मुझे प्यार नहीं पैसा चाहिए –  मनीषा भरतीया

सरिता जी और उनके पति विमलेश जी दोनों मिलकर सुबह से ही आज फिर से अपने छोटे से आशियाने को सजाने में लगे हुए हैं क्योंकि आज उनकी बेटी को देखने फिर से लड़के वाले आने वाले हैं।  दरवाजे के धूल झाड़ते हुए सरिता जी ने अपने पति विमलेश से कहा, ” कोई फायदा नहीं है घर को सजाने से क्योंकि आखिर में होना वही है जो हमारी बेटी नमिता चाहती है फिर से लड़के वाले को रिजेक्ट कर देगी पता नहीं उसे कैसा  लड़का चाहिए अब सबकी किस्मत में राजकुमार तो लिखा नहीं होता,  कम से कम हमारे बारे में ही सोच लेती कि बूढ़े मां बाप के दिल पर क्या बीतती है जब कुंवारी बेटी घर में पड़ी रहती है। 

 दोपहर होते ही लड़के वाले आए,  और हमेशा की तरह नमिता ने कोई ना कोई लड़के वालों में कमी निकाल कर उनको रिजेक्ट कर दिया। 

रात  को जब नमिता और उसके माँ  बाबूजी डिनर के लिए बैठे थे  विमलेश जी ने अपनी बेटी से कहा बेटी तुम खुद ही बताओ तुम्हें कैसा लड़का चाहिए क्योंकि अब हम लड़का खोजते-खोजते थक गए हैं या तो तुम खुद ही कोई लड़का ढूंढ लो हम तुम्हारी शादी उससे करा देंगे या तो अपनी पसंद बता दो अब हम लड़के वाले को तभी बुलाएंगे जब लड़का तुम्हारी पसंद का हो.।

नमिता ने अपने बाबू जी से कहा, ”  बाबूजी  लड़का चाहे गंजा हो, बदसूरत हो, सब चलेगा!  लेकिन लड़का पैसे वाला हो” अरे बेटा यह तू कैसी बातें कर रही है…..कहां तू इतनी सुंदर और तेरा  होनेवाला पति गंजा और बदसूरत… ….  कैसे उसके साथ जीवन निर्वाह करेगी??? अभी तुझे समझ में नहीं आ रहा बाद में तू पछताएगी | यह मैं अपने तजुर्बे से कह रहा  हूं….बेटा,  खाली पैसे के पीछे क्या भागना|

लड़का खाते पीते घर का हो तो क्या दिक्कत है? ? बाबूजी दिक्कत है आप नहीं  समझेंगे !!

 


बचपन से लेकर जवानी तक मैंने अपना जीवन अभाव में गुजारा है….पापा आपको भी पता है कि एक प्राइवेट स्कूल में पीउन   की नौकरी की तनख्वाह से घर कितना मुश्किल से चल पाता है।  बचपन से लेकर अब तक हर चीज के लिए तरसी हूं,  जैसे बड़ी हुई आप बीमार हो गए कम उम्र में ही घर चलाने के लिए मुझे नौकरी करना पड़ा..   मैं  16 साल  की हुई तब से पढ़ाई के साथ साथ काम कर रही हूं…..  मैं अब थक चुकी हूं|

8 साल से काम कर रही हूं …..फिर भी अपनी एक भी ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाई!!

 

और ऊपर से मेरी सुंदरता मेरी जान की दुश्मन बन गई है…  कहीं भी पीछा नहीं छोड़ती |

 

इसी चक्कर में कितनी कंपनी बदल ली…… लेकिन हर जगह मेरे कलिग मुझे ऐसे आंखें फाड़- फाड़ कर देखते हैं….जैसे मैं उनकी जागीर हूं |

 

इतना ही नहीं हर दिन मेरे   साथ छेड़खानी करते रहते हैं….. लेकिन मजबूरी है ….कि मैं काम नहीं छोड़ सकती! क्योंकि अगर काम छोड़ दिया तो किराए  के पैसे, घर का खर्च ,बिजली बिल, सब कैसे भरूंगी |

 

अब क्या इस उम्र में भी आपको काम करने भेजूं बताइए???

