मोर्चे – मुकुन्द लाल 

 प्रचंड धूप की तपिश के साथ-साथ ग्राम कचहरी का वातावरण भी गर्म होता जा रहा था। पंँचायत में उपस्थित मुखिया, सरपंच और पंँचों के उठाये गये प्रश्नों का जवाब रविप्रकाश के गिरोह के सदस्यों द्वारा दिया जा रहा था, जिसको फरियादी पक्ष अपने बहस के माध्यम से काट रहा था। रविप्रकाश के कुख्यात आदमियों और मेघराज की समिति के सदस्यों के बीच गर्मा-गर्म बहस वहांँ के माहौल के तापमान को बढ़ा रहा था। बदनाम गिरोह के दबंग सदस्यों का दल दवाब बनाकर दुराचारी व ओछी हरकतों में लिप्त रहने वाले को सदाचारी और निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रहा था शाम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाकर। बलात्कार के प्रयास करने वाले दुर्दांत अपराधी पर लगाये गये आरोप को झूठा साबित करने का प्रयत्न किया जा रहा था।

  फौज से सेवानिवृत्त होने के बाद मेघराज अपने गांव पहुंँच गया। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि वह गांव में ही शेष जीवन व्यतीत करे। उसका विचार था कि जिस मिट्टी में उसने जन्म लिया है, उसके लिए कुछ करके इस जन्मभूमि का उसके सिर जो कर्ज है उसको अदा करे।

  अपनी पत्नी देवकी, पुत्री पंखुड़ी और पुत्र समीर के साथ वह अपने पुश्तैनी मकान में उसकी साफ-सफाई , मरम्मत और उसकी कमियों को दूर करके उसमें रहना शुरू कर दिया था।

  मकान के अगले रूम को सजा-संवारकर अतिथि-कक्ष सह कार्यालय बना दिया था।

  गांव में आने के बाद उसने बड़े-बुजुर्गों का चरण-स्पर्श किया उनसे हाल-समाचार पूछा, इसके साथ ही वहाँ के हर वर्ग के लोगों से मिला खुले दिल से। उसने उनके सामने गांव के उत्थान संबंधी अपने संकल्प से लोगों को अवगत करवाया। सभी से उनकी कठिनाइयों, गांव की कमियों और मूलभूत आवश्यकताओं की जानकारी ली। गांव के सभी लोगों ने उसके इस कदम की सराहना की। उन्होंने तन-मन-धन से सहयोग करने का आश्वासन भी दिया।




  महीने-भर बाद ही उसने बड़े-बूढ़ों और युवकों की सहमति से उसने एक समिति का गठन किया। सर्व सम्मति से उसका नाम ‘ग्राम उत्थान समिति’ रखा गया। बाजाप्ता उसके अध्यक्ष, सचिव और कार्यकारिणी के सदस्यों का चुनाव किया। इस समिति की विशेषता यह थी कि इसमें महिला सदस्यों को भी शामिल किया गया था। रेलवे से सेवानिवृत्त हुए सत्यानन्द को अध्यक्ष और ग्रामीणों की सहमति से ही वह स्वयं सचिव के पद पर आसीन हुआ। उपाध्यक्ष के पद पर शिक्षण-कार्य से जुड़े जय प्रकाश को बनाया गया। इसी प्रकार राम बालक, तेतर, सावित्री, लता… आदि को सदस्य के रूप में चयन किया गया।

