मेरी माॅं – नीरजा कृष्णा

कॉलबेल बजने पर मीनू दौड़ कर गई तो सामने ताईजी को देख कर खुशी से चिल्ला पड़ी,”अरे वाह…ताई जी आई हैं… वाह अब मेरी काफ़ी प्रॉब्लम सुलझ जाऐगी।”

इतने प्यारे स्वागत से लहालोट ताई जी ने उसे गले लगा लिया ,”तेरी क्या प्रॉब्लम्स हैं जो तू मेरी राह देख रही थी?”

कुछ बोलते बोलते उसने अपना माथा ठोंका और किचन की ओर भागी…घबड़ा कर उसकी ताई जी भी पीछे पीछे गई…. वहाँ तवे पर रोटी जल कर खाक हो गई थी।

वो रुआँसी होकर अपनी सफाई देने लगी,”क्या है ना…मेरी इन सब कामों की इतनी आदत तो है नही…कॉलबेल बजने पर सीधे दौड़ पड़ी।”

“अरे ना..ना…मेरी लाडो…तेरी कोई उम्र है इतना सब करने की। वैसे वो तेरी मम्मी कहाँ है… अरे पूछना क्या है… जरूर कॉलोनी में कहीं बैठी गप्प लगा रही होगी… बच्ची को यहाँ चौके में झोंक गई… आखिर सौतेली ही तो है।”

मीनू मुँह बना कर बोली,”आप मेरी मम्मी को ऐसे मत बोलिए। उन्हें कल से तेज बुखार है। अभी तो मैंनें ही जबर्दस्ती उनको लेटाया है… सुबह से वोही गिरते पड़ते कर रही है… अब मुझसे देखा नही गया।”

थोड़ा शर्मिंदा होकर वो वंदना के कमरे में गई…. वो एकदम बेसुध पड़ी थी…मीनू ने माँ के माथे पर ठण्डे पानी की पट्टी रखते हुए बताया,”मम्मी की तबियत सुबह कुछ सम्भली हुई थी… पापा के साथ मिल कर कुछ कुछ उन्होंने किया पर अब तो वो एकदम तप रही हैं।”

ताई बारूद का गोला दागने से बाज नहीं आई,”तो उसी समय रोटी भी मिल कर बना लेती… सोचा होगा… मीनू तो है। अरे तेरी अपनी माँ होती तो क्या ऐसा करती। लाख लाख शुक्र है… रोटी ही जली…हमारी बिटिया बच गई।”

मीनू बुरी तरह खिसिया गई,”ये अपनी तेरी माँ क्या होता है।  मेरी माँ तो मुझे याद भी नही है… होश सम्भालने पर इन्हीं को माँ के रूप में देखा…इन्हीं से पूरा लाड़ प्यार पाया… मेरी तो यही माँ हैं …मैं बस इनको ही पहचानती हूँ….ताई जी ..आप रोटी बना दो…पापाजी लंच के लिए आते ही होंगे।”

पासा पलटते देख कर उन्होंने भी पैंतरा बदला और हँस कर बोली,”अरी मैं तो तेरा टैस्ट ले रही थी…लाडो तो बुरा मान गई।”

“नहीं ताईजी! कोई बात नही… बचपन में ही एक माँ खो चुकी हूँ…अब दूसरी माँ को खोना नही चाहती।”

नीरजा कृष्णा

पटना

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