मेहनत का बीज

बहुत पुरानी बात है  सीतापुर के राज्य के राजा को  शादी के 25 साल हो चुके थे लेकिन अभी भी कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी।  जिसे राज्य की उत्तराधिकारी घोषित किया जा सके.  एक दिन इसी बात की चर्चा राज्यसभा में चल रही थी तभी राजगुरु ने राजा को सलाह दी महाराज हम ऐसा करते हैं कि हम अपने राज्य में से ही किसी एक गुणवान और प्रतिभाशाली बालक  को इस राज्य के उत्तराधिकारी चुन लेते हैं। 

 राजगुरु की इस बात से राज्य सभा में उपस्थित सभी मंत्री गण भी सहमत हुए और यही फैसला किया गया कि राज्य का उत्तराधिकारी इसी राज्य का कोई बालक को  घोषित किया जाएगा। 

 अगले दिन राज्य में घोषणा करवा दी गई इस पूर्णमासी के दिन राज्य के सभी बच्चे जिनमें विलक्षण प्रतिभा हो उत्तराधिकारी की परीक्षा पास करने के लिए शामिल हो सकते हैं ।  और उन्हीं बालकों में से एक बालक को सीतापुर राज्य का अगला राजा घोषित किया जाएगा। 

 पूर्णमासी के दिन राज्य के मंदिर वाली मैदान में एक से एक विलक्षण प्रतिभा के धनी बालक पहुंच चुके थे। 



 उन सभी बालकों को परीक्षा लेने के लिए राजा ने सभी बालकों को एक एक थैली बटवा दिया और सभी बालकों से कहा गया कि देखो बच्चों आप लोग इस बात को ध्यान से सुनो जो भी आपको थैली दी गई है ध्यान रहे उन थैलियों  में अलग-अलग फूलों के बीज हैं। 

हर बच्चे को सिर्फ एक एक बीज ही दिया गया है… आपको इसे अपने घर ले जाकर एक गमले में लगाना है… और 6 महीने बाद हम फिर आप सब के यहीं इकठ्ठा होंगे और उस समय मैं फैसला करूँगा की कौन इस राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा…

उन बालकों में एक देवेंद्र  नाम का बालक  था,  बाकी बालकों  की तरह वो भी बीज लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर वापस आ गया… उसी दिन घर जाकर उसने एक गमले में उस बीज को लगा दिया और उसकी अच्छे से देखभाल की… दिन बीतने लगे, 

लेकिन कई हफ्ते बाद भी गमले में पौधे का कोई नामोनिशान नही आया…. वहीं आस पास के कुछ बच्चों के गमलों में पौधे दिखने लगे… लेकिन देवेंद्र  ने सोचा की हो सकता है की उसका बीज अलग हो… यह सोचकर वह पौधे की देखभाल पूरी लगन के साथ करता रहा… लेकिन लगभग तीन महीने बीत जाने के बाद भी उसका गमला खाली था…. जबकि दूसरे बच्चों के गमले में फूल भी खिलने लगे थे….*

देवेंद्र का खाली गमला देखकर सभी उसका मजाक उड़ाने लगे….. पर इसके बावजूद भी  देवेंद्र  ने हार नही मानी और लगातार गमले की देखभाल करता रहा… देखते-देखते 5 महीने बीत गये , अब देवेंद्र चिंतित था क्योंकि उसके गमले में कुछ नही निकला था  और अब उस गमले की देखभाल में उसकी रूचि कम हो गयी थी । 

लेकिन उसकी माँ ने समझाया कि – बेटा नतीजा कुछ भी हो लेकिन तुम्हे इस गमले पर अब भी उतनी ही मेहनत और उतना ही समय देना है जितना तुम पहले देते थे ,फिर भले ही गमले के प्रति तुम्हारी ये मेहनत बेरुखी से भरी हो । क्योंकि ऐसा करने से तुम्हे भी एक तसल्ली होगी कि बेचाह  और बेरुचि ही सही लेकिन तूने उस गमले के लिये आखिरी तक अपनी कर्तव्य  और मेहनत दी। बाकी राजा जाने और फिर अंत में उसकी माँ ने उसे ये भी समझाया कि सोचो अगर राजा को ये पता चलेगा कि आखिरी में तुमने गमले के प्रति मेहनत और समय देना बन्द कर लिया था तो हो सकता है राजा तुमसे गुस्सा करें  और देवेंद्र  माँ की ये सब बातें सुनकर , तो कभी राजा के डर को याद कर , बेरुखी और बेरुचि ही सही लेकिन पूरा समय और मेहनत देता रहा ।



धीरे धीरे 6 महीने पूरे हो गए उस  तय हुए दिन सभी बच्चों को महल में इकठ्ठा किया गया सभी के गमलों में पौधे थे… बस देवेंद्र  का गमला खाली था… राजा बच्चों के बीच से होकर आगे बढ़ने लगे … और गमले में लगे सबके पौधों का निरिक्षण करते… सबके पौधे देखते-देखते राजा की नजर देवेंद्र  के गमले पर पड़ी… राजा ने देवेंद्र से पूछा… क्या हुआ तुम्हारा गमला खाली क्यों है?

देवेंद्र ने हिचकिचाहट के साथ जबाव दिया- जी मैंने तो इस गमले पर पूरे 6 महीने तक अपनी तरफ से पूरी मेहनत की और पूरा पूरा समय भी देता रहा  लेकिन इसमें से कुछ भी नही निकला….

राजा आगे बढ़े और सभी के गमले देखने के बाद सभी बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा कि – आप लोगों ने पौधा लगाने में बहुत मेहनत  की ज्यादातर लोग किसी भी कीमत में राजा बनना चाहते हैं लेकिन एक लड़का यहाँ खाली हाथ आया… जिसका नाम है देवेंद्र … राजा ने देवेंद्र  को अपने पास बुलाया । 

“राजा के इस तरह बुलाने पर देवेंद्र को कुछ अजीब लगा..” देवेंद्र  धीरेे-धीरे राजा के पास पहुँचता है… जैसे ही राजा देवेंद्र  के उस खाली गमले को उठाकर सभी बच्चों को दिखाता है…. सभी हंसने लगे….

राजा ने ऊँची आवाज में कहा- शांत हो जाओ ।  6 महीने पहले मैंने आप सब को जो एक एक बीज दिये थे , वे सब बंजर थे जो कभी उग नही सकते थे…आप चाहे उसकी कितनी भी देख रेख कर ले उसमे से कुछ भी नही उग सकता था , लेकिन आप सब ने बीज बदल कर आसानी से उगने वाले दूसरे बीज़ ख़रीदे ताकि आप राजा बन सकें। लेकिन आप सब में सिर्फ देवेंद्र  ही है जो खाली हाथ आया है । देवेंद्र  ने मेरे दिये उस बीज़ पर खूब मेहनत की और जब अंत में उसे लगा कि शायद बीज उगने का कोई चारा नही तो भी बेरुखी से ही सही  लेकिन उसने पूरे 6 महीनो तक उस गमले में हर रोज अपनी मेहनत और समय दिया । इसलिये मैं देवेंद्र  को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता हूँ ।

दोस्तों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन में भी इसी तरह कठिन से कठिन परिस्थितियां आती है  और हम अपनी जिंदगी में हार स्वीकार कर लेते हैं लेकिन जो कठिन परिस्थितियों में अपने आप को अडिग  रखे वही असल में योद्धा है।

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