  मेघराज ने अपनी समिति के सदस्यों के साथ गांव की स्थिति का जायजा लेने का कार्यक्रम निर्धारित किया। इस क्रम में वह गांव के जिस टोले की ओर  कदम बढ़ाता, वहांँ बेरोजगारी, गरीबी, फटेहाली और बदहाली का साम्राज्य था। उनको कई अनपढ़ों से भी मुलाकात हुई किन्तु अधिकांश लोग साक्षर थे, कुछ शिक्षित भी थे, जो शिक्षित थे, वही लोग प्रायः बेरोजगार थे। बुजुर्गों की स्थिति बहुत दयनीय थी। कुछेक के घर में भोजन के नाम पर माङ-भात ही लोगों को मयस्सर था। स्कूलों की स्थिति खास्ता थी। मास्टर साहब सप्ताह में दो-तीन दिन ही आते थे, पूछने पर दस बहाने बनाते थे। सरकार द्वारा गरीबों व हाशिये पर गुजर-बसर करने वाले लोगों के लिए जो योजनाएं चलाई जा रही थी उनमें घोर अनियमितताएं थी। उसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला था। गरीबों के हक को समाज के सुखी-सम्पन्न लोग मारकर उनको फटेहाली व बदहाली की जिन्दगी जीने के लिए विवश कर रहे थे। हर काम में मुलाजिमों के निश्चित पैसे बंधे हुए थे। उनके कई दलाल भी इलाकों में मौजूद थे, जिनकी मिलीभगत से ग्रामीणों का शोषण किया जाता था। ऊपर से दबंगों का अत्याचार बदस्तूर जारी था। कुछ लोगों के खेतों पर दबंगों का अवैध कब्जा था। 




  इन सबके बीच एक बात अवश्य थी कि झोपड़ीनुमा घरों के साथ-साथ दो-चार दो मंजिला या तीन मंजिला मकान उनको मुंँह चिढ़ा रहा था। ये मकान उस गांव के मुखिया, सरपंच, पंच,  छुटभैये नेताओं, बिचौलियों, दबंगों और व्यवसायियों के ही थे, यानि गांव और उस इलाके में प्रभावशाली कहे जाने वाले लोगों के ही थे। 

  उस गांव में गुण्डागर्दी के लिए कुख्यात लोगों के भवन भी कम आलिशान नहीं थे। शेष ग्रामीणों के खपरैल मिट्टी के घरों की ढहती दीवारें उनकी दुर्दशा की कहानी सुना रही थी। 

  इसके बाद समिति के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों के साथ  मिलकर प्रोग्राम निर्धारित किया। कार्य करने की रणनीति बनाई। 

  उसी नीति के अनुसार इनके सदस्य राशन की दुकानों पर उचित मात्रा में अनाज दिलवाता लोगों को, कोर्ट-कचहरी के कामों में गरीब-गुरबा को मदद करता, इसी तरह के समाज कल्याण हेतु काम करने लगे। इसके साथ ही उनको जागरूक करने का भी काम करते थे। समिति समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन करवाता था, जिसका लोग भरपूर आनंद उठाते थे। ऐसे कार्यक्रमों से उनको शिक्षा भी मिलती थी। 

  मेघराज अपने घर के आगे बगान में बच्चों और अशिक्षितों को नियमित रूप से पढ़ाने का कार्य करता था। 

  उसने एक ऐसी मुहिम चलाई, जिससे जिन लोगों को छोटे-छोटे कामों से परेशानी होती थी, वह समाप्त हो गई। उन्हें राहत मिलने लगी। 

  उस इलाके में मेघराज फौजी बाबू के नाम से विख्यात हो गया। फौजी बाबू का प्रभाव उस इलाके में देखते-देखते छा गया। 




  उस क्षेत्र का दबंग रविप्रकाश को उसकी ख्याति बर्दाश्त नहीं हो रही थी क्योंकि उसके गांव में आते ही उसकी दाल नहीं गलने लगी थी। मेघराज उसकी आंँखों में खटकने लगा था। उसके गिरोह के लोगों का शोषण बन्द हो गया था। उसकी हराम की कमाई और तिमारदारी बन्द हो गई थी। वे लोग रविप्रकाश पर दबाव बनाने लगे थे रास्ते के रोड़े बने फौजी बाबू को हटाने के लिए। 

