शादी की सालगिरह – अनुपमा 

प्रज्ञा ने जल्दी से चीनू के सारे कपड़े बदले और उसे झूले मैं लिटा कर जल्दी से रसोई मैं आ गई , बहुत देर हो गति थी आज उसे , चीनू को बुखार और दस्त हो रखे है इस वजह से उसे टिफिन बनाने मैं देर हो गई , मानव को बोला भी था उसने की थोड़ी देर चीनू को संभाल ले पर उसने तो सुन कर भी अनसुना कर दिया और मां जी सुबह सुबह पार्क चली जाती है , उन्हे पता होता की चीनू की तबियत ठीक नहीं है तो शायद न जाती वो पार्क ।

प्रज्ञा ने नाश्ता टेबल पर लगा दिया था पर मानव ने खाया भी नही और नाराजगी दिखा कर बिना टिफिन लिए घर से निकल गया । अरे चीनू का भी नही पूछा की क्या हुआ है उसको , वो तो तुम्हारी ही बेटी है ना फिर इतनी उपेक्षा क्यों ?

छह महीने पहले चीनू को जन्म देते वक्त प्रज्ञा की बहन साध्वी की मृत्यु हो गई , इतनी छोटी बच्ची का क्या होगा , मानव का क्या होगा , बूढ़ी मां आखिर क्या क्या करेगी , यही सब सोच कर दोनो परिवारों ने प्रज्ञा की शादी मानव से करने की बात प्रज्ञा के सामने रखी , प्रज्ञा धीर गंभीर प्रवृति की लड़की थी , शादी तो उसे करनी ही थी अब चीनू के लिए उसने हां कह दिया और मानव से उसकी शादी एक सादे समारोह मैं करवा दी गई ।

प्रज्ञा ने चीनू और मां को तो संभाल लिया पर मानव वो उसे समझ ही नही पाती थी की क्यों इतनी बेरुखी से उससे पेश आता है , शादी के लिए अकेले उसने तो हां नही की थी उसकी रजामंदी भी शामिल थी तब शादी हुई थी , और अगर उसे इस शादी से परेशानी थी तो की ही क्यों उसने शादी ? 

मानव साध्वी को देखते ही उसके प्यार मैं पड़ गया था , लंबे बाल ,गहरी बड़ी बड़ी आंखें , और हमेशा बोलने खिलखिलाने वाली साध्वी ,जिंदादिल प्रवृति की थी वो और प्रज्ञा बिलकुल उलट ,साधारण नैन नक्श पर बहुत समझदार । मानव जब भी प्रज्ञा को देखता उसे साध्वी के न होने का एहसास और भी ज्यादा होता और वो सारा गुस्सा प्रज्ञा पर ही निकाल देता ।


आज मानव घर आया तो प्रज्ञा ने उससे कहा की कल उसकी कुछ सहेलियां घर आना चाहती है क्या वो जल्दी घर आ सकता है , मानव ने चिढ़ कर कहा सहेलियां तुम्हारी आ रही है ,मैं क्यों आऊंगा जल्दी ,तुम अपना मिलो उनसे , प्रज्ञा ने कहा की हमारी शादी मैं कोई आ नही पाया था तो कल हमारी एनिवर्सरी पर वो लोग आकर हमदोनो से मिलना चाहती है और सेलिब्रेट करना चाहती है , मानव गुस्से से आगबबूला हो कर प्रज्ञा पर चिल्ला के बोला की ये क्या बचपना है , मुझे ये सब नहीं पसंद है दिखावा करना और तुम्हे जो करना है करो मुझसे कोई उम्मीद मत करो ।

प्रज्ञा रुआंसी हो गई और उससे कुछ नही बोली , चुपचाप कमरे मैं चली गई ,सोचने लगी की इतना ही था तो मना कर से साथ रहने को , मेरी गलती ही क्या थी मैंने तो अच्छे के लिए ही किया सब और इस तरह का व्यवहार कौन करता है अपनी पत्नी के साथ , यही सोचते सोचते कब उसकी आंख लग गई उसे पता ही नही चला ।

चीनू के रोने की आवाज से उसकी आंख खुली तो उठने को हुई तो उसे चक्कर आ गया और वो बेहोश हो गई , जब उसे होश आया तो उसने खुद को अस्पताल मैं पाया और मानव उसका हाथ पकड़ के बैठा था , होश आते ही उसने सबसे पहले चीनू के बारे मैं पूछा ,मानव ने कहा की वो मां के पास है और उसका हाथ सहलाने लगा पर प्रज्ञा ने दूसरी तरफ मुंह फेर लिया और उससे कहा की मानव तुम्हे मेरे साथ जबरदस्ती रहने की जरूरत नहीं है ,मैं चीनू को लेकर मां के घर चली जाऊंगी ।

मानव ने कुछ नहीं कहा बस प्रज्ञा को लेकर घर आ गया और कमरे मैं ले जा कर सुला दिया ,अगले दिन प्रज्ञा सोकर उठी मानव उसके सामने खड़ा था हाथ मैं चाय की ट्रे लेकर और साथ मैं एक गुलाब भी रखा था ,मानव ने उसके माथे पर चूम कर उसे शादी की सालगिरह विश की तो प्रज्ञा को यकीन नही हुआ की ये वही मानव है । चीनू को कहीं न पा कर उसने मानव से पूछा तो मानव ने बताया की मां चीनू को लेकर तुम्हारे घर गई है शाम तक आ जायेगी ।

प्रज्ञा ने कहा अच्छा तो ठीक है मैं तुम्हारा टिफिन बना देती हु ,मानव ने मना कर दिया की नही रहने दो आज ऑफिस से छुट्टी ली हुई है ,तुम अगर अच्छा महसूस कर रही हो तो तैयार हो जाओ मंदिर जाना है ,प्रज्ञा को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की मानव उसे इतने प्यार से बात कर रहा था ।

प्रज्ञा ने पतली शिफॉन की साड़ी फनी और हल्का सा मेकअप भी कर लिया ,आज मानव ने जब उसे थोड़ा ध्यान से देखा तो सादगी मैं भी प्रज्ञा कितनी सुंदर लग रही थी ,मानव को अपनी ओर निहारते देख प्रज्ञा झेंप गई और बाहर निकल आयी,दोनो साथ मैं मंदिर आ गए , मंदिर मैं मानव ने देवी मां के चरणों से सिंदूर उठा कर प्रज्ञा की मांग मैं भर दिया और उसका हाथ पकड़ कर रोने लगा ,मानव को इस तरह देख कर प्रज्ञा घबरा गई और उसे संभालते हुए वही बाहर सीढ़ियों पर बैठ गई । मानव ने कहा प्रज्ञा मुझे माफ कर दो , साध्वी के जाने के बाद मुझे लगने लगा की उसके जाने का मैं ही दोषी हूं , मेरी ही देखभाल मैं कुछ कमी रह गई होगी जिसकी वजह से मैने साध्वी को को दिया , और फिर तुम मेरी जिंदगी मैं आ गई और मैं तुमसे और चीनू से खुद को दूर रखता की कहीं में तुम दोनो को भी न खो दूं । मैं डर गया था प्रज्ञा , मुझे यकीन नही था की मैं कुछ भी संभालने लायक हूं । मुझे माफ कर दो प्रज्ञा ! प्रज्ञा ने उसे गले लगा लिया आज उसे अपनी एनिवर्सरी का सबसे अच्छा तोहफा जो मिल गया था ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!