मतलबी रिश्ते – पुष्पा पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार में जन्मी मीना और लीना दोनों बहनों का आपसी प्यार उदाहरण बन चुका था। दोनों एक- दूसरे के लिए समर्पित थीं। माँ लीलावती को पुत्र नहीं होने का बिल्कुल अफसोस नहीं था। वैसे जेठानी के तानें कभी- कभार परेशान जरूर कर देते थे। जेठानी दो बेटों की माँ थी। उसका हमेशा यही कहना था कि

“मेरे बेटे को ही तुम्हारी बेटियों के लिए लोक लाज के डर से ही सही भाई बनकर खड़ा होना पड़ेगा।”

वैसे चारों बच्चे इस भेदभाव से अनजान थे। लीलावती को अपनी बेटियों पर गर्व था। बड़ी बेटी मीना को पढ़ाई- लिखाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन छोटी लीना पढ़ने में होशियार थी। स्कूली शिक्षा के बाद भी वह अपनी पढ़ाई पत्राचार के माध्यम से जारी रखी। ग्रामीण माहौल और असुविधा के कारण काॅलेज नहीं जा सकी। घर में रहकर ही स्नातक की पढ़ाई पूरी की और अब शिक्षक- प्रशिक्षण की भी तैयारी करने लगी। वैसे मीना सभी की चहेती थी,क्योंकि वह गृहकार्य में निपुण थी। परिचितों और अतिथियों का विशेष ख्याल रखती थी। जो भी आता था उसकी तारीफ के पुल बांध चला जाता था। लीना भी अपनी दीदी की तारीफ से बहुत खुश होती थी।

समय आने पर मीना की शादी एक अच्छे-खासे खेतिहर घराने के एकलौते बेटे से हुई। सभी मीना की तकदीर की सराहना कर रहे थे। शादी धूमधाम से हुई और मीना अब अपने ससुराल की मालकिन बनी।

लीना पढ़ी- लिखी थी,इसलिए उसकी शादी एक स्कूल शिक्षक से हुई। उस शादी से भी हर कोई संतुष्ट था।———–

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अब लीना गाँव से निकलकर छोटे से शहर में आ गयी। लीना भी वहीं एक स्कूल में नौकरी करने लगी। समय के साथ दो प्यारे बच्चे हुए। लीना पति के साथ मिलकर घर, बच्चे और नौकरी में सफल ताल-मेल बैठाते हुए जिन्दगी में आगे बढ़ रही थी।

इधर मीना को छे बच्चे हुए। चार बेटा और दो बेटी। बच्चों की परवरिश और फिर बेटियों की शादियों में लगभग आधि जमीन बिक गयी। दिखावे के करण हैसियत से ज्यादा खर्च कर डाली।एक दिन मीना अपने तीसरे बेटे अर्थात पाँचवी संतान को लेकर लीना के पास आई।

लीना अपनी बहन को देखकर बहुत खुश हुई। यथोचित आदर सत्कार के साथ दो दिन यों ही चुटकी में गुजर गये। जाने से पहले मीना ने अपनी बहन से कहा-

” लीना मैं भरत ( उसके बेटे का नाम भरत था।) को यहीं छोड़ जाती हूँ। इसे तुम अपने पास रखकर पढ़ाओ। शहर में रहकर पढ़ेगा तो कोई नौकरी वगैरह आसानी से मिल जायेगी।”

लीना किम् कर्तव्य विमूढ सी देखती भर रह गयी और मीना उसे छोड़कर चली गयी। लीना कभी उस आठ वर्षीय बच्चे को देख रही थी तो कभी अपने पति को। खामोशी छाई रही।———

गाँव के आठ साल के बच्चे को धीरे-धीरे रहन- सहन के तरीके परिवर्तित करने पड़े। समय से जागना और समय से सोना एक बड़ी चुनौती थी। लीना का बड़ा बेटा आगे की पढ़ाई के लिए छात्रावास में चला गया था। लीना को भरत के साथ अपनी नौकरी और अपने दूसरे बेटे की पढ़ाई के साथ सामंजस्य स्थापित करने में बड़ी कठिनाई हो रही थी, लेकिन क्या करती प्यारी दीदी ने जो कहा था।———-

दो महीने बाद उसके पिता उसे देखने आए और वह जबरदस्ती पिता के साथ वापस चला गया।

माँ ने कारण पूछा तो कहने लगा-

” मौसी हमेशा डाँटती है। हमें वहाँ नहीं जाना है।”

दूसरे ही दिन बहन की नाराजगी का संदेशा आ गया।

“मैं तो तुझपर भरोसा कर के अपने जिगर के टुकड़े को छोड़ा था। तुम दौलत के नशे में खून के रिश्ते का भी मान नहीं रखा। मेरा अब तुमसे कोई नाता नहीं है।”

बहन का संदेश पाकर लीना हफ्तों रोती रही। पर ‘वक्त’ तो था न मरहम लगाने के लिए। ———-

लगभग दो साल बाद लीना की ताई जी का पोता भी एक फरियाद लेकर आया।

” बुआ, मैं लाइफ इंश्योरेंस का काम करता हूँ। तुम्हारे पास तो पैसों की कोई कमी नहीं है। दो लाख का इंश्योरेंस करा लो।”

मेहनत की गाढ़ी कमाई, पति ने अविलम्ब मना कर दिया। अब मायके से भी भाई का एक संदेशा आया-

“लीना तुमने मेरे बेटे को दुखी करके भेज दिया। पैसे का इतना घमंड? हम लोग से ही तुम्हारा मायका जिवित रहेगा। कल तुम्हारी माँ भी नहीं रहेगी तब—–।”

लीना को जैसे साँप सूँघ गया।

आखिर मेरा दोष क्या है? मैं शहर आ गयी, नौकरी करती हूँ, लेकिन अपनी गृहस्थी और अपने खर्च भी तो हैं। अपने मायके वालों के लिए पति से विद्रोह कैसे करती सोचती हुई रोती रही और यही सोचती रही कि- क्या सारे रिश्ते मतलबी हैं?

पुष्पा पाण्डेय

राँची,झारखंड।

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