मर्यादा या जीवन क्या है जरुरी? – सुमन श्रीवास्तव

आज पूरे दौरौली गाँव में सन्नाटा पसरा हुवा है और सन्नाटा भी इतना गहरा कि गायो के रम्हाने और कुत्तो के भौकने की आवाज गाँव के एक छोर् से दूसरी तरफ साफ सुनाई दे रही है|          कल तक जो गाँव वाले वीरेन्द्र जी के पीठ पीछे हँसते थे आज उनके जाने के बाद उनके आंसू नहीं थम रहे थे| शायद यही फर्क है गाँव और शहरो में |

गाँव में दुःख आज भी साझा होता है सुख में चाहे जितने बैर रहे हों| कई बार सही और गलत के बीच की विभाजन रेखा इतनी महीन होती है कि भावुक लोग फर्क नही कर पाते और समाज द्वारा निर्धारित मर्यादा का मान रख्नने के मानसिक दबाव में ऐसे निर्णय ले लेते है की वर्षो तक अपने पीछे बहुत सारे अनुतरित प्रश्न छोड़ जाते है| वीरेन्द्र जी का परिवार के साथ सामूहिक आत्महत्या का निर्णय भी ढेर सारे प्रश्न खड़े करता है |           

 

थोड़ी सी खेती के बलपर परिवार के लिए सभी ऐशो आराम जुटाने वाले सिर्फ दसवी पास मेहनतकश वीरेन्द्र जी का एक ही सपना सभी बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलाना विशेष रूप से बड़ी बिटिया प्रतिभा को लेकर उनके सपने बहुत ऊँचे थे | कभी कभी उनकी माँ और पत्नी कहते की आप तो सिर्फ बिटिया के बारे में ही सोचते है कभी दोनों छोटो बेटो के बारे में भी सोचो की उनको क्या बनाना है | उन दोनों की बातें सुनकर वो बड़े फक्र से कहते की बड़ा बच्चा पिता का सहारा बनता है फिर वो चाहे बेटा हो या बेटी क्या फर्क पड़ता है |

प्रतिभा अगर पढ़ लिखकर लायक बन गयी तो इन दोनों को वो ही संभाल लेगी | देखना इस साल उसकी मेहनत रंग लाएगी मेडिकल की तैयारी कर रही है अगर भगवान ने चाहा तो गाँव की पहली लड़की मेडिकल पढने जाएगी| प्रतिभा ने भी हर कदम पर पिता का मान बढ़ाया था और आज तक सभी परीक्षा में पूरे जिले में अव्वल आती रही थी | लेकिन  युवा मन को पढ़ पाना आसन नहीं होता अक्सर वो अपने में तूफ़ान के पहले की चुप्पी छिपाए रखते है | शायद प्रतिभा भी उम्र के उसी दौर से गुजर रही थी |

पहले पहल तो गाँव के कुछ लोगो ने प्रतिभा को कोचिंग जाने वाली बस में किसी लड़के से बाते करते देखा फिर उसी लड़के के साथ जब प्रतिभा गाँव से शहर जाने वाली बस में रोज दिखने लगी तो सौ अफवाहे उडी जो वीरेन्द्र जी के कानो तक भी पहुची लेकिन वीरेन्द्र जी ने इन सारी बातों को न सिर्फ सिरे से ख़ारिज किया बल्कि  ऐसी बाते करने वालो से उनकी काफी बहस भी हों गयी | 



दो दिन पहले ही उन्होंने ऐसे कुछ लोगो को गाँव के खलिहान के पास चेताया था और बड़े शान से कहा था की अगर इन अफवाहों में कुछ भी सच्चाई होगी तो वो किसी को अपना मुंह नही दिखायेंगे |  पर कहते है न की खुशियों को नजर लगते देर नहीं लगती | कल शाम से से ही प्रतिभा घर नही लौटी थी | किसी अनहोनी की आशंका से पूरा परिवार सहमा हुवा था लेकिन किसी को भी उन अफवाहों और प्रतिभा के दिल दिमाग में चलने वाले तूफ़ान का अंदाजा नही था |

