शाम ढलने को थी।परिंदे भी अपने घर को लौट रहे थे ।
मैं घर के नजदीक वाले पार्क में जा बैठी मगर आज मन किसी से दो घड़ी बातें करने का नहीं कर रहा था ।
मुझे ऐसा लग रहा था आज मेरे मन के किसी कोने में उदासी जा कर बैठ गई है । जो शायद उठना ही नहीं चाह रही है। मैं सोचने लगी कितने अरमानों के साथ बड़े बेटे रजत के लिए आरोही और छोटे बेटे विशाल के लिए तानी को अपनी बहू बनाकर लाई थी।
शुरुआती दिनों में तो सब ठीक ही रहा। मेरी दोनों बहू आरोही और तानी बिना किसी शिकायत के एक दूसरे के साथ हंसती मुस्कुराती रहती थी।
तानी जब भी गोलगप्पे बनाती तो आरोही को खिलाए बिना पहले कभी नहीं खाती और जब आरोही दाल का हलवा बनाती तो तानी को अपने हाथों से खिलाना कभी नहीं भूलती थी । जब तानी मायके चली जाती थी तो आरोही का मन नहीं लगता था और जब आरोही मायके जाती थी तो तानी को अच्छा नहीं लगता था। दोनों की समझदारी की क्या कहूं…..
यहां तक की दोनों के मायके से भी एक दूसरे की का रिश्ता बन चुका था । मैं भी इन दोनों के प्रेम की जड़े सीचने के लिए कुछ ना कुछ ऐसा करती रहती थी । जिससे इन दोनों का प्रेम का पौधा हरा भरा रहे क्योंकि मैं जानती थी इससे ही मेरा परिवार जुड़ा हुआ रहेगा।
रजत और विशाल भी सुकून से रहेंगे और साथ ही साथ मेरे पति शर्मा जी का तो क्या ही कहना क्योंकि जिस घर के बुजुर्ग के साथ पूरा परिवार एक साथ रहता है। उनकी खुशी एक अलग ही होती है।
मैं इन दोनों का प्यार देखकर मन ही मन बहुत खुश रहती और ईश्वर से प्रार्थना करती रहती थी । हे ईश्वर मेरे परिवार पर इसी तरह तुम अपना आशीर्वाद बनाए रखना फिर अचानक ऐसा क्या हो गया ????
मेरी दोनों बहुओं ने आपस में बातचीत ही बंद कर दी आखिर क्यों,,,,यह मैं समझ ही नहीं पा रही थी मगर आज अचानक जैसे ही मैं अपने कमरे से निकल कर रसोई की तरफ जा रही थी तो मैंने आरोही को फोन पर कहते हुए सुना ।
आंटी मुझे तो पता ही नहीं चलता अगर आपने मुझे नहीं बताया होता कि तानी इतना बुरा सोचती है मेरे लिए जबकि मैंने तो छोटी बहन बनाकर उसको बहुत प्यार किया था ।
मैं तुरंत समझ गई । ओह यह तो सुहानी ही है। जो मेरी दोनों बहू के बीच दूरियां लाना चाहती है। मैं फिर सोचने लगी उससे खुद का परिवार तो संभलता नहीं ,उसकी बहुत छोटी सोच और बुरे बर्ताव के कारण ही कुछ दिन में ही अपने बेटे बहु को अलग कर दिया और आज वो मेरी दोनों बहु जो आपस में बहनों की तरह रहती थी अब उन्हें दूर कर रही है मगर मैं ऐसा होने नहीं दूंगी ।
मैं खुद के दिल से ये बोल उठी और घर की ओर चल पड़ी। घर में जैसे ही प्रवेश करने लगी देखा। आरोही रो रही है और तानी कह रही थी। दीदी मेरा ब्लड ग्रुप ए पॉजीटिव है ।बाबूजी को मेरा खून आसानी से चढ़ जाएगा ।
मेरे भी तो बाबूजी हैं वो ।आप चिंता ना करें कहकर उसने रोती हुई आरोही को गले से लगा लिया और उसके पीठ को सहलाने लगी ।
तब आरोही सिसकते हुए ही बोल उठी। तानी मेरी बहन मुझे क्षमा कर दे । मैं सुहानी आंटी की बातों में आकर तुझे ही गलत सोच बैठी । आज मैं जान गई हूं। तु मेरे लिए कभी बुरा नहीं बोल सकती भूल मेरी है।
मुझे उनकी बातों पर यकीन करना ही नहीं था । कुछ लोग यानी की सुहानी आंटी जैसे लोग हमारे समाज में मिल ही जाते है मगर सही तो तब हो ।
जब उनकी बातों को सुना ही ना जाए और बस चाय पिलाकर विदा कर दिया जाए मगर मैं तो ठहरी बुद्धू जो उनकी बातों में आकर अपनी बहन जैसी देवरानी को ही बुरी समझ बैठी।
तब तानी मुस्कुराकर कहने लगी। दीदी जो हुआ उसे भूल जाए और मां के आते ही हम सब हॉस्पिटल चलते हैं ।तानी की बात पूरी भी नहीं हुई । उसके पहले ही मैं अंदर आती हुई बोल उठी ।मैं तैयार हूं मेरी दोनों बेटियों मैं तो धन्य हो गई। जो तुम दोनों अपने मायके से ऐसे संस्कार लिए मेरे घर आई।
हम गैरों की सोच तो नहीं बदल सकते हैं मगर उनकी बुरी और छोटी सोच हम पर हावी ना हो। हम ऐसा तो कर ही सकते हैं ।
मैं एकबार फिर मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहने लगी।
हे ईश्वर आपके आशीर्वाद से ही मेरी दोनों बहु पहले की तरह आपस में बहन की तरह रहने लगी है। इन्हें ऐसे ही रखना और फिर हम सभी हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम