Moral Stories in Hindi : “रोहन की माँ लो यह अपने पूजा पाठ का सामान… जितना याद आया था सब दुकान से लेकर आया हूँ । इस बार खूब मन से जमकर कृष्णाष्टमी मनाओ क्योंकि कान्हा जी ने तुम्हारी मन की मुराद पूरी की है।”
माँ ने चौकते हुए कहा-” कौन सी मुराद ?”
पिता जी ने याद दिलाया-” क्यों क्या तुम्हारी इच्छा नहीं थी कि स्कूल के बाद रोहन का एडमिशन बड़े कोचिंग संस्थान में हो जाये और वह इंजीनियरिंग की तैयारी करने वहां चला जाये। “
-“हाँ चाहती तो थी पर इतनी दूर जाएगा यह नहीं चाहती थी”- माँ ने रूआसी आवाज में कहा।
“वाह भाई वाह! सपना देखोगी कि बेटा इंजीनियर बने पर वह रहे तुम्हारे आँचल में! ऐसा सम्भव नहीं है। कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है समझी। सब छोड़ो और सबलोग पूजा की तैयारी में लग जाओ।”
बेटी को बोले- “रिया आज कोई फोन हाथ में लेकर नहीं बैठेगा ।
“ठीक है न ! चलो साफ सफाई में माँ का हाथ बटाने।”
“ओह्ह… पता नहीं सुबह -सुबह किसका फोन आ रहा है…अब किसके पास समय है आज के दिन बात करने का…! देख तो रिया कौन है जो इतना बेचैन है बात करने के लिए!..-माँ ने खीझकर कहा।
“कुछ लोगों के पास दिमाग नाम का चीज नहीं है। छोड़ो जिसका भी है अपने आप ऊबकर रिंग करना छोड़ देगा।” माँ मन ही मन बड़बड़ाते हुए कृष्णाष्टमी में अपने कान्हा जी को पहनाने के लिए फूलों की माला गुंथ रही थी।
तभी बेटी कमरे से हाथ में फोन लिये दौड़ी पूजा घर में आ गई और बोली-“माँ… माँ….देखो ना भैया का फोन है..बात कर लो।”
“भैया का है…! परसों ही तो फोन किया था। मैं कितना कुछ पूछ रही थी और वह सिर्फ हाँ…हूं कर रहा था। मन नहीं लग रहा होगा। यहां रहता था तो जन्माष्टमी की तैयारी के लिए धूम मचाये रहता था। देखना वह पक्का पूछेगा की माँ भोग में क्या क्या बना रही हो!”
छोटी बेटी रिया बोली -“माँ हो सकता है उसके आसपास कोई और होगा इसीलिए भैया कुछ नहीं कह पा रहा होगा। अभी वह बात करना चाहता है तो कर लो ना….!”
“अच्छा रहने दो बाद में बात कर लूँगी। देख नहीं रही हो अभी जरूरी काम कर रही हूँ और भी ढेरों काम बाकी हैं। पूजा घर साफ करना है पूरे घर को फूलों से सजाना है। उसके बाद कान्हा जी को भोग लगाने के लिए तरह-तरह के पकवान बनाना है। आज मैं बहुत व्यस्त हूँ जाओ फोन रखो और थोड़ा झूले को साफ कर दो…।”
फिर से फोन की घंटी बज उठी। “रिया देख तो अब कौन है?” माँ लड्डू की बूँदी तलते हुए बोली।
“माँ फिर से भैया का ही कॉल है। तुम पहले बात कर लो बाद में व्यंजन बनाते रहना।”
“नहीं… नहीं समय बहुत कम है भोग नहीं बना तो कान्हा जी को क्या खिलाउंगी। मेरे दोनों हाथ अभी व्यस्त हैं। जाओ जाकर पापा को दे दो वह बात कर लेंगे।”
रिया ने फोन को पिता के पास ले जाकर दे दी।
पिता कॉल रिसीव करने से पहले ही भड़क गए और खीझकर बोले- “यह लड़का पढ़ने गया है कि मटरगश्ती करने। चौबीसों घंटा फोन पर लटका हुआ रहता है। चार महीने में चार सौ बार फोन कर चुका है। हर बार एक ही बात…..पापा यहां कुछ अच्छा नहीं है। कुछ अच्छा क्या होता है। पढ़ने के लिए गया है कि अच्छा बुरा देखने!”
माँ किचन से हाथ पोछते हुए आयी और पूछने लगी-” बेटे से बात हुई! क्या कह रहा था आपसे?”
“नहीं हुई…होती भी तो क्या… वह वही बात दुहराता पापा यहां कुछ अच्छा नहीं है। अब जी जान लगाकर उतने बड़े कोचिंग संस्थान में भेज दिया। यह क्या कम बड़ी बात है!”
