मेरा खून ऐसा नहीं है..! – मीनू झा  

“नीना…मानती हूं शिवांश इकलौता बेटा है तुम्हारा, बहुत प्यार से पाला पोसा बड़ा किया है,पर अपने प्यार को इतना भी अंधा मत बनाओ कि जिन आंखों में बसा कर रखा है उसे..कल वहां सिर्फ आंसू ही रहें”–जेठानी नीना से कह रही थी।

जीजी..किसने कहा आपसे कि मेरा प्यार अंधा है..या मेरा बेटा मुझे धोखा दे रहा है।कभी कभी आंखों देखा भी सच नहीं होता,आपने जिसके साथ देखा उसे वो उसके साथ पढ़ती है,उसका आज जन्मदिन था तो वो घर पर आई थी.. मैंने ही शिवांश से कहा उसे मेरी तरफ से कोई अच्छा सा गिफ्ट दिला दे और किसी रेस्तरां में खिला दें.. इसमें कौन सी आफत आ गई–नीना ने जेठानी को कहा।

पर अभी पढ़ने लिखने की उम्र में इतना ढील देना भी सही नहीं है नीना..वो तो मैंने तुमसे बात की तो सच्चाई पता चल गई पर हमारे किसी परिचित ने देखा होगा तो गलत ही सोचेगा और समझेगा ना–जेठानी ने खिसियाया सा मुंह बनाकर बोला।

“बोलने दीजिए जीजी..जिस दिन मेरा बेटा डाक्टरी पास करेगा ना..वहीं लोग बधाई देने सबसे पहले आएंगे”

“भाई जब मां ही वकील हो तो क्या और कितनी दलील देना।बड़ी हूं ना बिना बोले भी रहा नहीं जाता।चलो तुम्हारे जेठ जी आते होंगे,चलती हूं’

जेठानी को विदा कर नीना आई तो काफी परेशान थी, दिनेश जी के पास आकर बैठ गई।

“जी..सुनते हो..मुझे शिवांश की बहुत फ़िक्र होती है।आपने सुना अभी जीजी क्या बोल गई”

“हां सुना..पर तुमने तो कहा..”

“झूठ बोला मैंने..दूसरे के आगे अपने बच्चे की इज्जत कैसे खराब होने देती।मुझे तो ये भी नहीं पता वो किसके साथ किस रेस्तरां गया है,कहकर निकला था कि शरद ने एक किताब देने के लिए बुलाया है..शाम होने को आई अभी तक आया भी नहीं। मैं तो परेशान हो गई हूं…ना ये लड़का जमाने के हिसाब से चलता है,ना ये जमाना मुझे चैन लेने देता है।”



अरे बेकार परेशान ना होना।क्या ये कोई पहली बार की बात है जो किसी ने आकर तुम्हारे कान भरे हों..ना ये पहली बार है कि शिवांश देर से आया हो।अरे लोगों की बात पर कितना ध्यान देना,हमारा बच्चा क्या है,कैसा है ये हमें दूसरे थोड़े ही बताएंगे,अपने दिये संस्कारों पर भरोसा रखो नीना सब ठीक होगा। तुम्हें पता है ..जब कई लोग मुझसे कहते हैं कि आपका शिवांश है तो बहुत होशियार पर उसकी संगत अच्छी नहीं है।जवाब में दो टूक मैं यही कह देता हूं कि जहां बचपन से पला बढ़ा है संगति और साथी वहीं के होगें ना,अब मैं उसे टापर्स की संगति यहां कैसे लाकर दूं–दिनेश जी ने नीना को समझाया।

तभी गेट खुलने की आवाज आई और शिवांश अंदर दाखिल हुआ।

हद हो गई..कितनी देर कर दी?कहां गया था,किसके साथ था?परीक्षा सर पर है और इतनी देर कहां रह गए?

अरे अरे..एक साथ इतने सवाल..वो शरद की बर्थडे थी..उसने सारे क्लासमेट को इनवाइट किया था..पर पार्टी के बारे में बताता तो मैं जाता नहीं क्योंकि उसे पता है अगले हफ्ते मेरे पेपर्स हैं..तो उसने मुझे एक बुक देने के बहाने से बुला लिया..उसके घर पहुंचा तो पूरी पलटन थी वहां..फिर वहां से रेस्तरां…पूरे दो तीन घंटे बर्बाद हो गए,पर आपको क्या लगा-शिवांश ने कुर्सी खींच कर बैठते हुए कहा।

वो तेरी बड़ी मम्मी आईं थीं,वो उस रेस्तरां के बगल के किसी शाॅप पर गईं थीं तो तुझे किसी लड़की के साथ देखा तो कह रही थी..शिवांश को संभाल लो। मैं तो अब तंग आ गई हूं तेरी शिकायतें सुन सुनकर–नीना ने धीरे से कहा

अच्छा मेरे बगल में बैठी नैन्सी दिखी और शरद,अदिति,नलिन, आदित्य,नीति ये सारे नहीं दिखे उन्हें। खैर ,जाना तो नहीं था पर मजा बहुत आया,खुब मस्ती की हम सबने.. कहिए अच्छा ही हुआ पेपर्स से पहले दिमाग पूरी तरह हल्का हो गया।रूको मम्मा मैं ग्रुप फोटो दिखाता हूं आपको, फिर तो भरोसा करोगे ना मुझपर.. बहुत सारी सेल्फी ली हमने–कहकर शिवांश नीना को मोबाइल में ली हुई तस्वीरें दिखाने लगा।

फिर शिवांश कपड़े बदल कर पढ़ने चला गया और नीना उसके लिए किचन में चाय बनाने लगी,साथ ही साथ सोचने लगी।



शिवांश बचपन से ही बहुत चंचल,प्यारा और बातूनी है..पर पढ़ने लिखने में भी उतना ही होशियार।कभी अपनी क्लास में सेकेंड नहीं आया..यही नहीं स्पोर्ट्स हो, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिवीटिज हो सबमें अव्वल रहने वाला शिवांश बहुतों की आंखों में भी खटकता।दूसरे तो दूसरे तथाकथित अपने भी उसकी टांग खिंचाई का एक मौका हाथ से नहीं जाने देते। हालांकि नीना जानती थी कि भले ही वो सारा दिन दोस्तों के साथ बीता दे, क्रिकेट, फुटबॉल में बीता दे..वो पढ़ाई के साथ कभी समझौता नहीं करता था।आज शायद वो पूरी रात पढ़ाई करेगा। वैसे उसे भी लोगों की शिवांश संबंधी शिकायतों की आदत पड़ चुकी थी,वो जानती थी कि ये लोग अपने मन की खुन्नस निकाल रहे हैं,पर था तो आखिर मां का ही दिल..ना चाहते हुए भी दूसरों की बातों पर भरोसा हो आता। सोचने लगती आखिर है तो बच्चा ही वो भी सत्रह साल का,उम्र का एक नाजुक दौर..पर जहां अपने बच्चे का मासुम चेहरा और निश्छल आंखें उसे हमेशा आश्वस्त करतीं, वहीं दूसरे क्षण किसी की कही कोई बात दिमाग में घूम जाती। अजीब सी स्थिति बन जाती नीना के अंतर में।

दूसरे दिन नीना का मन थोड़ा ढीला था तो सुबह से दोनों बाप बेटे घर के काम निबटा रहे थे।

संयोग से कामवाली मनोरमा बारह बजे आई।

क्या मनोरमा..इतने बजे कोई आता है क्या??

“बीबी जी, पुलिस दारोगा का चक्कर लगा गया इसलिए लेट हो गई।”

“अच्छा..तो ये कौन सी नई बात है,फिर कुछ कांड किया होगा तेरे बेटे ने”

“बीबी जी, कोई कांड कर लें मेरा बच्चा..पर चोरी नहीं कर सकता..रात पुलिस आके जबरन उसे ले गई”



“ये तू कैसे कह सकती है ? जिसको दुनिया की सारी लतें हैं निकम्मा,जुआरी,कबाबी,शराबी सब है,उसके लिए चोरी कौन सी बड़ी चीज है मनोरमा?

“बीबी जी…नौ महीने अपने भीतर रखा है उसे..जानती हूं क्या कर सकता है क्या नहीं..चेहरा पढ़ कर जान जाती हूं बाहर से क्या करके आया है। और जब पुलिस उसे ले जा रही थी तो जिस तरह से वो रोया मैं समझ गई..उसे किसी ने फंसाया है”

तुम्हारा प्यार अंधा है मनोरमा–नीना ने अपनी जेठानी की बात दोहराई।

“प्यार पर विश्वास करूं ना करूं, पर अपने खून पर भरोसा कैसे ना करूं बीबी जी..मां अगर अपने बच्चे को ना समझी तो दूसरा कैसे समझेगा और मैं क्यों भरोसा करूं दूसरों की बात का, दुनियां तो बच्चे को नौ महीने बाद देखती समझती है..मां तो उसके पहले एहसास के साथ ही समझने लगती है..चोरी मेरे संस्कार में नहीं है होता तो चौंका बर्तन करती क्या, तो मेरे बच्चे में कैसे आएगा बीबी जी?

अच्छा बता फिर आगे क्या हुआ ??

होना क्या था…रात भर थाने के बाहर बैठी रही.. उसी के दोस्तों को लताड़ा तो उनकी मानवता जागी और फिर जब असली चोर धराया तो मेरे बेटे को छोड़ दिया..रात भर का भूखा था.. जल्दी से उसे रोटी देकर दौड़ी आई बीबी जी..। अच्छा अब जल्दी से सारे काम कर लूं,आप पंद्रह नंबर वाली बीबी जी को फोन कर देना..थोड़ी देर होगी आने में–कहकर मनोरमा काम में लग गई।

अंगूठा लगाकर काम चलाने वाली इस औरत को पता है अपने बच्चे के बारे में,उसका भरोसा अपने खून पर है,अपनी नज़रों पर है,अपने बच्चे की बातों पर है और अपने दिये हुए संस्कारों पर है,और वो पढ़ी लिखी होकर भी अपने बेटे को दूसरों की नजरों से देख उसपर अविश्वास कर बैठती है,वो भी जब उसने आजतक उसका विश्वास एक बार भी नहीं तोड़ा..कैसी मां है वो…खैर अपने बच्चे पर,अपने दिए संस्कारों पर अविश्वास आज से नहीं, बिल्कुल भी नहीं।

मनोरमा उसके मातृत्व को एक नई नज़र,एक नया दृष्टिकोण दे गई।

#संस्कार 

मीनू झा  

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