  मेघराज के द्वारा ग्रामीणों को जागृत करने की मुहिम निरंतर जारी थी। उसी क्रम में वह अपनी समिति के एक सदस्य के साथ उस गांव की नदी के पार के टोलों से सामाजिक कार्य पूर्ण करके लौट रहा था। शाम का समय था। वातावरण पर धुंँधलका उतर आया था। इसी समय नदी के किनारे से किसी लड़की के चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी। दोनों तेज गति से दौड़ पड़े नदी की तरफ। 

  वहांँ पहुंँचने पर देखा कि  रविप्रकाश के गिरोह का एक बदनाम आदमी कैलाश, गांव के असहाय मसोमात की लड़की शीला को उसी प्रकार दबोचे हुए है, जैसे बाघ अपने शिकार को दबोचता है। उसकी मंशा उसके साथ बलात्कार करने की स्पष्ट थी। 

  फौजी(मेघराज) वहांँ अपने साथी के साथ पहुंँचते ही उसपर गरजा, “खबरदार!… छोङो लड़की को, शर्म नहीं आती है गाँव की बेटी के साथ जघन्य कांड करते हुए।… छीः! छीः!… तुम आदमी हो या जानवर हो…” 

  “ए फौजी!… हमारे काम में टांग मत अङाओ…” 




  “चुप!… बेशर्म, मैं चाहूंँ तो तुम्हें अभी सबक सिखा सकता हूँ, लेकिन नहीं, मैं भरी पंँचायत में तुम्हारे काले कारनामों को उजागर करूंँगा।… लोग देखेंगे कि इस गांव में कैसे-कैसे दरिंदे रहते हैं। “

  उसके इतना कहते ही उसने शीला पर अपनी पकड़ ढीली कर दी। वह उसके चंगुल से छूट गई। वह सिसक-सिसककर रो रही थी। 

  जब फौजी बाबू ने डांँटते हुए पूछा कि वह इस समय क्यों आई थी तो उसने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा कि वह पर्दा में आई थी। 

  उसका जवाब सुनकर वह मौन हो गया था। 

  लड़की रोती-कलपती अपने घर की तरफ भाग खड़ी हुई थी। 

                             मेघराज कैलाश पर आरोप मढ़ रहा था और रविप्रकाश के आदमी अपने तर्क से प्रमाणित करना चाह रहे थे कि लड़की बदचलन और आवारा है क्योंकि शाम में कोई भी इज्जतदार लड़की नदी के किनारे क्या करने जाएगी। उसके जवाब में उत्थान समिति के सदस्यों ने कहा कि कोई भी लड़की या महिला गांव में किसी आवश्यक काम से किसी भी समय निकलेगी तो कोई क्यों उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ करना चाहेगा, 




ऐसी ओछी हरकतें करने वाला दरिंदा है। ऐसा मनुष्य, मनुष्य के नाम पर कलंक है। धरती का बोझ है। ऐसे दानव को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। 

  तर्क-कुतर्क और विवाद बढ़ता ही जा रहा था। 

  अन्त में मुखिया जी ने कहा, ” लड़की को पंँचायत में उपस्थित किया जाए।” 

  लड़की अपनी मसोमात मांँ के साथ पंँचायत में आई जो कुछ दूरी पर वृक्ष की ओट में बैठी हुई थी। 

  जब लड़की से पूछा गया कि उसके साथ कैलाश ने बदसलूकी की थी तो कुछ देर तक वह मौन रह गई। उसकी आंँखों के आगे वह दृश्य घूम गया, जिसमें रात के समय रविप्रकाश के गिरोह के लोगों ने  उसके घर में आकर धमकी दे दी थी कि अगर उसने उसके खिलाफ बयान दिया तो मांँ-बेटी दोनों को जान से मार दिया जाएगा। लाश तक किसी को नहीं मिलेगी। 

  फिर पंच ने पूछा, “बोलो!… चुप क्यों हो?… तुम्हारे साथ कैलाश ने छेड़छाड़ या बदसलूकी की थी…” 

  “नहीं किया था।… मैं नदी किनारे फिसलकर जब गिरने लगी तो उसने मुझे पकड़कर गिरने से बचा लिया, मेरे साथ उसने कोई गलत व्यवहार नहीं किया।” 

  मेघराज की टोली, पंँचायत में उपस्थित ग्रामीणों का जत्था, बूढ़े-बुजुर्ग अचरज के साथ शीला के चेहरे को देख रहे थे। 

पंँचायत ने कैलाश को बाइज्जत बरी कर दिया था। वहीं मेघराज को अच्छी तरह छानबीन करने के बाद ही पंँचायत में मुकदमा दायर करने की सलाह दी। 




  इसी समय रविप्रकाश की कड़कती आवाज सुनाई पड़ी। 

 ” बोलिए पंचों!… यह फौजी गांव में आकर, लोगों में फूट डालना चाहता है,भलाई के नाम पर लोगों को भड़काना, लड़वाना इसका काम रह गया है… सुन लिया न भाइयों।” 

  पंँचायत में सन्नाटा छा गया था 

  ग्राम-कचहरी में उपस्थित रविप्रकाश के खेमे के लोगों के चेहरे खुशी से चमकने लगे थे जबकि आम लोग इस फैसले से क्षुब्ध नजर आ रहे थे। 

  मेघराज को समझते देर नहीं लगी कि लड़की और उसकी मांँ को धमकी देकर भयभीत कर दिया होगा। फिर भी अप्रत्याशित और अकल्पनीय फैसले से वह सन्न रह गया। इस फैसले ने एक दुर्दांत व कुख्यात अपराधी को निरपराध साबित कर दिया था। उसका अंतस क्षोभ और असंतोष से उद्वेलित होने लगा। वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ मुखिया और पंँचों को हिकारत भरी नजरों से देखते हुए वहांँ से प्रस्थान कर गया। 

  रविप्रकाश गुस्से में प्रलाप करता रहा। मेघराज के पीठ पीछे चेतावनी देने लगा। कुछ लोगों ने प्रयास किया उसको शांत करने के लिए लेकिन वह नहीं माना। 

  वह अपने दल-बल के साथ बंदूक लेकर हवाई फायरिंग करते हुए उसके घर की तरफ दौड़ पड़ा। 




  उसके घर के पास पहुंँचकर उसको बाहर निकलने के लिए ललकारने लगा। 

  मेघराज उसका जवाब देने के लिए घर से बाहर निकलना चाहता था किन्तु उसकी पत्नी और उसके बेटा-बेटी ने बाहर निकलने नहीं दिया। 

  जब वह गरज-बरसकर चला गया तो वह समिति के सदस्यों को मोबाइल से फोन करके अपने घर पर बुलाया, फिर उसके साथ थाना गया जो गाँव से पाँच-सात किलोमीटर की दूरी पर था। वहांँ उसने सन्हा लिखवाया। 

  दूसरे ही दिन थानेदार सिपाहियों के साथ तफ्तीश करने के लिए पहुंँच गया। पूछताछ में किसी ने भी रविप्रकाश के खिलाफ़ मुंँह नहीं खोला। थानेदार गांव में घूम-घूमकर इस बाबत लोगों से पता लगाने का प्रयास करता रहा लेकिन कोई कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ। 

  फौजी ने अपने अपने मन में स्वतः कहा कि सीमा के मोर्चे पर उसने कितनी बार दुश्मनों के दांँत खट्टे किये, उसने कई जीत दर्ज किये थे लेकिन गांव के मोर्चे को संभालना बहुत मुश्किल है। 

     स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                   मुकुन्द लाल 

                    हजारीबाग(झारखंड)

                      18-03-2023

                      प्रथम कहानी

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