 

लड़का पैसे वाला होगा तो आपकी बेटी राज करेगी…..  और रही बात गंजे या बदसूरत की तो कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है…..सर्व सुख किसी को नहीं मिलते | और वैसे भी बाबूजी शादी उससे करनी चाहिए जो आपसे प्यार करें ना कि उससे जिससे आप प्यार  करते हैं…… और साथ ही साथ उसे मेरी हर शर्त भी मंजूर होगी|

 और मेरी शर्त यह होगी कि मैं जहां भी जाऊंगी आप दोनों को साथ लेकर ही जाऊंगी|, और तो और वो आपकी बेटी से दीवानों की तरह प्यार करेगा….  हर ख्वाहिश पूरी करेगा…… आपको भी पूरी इज्जत और सम्मान देगा |, क्योंकि सुंदर बीवी के रूप में मुझे पाकर उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी |

 


वही अगर मैं किसी गरीब या मध्यमवर्गीय  लड़के से शादी करती हूं…..  तो कुएं से निकल कर खाई में  गिरूगीं |,  यहां भी गरीबी की चक्की में पीसी हूं ….वहां भी पीसूंगी |, वहां भी सुबह 9:00 से रात 7:00 तक ड्यूटी और ऊपर से घर का सारा काम|

और तो और मुझे आपको भी छोड़ कर जाना होगा जो मुझे गंवारा नहीं है |

 

  बेटा जैसा तुम ठीक समझो इतनी तो बड़ी और समझदार तो तुम हो ही गई हो कि अपना भला बुरा समझ सको!!  लेकिन एक बात कहना  चाहूँगा ….. बेटा कि तू हमारी  चिंता मत कर  हम अपनी देखभाल कर सकते हैं ….. हमारे लिए अपनी जिंदगी मत खराब कर!

नहीं बाबूजी  ऐसी बात नहीं है…मैं यह आपके लिए नहीं अपने लिए कर रही हूं..,..  

 

  अब विमलेश  जी अपनी बेटी के कहे अनुसार रिश्ते देखने लगे ……  ज्यादातर रिश्ते मध्यमवर्गीय परिवार के ही आ रहे थे | , देखते  देखते गुप्ता जी के लड़के राकेश  को देखने के बाद उनकी तलाश पूरी हुई |, लड़का देखने में गंजा तो नहीं लेकिन मोटा और काला था |

दोनों परिवारों में बातचीत हुई और चट मंगनी पट ब्याह हो गया | अपनी शर्त के अनुसार नमिता  अपनी मां बाबूजी को शादी वाले दिन ही अपने साथ ले गई. …. राकेश नमिता को बहुत प्यार करता था……दुनिया की हर चीज उसके कदमों में थी…. ऐसी कोई भी ख्वाहिश नहीं थी जो अब बाकी थी….. ऐशो आराम, नौकर -चाकर सब कुछ था ….  बिल्कुल   महारानी की तरह जीवन व्यतीत कर रही थी….  और तो और राकेश( नमिता का पति)  अपनी (सासू मां और ससुर जी ) सरिता जी और विमलेश जी  को अपनी मां – पिताजी समझता और उनका बहुत सम्मान करता | नमिता बहुत खुश थी …..लेकिन एक कसक मन में कहीं ना कहीं थी…. जब भी वह अपने पति को अपनी सहेलियों से मिलवाती तो वो कहती कि नमिता तेरी तो जोड़ी बेमेल है….  तू तो पैसों के नीचे दब गई. …. और कहीं भी राकेश के साथ जाने में उसे शर्म महसूस होती जब वह दूसरे कपल की टक्कर की जोड़ी देखती …..तो उसे अपने  बाबूजी की कही बात याद आ जाती . …. लेकिन फिर वह अपने मन को समझा लेती |…..  जो मेरे पास है … वो उनके पास नहीं है|

दोस्तों आपको क्या लगता है नमिता ने सही किया? ??  आपसे अनुरोध है,  कि अपनी प्रतिक्रिया कमेंट करके जरूर बताएं |

 

स्वरचित

 

आपकी दोस्त….

@ मनीषा भरतीया

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