आने लगी थी। खूब तेज आवाज में म्यूजिक बज रहा था प्रखर हाथ में शराब का गिलास लिए आया और उसका हाथ पकड़ कर डांस करने लगा। शिवाली को बहुत अजीब लग रहा था ऊपर से प्रखर के मुंह से सिगरेट के स्मेल भी आ रही थी जो वह सहन नहीं कर पा रही थी। तभी प्रखर ने ग्लास को किनारे रखकर एक हाथ शिवाली की कमर और एक हाथ रिया के कांधे पर रखा…….इस तरह प्रखर का इतने करीब आना शिवाली को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था तभी प्रखर ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया……. शिवाली अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगी लेकिन शिवाली जैसे-जैसे अपने को छुड़ाने की कोशिश करती वैसे- वैसे प्रखर अपनी पकड़ मजबूत करने लगा पर शिवाली ने एक झटके से प्रखर को दूसरी तरफ धकेला और वह भागती हुई अपने रूम में आ गई

 

शिवाली की माँ शिवाली से इस तरह आने का कारण पूछ रही थी तब शिवाली ने कहा…… उन लोगों को शो पीस में सजाने वाली गुड़िया चाहिए जिसे वह से चाहें जैसे कपड़े पहनाये और जैसे चाहें रखें और जिसके मुंह में आवाज भी ना हो। इन लोगों के सामने मेरी क्या इच्छाएं हैं…….क्या आशाएं हैं यह सब मायने नहीं रखता और मां हम लोग इनकी बराबरी नहीं कर सकते आपने देखा कि आप लोगों ने सिर्फ रिंग सेरेमनी में ही इतना खर्चा कर दिया…..अभी तो यह शुरुआत है….आगे इससे भी ज्यादा बुरा हो…..इससे पहले ही यह रिश्ता यहीं खत्म हो जाय तो अच्छा होगा……..फिर जो ऊपर शिवाली के साथ हुआ सब रिया ने माँ को बता दिया…………मां आप क्यों नहीं समझतीं…….मुझे  ऐसा जीवन साथी चाहिए जो मेरी भावनाओं को समझें मेरी इच्छाओं का सम्मान करें ना कि वह मेरी भावनाओं को कुचल दें….. माँ चलो वापस घर चलते हैं…… अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है।

 

हाँ सही कह रही है बिटिया…….मैंने सब सुन लिया है, समझौतें से रिश्तें नही चलते हैं…….चलो वापस चलते हैं….अभी भी कुछ नही बिगड़ा है……चलो सामान पैक करो और यह कहकर सभी वापस जाने की तैयारी करने लगे।

 

किरन विश्वकर्मा

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