और माँ चली गई –  मंगला श्रीवास्तव

मोबाइल पर लगातार घंटी बज रही थी,पर किटी पार्टी की दीवानी मीनल गेम व तम्बोला खेलने में इतनी मशगूल थी की उसने बिना देखे ही  फोन को साइलेंट मोड़ पर कर दिया था।

किटी के खत्म होने  के बाद भी वह सभी से बातें करि थोड़ी हँसी ठिठोली कर  सहेलियों को टाटा बाय- बाय कर कार में बैठकर उसने मोबाइल ऑन किया।

देखा की उसमे पति राजीव के बहुत  सारे  कॉल थे ।

जरूरी हो तभी ऑफिस से फोन करने वाले उसके पति राजीव के लगातार इतने सारे मिस्डकॉल देख वह घबरा गई ।

उसने तुरंत ही राजीव को फोन किया उधर से राजीव ने गुस्से में डांटते हुए कहा -कितना फोन लगा रहा था –तुमको समझ नही आया की कुछ जरूरी बात होगी ।

पहली बार शायद राजीव ने उससे इतनी तेज आवाज में डांट कर बोला था ,वह सकपका गई और बोली फोन साइलेंट मोड़ पर था आवाज नही आई।

क्या हुआ राजीव ?

कुछ नही जल्दी घर आओ यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

वह बहुत घबरा गई… घबराते हुए तुरंत घर पहुँची।

राजीव गुस्से में तो थे ,पर कुछ नहीं  बोले बस कहा जल्दी से तैयारी करो तुरन्त उज्जैन चलना होगा।


रमन का फोन आया था मम्मी

की तबियत अचानक खराब हो गई है वह बस तुमको याद कर रही है।

मीनल बचपन से ही लापरवाह थी। उसको समय की भी कोई कीमत नही थी। उसकी इस आदत से उसको बहुत बार नुकसान भी होता था। कितनी बार वह कही भी समय पर  नही पहुँच पाती थी।

शादी के बहुत सालों बाद बहुत ही मान मन्नतों के बाद उसका जन्म हुआ था।

इस कारण  वह अपनी मम्मी व पापा की बहुत लाड़ली थी। वैसे उसके बाद उसके दो भाई और भी थे। पर मीनल तो जैसे घर की जान थी। मम्मी अपनी हर बात उसको ही बताती थी। पापा के गुजर जाने के बाद एक  वह  ही थी, जिससे पूछे बिना घर का कोई काम नही होता था। भाई भी उसकी हर बात मानते थे। 

उसकी शादी भी उसकी पसन्द से हुई थी पति राजीव बहुत सुलझे हुए व समझदार थे।इस कारण उनको भी घर मे उतना ही मान सम्मान मिला था।

जैसे तैसे उसने जल्दी से तैयारी की और वह उज्जैन निकल पड़े परन्तु इंदौर से उज्जैन का रास्ता भी अब उसको लम्बा लग रहा था।

बीच मे उसने रमन को दो बार फोन भी लगाया तो  वह बोला दीदी जल्दी आ जाओ मम्मी बस अपनी आपको को ही बुला रही है बार बार। सुनकर उसका मन और घबरा रहा था।आज उसको पहली बार अपनी गलतियों का भी एहसास हो रहा था।काश वह इतनी लापरवाह नही होती ।

वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करती जा रही थी और रोती जा रही थी । आखिरकार जैसे ही वह उज्जैन  में घर के बाहर  पहुँची तो जल्दी से कार से उतरी व दौड़ कर मम्मी को आवाज लगाते हुए घर के दरवाजे पर ठिठक कर रुक गई थी। क्योंकि दूर से ही देखा की मम्मी की आँखे दरवाजे पर ही थी और उसको देखते ही खुली की खुली रह गई थी !

मानो बस उसके आने का इंतजार कर रही हो। वो दौड़ कर पास पहुँची पर तब तक मम्मी अपने जीवन का  अंतिम सफर पूरा कर अंनत में खो चुकी थी ।मीनल बस बुत समान हो गई थी  औऱ उनका इंतजार अपनी मोना को देखकर खत्म हो गया था। मोना वह मम्मी को देखते हुए रोते रोते बुदबुदा रही थी

माँ मुझको सबक मिल गया  अपनी नादानी का “”आज तुमको खो कर ” वापस आ जाओ अब जैसे ही तुम बुलाओगी मैं दौड़कर आ जाऊँगी मिलने तुमसे बात करने लौट आओ माँ।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

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