माँ थोड़ी चिंतित होकर बोली- “ठीक है,आपने बहुत अच्छा किया है उसके लिए लेकिन वह बच्चा है अभी। माँ-बाप से दूर पहली बार गया है हाल समाचार पूछ लेने में क्या दिक्कत है।”
“अरे ! भाग्यवान मेरी औकात नहीं थी उसे हॉस्टल में रखकर पढ़ाने की। लेकिन उसके कैरियर और तुम्हारे जिद के कारण मैंने जैसे- तैसे पैसे का इंतजाम कर उसे इतनी दूर पढ़ने के लिए भेजा। अब सबकुछ मन पसंद कहां से मिलेगा उसे घर जैसा। घर से इतना लगाव रखेगा वह तो …इंजीनियर क्या खाक बनेगा!”
माँ को पिताजी की बात अच्छी नहीं लगी फिर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और अपने पूजा पाठ में लगी रही। पूजा में अगल- बगल से पड़ोसी भी आये थे। सबने एक सुर में यही कहा कि-“बेटे रोहन के बिना घर सूना- सूना लग रहा है।”
बगल के पड़ोसी शर्मा जी बोल पड़े-“जो भी हो घर भी बच्चों के बिना बिलखता है।”
उनकी बातों को काटते हुए पिताजी बोले-“अरे शर्मा जी- लोटा और बेटा घर में रखने का चीज नहीं है… यह दोनों घर के बाहर ही शोभा देता है । बच्चों को भविष्य में कुछ अच्छा बनाना है तो उसे घर में बैठाने से नहीं होगा। जहां तक दुसरी बात है आदमी के पास बच्चे को बाहर भेजकर पढ़ाने का औकात भी रहना चाहिए।”
बेचारे शर्मा जी पिताजी की बात सुनकर झेप गये क्योंकि उन्होंने अपने बेटे को बारहवीं के बाद सरकारी कॉलेज में नामांकन करवाया था। माँ वक़्त के नजाकत को देखते हुए सबको कान्हा जी के झूले के पास ले गई।
बाल गोपाल के लिए उन्होंने अनेकों व्यंजन बनाये थे। और बार -बार यही कह रहीं थीं कि सब रोहन के पसंद का है । उन्होंने भोग लगाने के बाद सबके साथ मिलकर आरती किया। सबको प्रसाद बांटा जा रहा था तभी फिर से फोन की घंटी बजी…..रिया बोली- ” माँ भैया का….!
माँ बोली-” लाओ दो… मुझे …जल्दी से बात कर लेती हूं। वह मोबाइल लेते हुए जल्दी से बोली -“हाँ बेटा बोलो …जल्दी बोलो मेरे पास समय नहीं है…. आज जन्माष्टमी है न तो मैं इत्मीनान से बात बाद में करूंगी। मुझे पता है तेरा वहां दिल नहीं लग रहा है। लेकिन तू वहां पढ़ने गया है न! इसलिए मन पढ़ाई पर लगाया करो घर पर नहीं। हैं न!
उधर से बेटे की आवाज आई ” माँ…..खाने में क्या बनाया है !”
“सब तेरे पसंद का….माल पूआ, हलवा,रबड़ी लड्डू पेड़ा और जो जो तुझे पसंद वही तो कान्हा जी को भी पसंद है। पूरे के पूरे छत्तीस व्यंजन हैं भोग में ! सब प्रसाद खाकर उँगली चाट रहे हैं! …लेकिन तू खाने पर ध्यान मत दे सिर्फ अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह से जुट जा तुझे इस बार मुहल्ले वालों को दिखा देना है कि तू वहां पैसा बर्बाद करने नहीं इंजीनियर बनने गया है। ठीक कहा न हमने । अब मैं फोन रखती हूँ!”
“माँ … फोन मत रखना!”
“अरे बेटा कल इत्मीनान से बात करूंगी आज रहने दे। बहुत मेहमान हैं सबको प्रसाद खिलाना है ।”
“माँ ……!
“नहीं -नहीं मुझे सब पता है तू क्या कहेगा….अब कल बात करूंगी! “
कहकर माँ ने फोन ऑफ कर दिया। फिर सबको सुनाने लगी बचपन से ही नटखट है रोहन …बिल्कुल कान्हा जी की तरह! पकवान का नाम जानना चाह रहा था। कोई बात नहीं जब भी छुट्टियों में आएगा सब बनाकर खिला दूँगी।
पापा भी जोर से ठहाका लगाकर हँस पड़े और बोले-” तुमने ही तो उसे खिला- खिला कर बिगाड़ा है तभी तो कहता है कि हॉस्टल का खाना उसे पसंद नहीं है।उनकी चुटकी सुनकर उनके साथ -साथ वहां मौजूद सभी लोग हंसने लगे!”