 देर रात वीरेन्द्र जी के मोबाइल पे एक अनजानन नंबर से फ़ोन आया | कांपते  हाथो और सहमे दिल के साथ वीरेन्द्र जी ने फ़ोन उठया लेकिन उम्मीद के विपरीत फ़ोन पे प्रतिभा ही थी|          “ हेल्लो पापा प्रणाम ! मै प्रतिभा बोल रही हूँ|  मैंने अपने साथ पढने वाले विकास से कोर्ट मैरिज कर ली है | मेरे इस निर्णय को आप कभी स्वीकार नहीं करते क्योकि विकास दूसरी जाति का है | 

इसलिए मुझे आपसे छुपकर ये निर्णय लेना पड़ा | मै अब अपना भविष्य विकास के साथ ही देखती हूँ| अपना आशीर्वाद दीजिये “| इससे आगे न प्रतिभा बोल पाई न वीरेन्द्र जी कुछ सुन पए|                        तबसे आज सुबह तक वो किसी से कुछ नहीं बोले न ही प्रतिभा को ढूढने का प्रयास किया | दिन भर उनके घर से कोई भी बाहर नहीं निकला | न बच्चे स्कूल गए न ही वीरेन्द्र जी खेतो की ओर |
  शाम को उनके घर से रामायण पढने की आवाजे आ रही थी तब तक गाँव के लोगो को किसी भी अनहोनी का अंदाजा नही था | लेकिन इसके बीच वीरेन्द्र जी एक खौफनाक निर्णय ले चुके थे|  खुद का जीवन समाप्त कर पत्नी के कंधो पर बच्चो और गृहस्थी का भार सौपने का | शायद समाज के तानो और अपना मान खोकर जीने का साहस नही  रह गया था

उनमे इस घटना के बाद| लेकिन पत्नी और बच्चे भी  स्वेच्छा से ही उनके निर्णय में शामिल हों गये थे  (जैसा की पुलिस ने सुसाइड नोट को देखकर अंदाजा लगाया था) , शायद गाँव समाज द्वारा उठती उंगलियों और प्रश्नवाचक आँखों का सामना करना उनके लिए भी बड़ी चुनौती थी| कीटनाशक से  भरी शीशी पीकर  सब एक  दुसरे का हाथ पकडे  एक  साथ म्रत्यु को गले लगा चुके थे | सुबह के उजाले  के साथ ही चार जिन्दगिया मौत के अँधेरे में समां गयी|    



जाने क्यों वीरेन्द्र जी अपनी  बूढी अंधी माँ को इस निर्णय में शामिल नही कर पाए थे |  शायद उनके सो जाने के बाद ये फैसला लिया गया था|  सुबह जब वो बार बच्चो का नाम लेकर पुकार रही थी और कोई बदले में कोई उत्तर नही दे रहा था|  तब गाँव वालो ने  पडोसी के घर से जब उनके घर में सीढिय लगाकर उतरे तब वहा का दृश्य देख सब जड़ हो गये |                                   घटना स्थल पे किसी के जोरजबर्दस्ती या प्रतिरोध का कोई निशान नही मिला| सुसाइड  नोट में सिर्फ वीरेन्द्र जी का नाम था जिससे ये लगता था की घर के बाकि सदस्य द्वारा बाद में ये फैसला लिया था |           

 पता नही कौन दोषी था “ एक बेटी जिसके परिवार की मर्यादा के  विरुद्ध जीवनसाथी चुना  और अपनी जिम्मेदारियों से इतर सिर्फ अपने सुख के बारे में सोचा, या फिर एक पिता जिसने सामाजिक मर्यादा के नाम पर मिलने वाले तानो से बचने के लिए पूरे परिवार को मौत का विकल्प  दे दिया  और अपनी असहाय माँ को जीवन भर के लिए बेसहारा कर गया|  

प्रश्न आज भी अनुतरित है ?

द्वारा- सुमन श्रीवास्तव

गांधीनगर गुजरात

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