खा- पीकर सब आराम से सो गये। माँ ने सोने से पहले एक बार कान्हा जी के झूले को देखने गई तो देखा दीये बूझ रहे थे उन्होंने उसमे घी डाला और प्रणाम कर सोने की तैयारी में लगी तभी फोन की घंटी बजने लगी ।
उन्होंने किसी और का कॉल देखा तो फोन की आवाज कम कर सोने की कोशिश करने लगीं। थकान की वजह से तुरंत ही नींद ने उनकी आँखों को घेर लिया।
आधी रात को लगा जैसे कोई उन्हें झकझोरते हुए उठा रहा है। वह उठ कर बैठ गई। मन नहीं माना तो तकिये के पास से मोबाइल निकाल कर देखा। सुबह के चार बजे थे और लगभग दस मिसकॉल थे। उन्होंने ना चाहते हुए भी उस नंबर पर रिंग कर दिया। पता नहीं उनकी कानों ने क्या सुना अचानक से चित्कार उठीं। उनके चीख से पूरा घर थर्रा गया जो जहां सोया था दौड़ कर माँ के कमरे में आया। माँ अपने बिस्तर के नीचे बेहोश गिरी थीं।
कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था । सबको लगा कि जरूर कोई कीड़ा या साँप ने माँ को काट लिया है। आनन-फानन में उन्हें उठा कर हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि किसी कीड़े या साँप ने नहीं काटा है। दवा दारू चलने लगा। माँ होश में आयी और आते ही रोहन कहते हुए फिर से मूर्छित हो गईं।
बेटे का नाम सुनते ही पापा वही बैठ गए। उनका दिमाग सुन्न होने लगा तभी शर्माजी ने माँ के मोबाइल से उसी नंबर पर कॉल लगाया। उधर से जो कुछ भी उन्होंने सुना उनके होश उड़ गये। किसी तरह से परिवार वालों को ढाढस बांधते हुए उन्होंने उस शहर में चलने के लिए कहा जहां के हॉस्पिटल में रोहन जिंदगी और मौत से जुझ रहा था।
वहां पहुंचकर पुलिस अधिकारियों से पता चला कि हॉस्टल में रहने वाले सीनियर स्टूडेंट के साथ हॉस्टल के कैंटीन में खाने को लेकर रोहन की कहा सुनी हुई थी । दबंगई दिखाते हुए सीनियर स्टूडेंट ने कैंटीन के इंचार्ज को उसे खाना नहीं देने की हिदायत दी थी। साथ ही उसे धमकाया भी था कि वह किसी से इसकी शिकायत नहीं करेगा वर्ना उसे धक्के मार कर हॉस्टल से निकाल दिया जायेगा। जिस कारण रोहन ने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया था। भूख से बेहाल वह कमरे में बेहोश पड़ा था। कोचिंग संस्थान की लचर व्यवस्था और वहां के सीनियर छात्रों की दबंगई ने एक बेगुनाह बच्चे को जिंदगी और मौत के बीच झूलने पर मजबूर कर दिया।
पिता ने रोते हुए अपना सिर पीट लिया। डॉक्टर जो रोहन की जान बचाने में लगे हुए थे उन्होंने कहा-“आपलोगों को अपने बच्चे को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था शायद वह यही बताने की कोशिश कर रहा था। एक बात आपलोगों को क्यों समझ में नहीं आता कि अपने बच्चे के दुनियां में आने के बाद में ही आप माँ और बाप कहलाये थे। फिर उनका कीमत आप क्यों समझ नहीं पाते हैं ।आपके लिए आपका बच्चा कीमती है उसका कैरियर नहीं!”
डॉक्टर की बातों को पिता निर्जीव के समान सुन रहे थे एकाएक उन्होंने डॉक्टर का पैर पकड़ लिया और जार जार होकर रो पड़े। डॉक्टर की कोशिश बेकार हो गई । कुछ दर्द की बूंदे उसकी आँखों से भी छलक गई थी।
माँ को तो होश ही नहीं है। लगभग दो महीने कोमा में थी। जब भी होश में आता है तो एक ही बात कहती हैं कि मैं हत्यारिण हूँ अपने बच्चे की ! कान्हा जी के झूले में रोहन की तस्वीर रखकर पगली की तरह झुलाते हुए लोरी गाकर सुलाती हैं….. मैं जागुं रे तू सोजा …ओ मेरा कान्हा…. ।
नियति कहिये या लापरवाही माँ- बाप का घोंसला उजड़ चुका है। अति महत्वाकांक्षा और दुनियां को दिखाने के चक्कर में उन्होंने अपने बच्चे के अन्तरनाद को अनसुना कर दिया था काश! …. एक बार सुन तो लेते की बच्चे की मनःस्थिति क्या थी……!
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार