लकीर के फ़कीर – कल्पना मिश्रा

जिसका डर था,वही हुआ। दादी सास को आये पाँच दिन ही हुए थे और उसके पीरियड हो गया।

 

“अब क्या होगा?” उसे उलझन सी होने लगी। दादी पुराने विचारों की, बेहद छूत विचार मानने वाली महिला थीं। किसी को छूना नही… फ्रिज ,किचन का कोई सामान नही छूना, तीसरे दिन सिर धोकर शुद्ध होना,,,,”हे भगवान!! कैसे करेगी ये सब?” 

 

“मोनू..ज़रा मेरी शाल दे दो” तभी दादी की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी। 

“ये क्या, दादी उससे अपनी शाल छूने को कह रही हैं,,,वो भी इन दिनों?” आश्चर्य से उसने दादी को देखा।

“क्या बात है बिटिया, मेरी तरफ ऐसे क्यों देख रही हो?” वो मुस्कुराईं।

 

” वो,,वो दादी,पहले तो आप सब चीज़ों को छूने के लिए मना करती थीं ?” वह धीरे से बुदबुदाई ।

 

“अच्छा तो ये बात है? वह ज़ोर से हँस पड़ीं ” ये तो पहले की बात है,,, अब हम बदल गये हैं।”



 

“पर दादी ऐसे अचानक कैसे,,,,?” 

“हां,,सही कह रही हो। मैं भी अपने बुजुर्गों की बात बगैर सोचे समझे मानती रही, वही मेरी भी आदत पड़ गई। लेकिन जब मनन किया तो समझ में आया कि पहले घरों में नल नही होते थे। मर्द कुयें से पानी भरके लाते,तो घर की औरतें उनके डर से ज़्यादा पानी ख़र्च भी नहीं कर सकती थीं और तब तो साबुन तक नही होते थे ,इसीलिये तब की सासें बहुत-बहुत दिनों तक अपनी बहू बेटियों को सिर नही धोने देती थीं।और तब इसी माहवारी के बहाने औरतें सिर धो लेतीं तो अच्छे से शरीर की साफ सफाई हो जाती थी।

इसी तरह पैड नही होते थे बल्कि पुराने कपड़े इस्तेमाल करे जाते थे वो भी कई बार धो-धोकर। रजस्वला स्त्री बार-बार हाथ भी नही धो पाती थी तो जो महिलाएं इन दिनों चुपके से गंदे हाथों से अचार निकालती तो ख़राब हो जाता था फिर सब समझते कि “ज़रूर रजस्वला स्त्री की छाया पड़ी होगी।” इसी तरह पहले काम ज़्यादा थे पर सुविधाएं नही थी और गंदगी ज्यादा थी तो ऐसे नियम बनाये गये , डर भी दिखाया गया ,ताकि लोग उसका पालन करें और इसी बहाने महिलाओं को असहनीय दर्द एवं हाड़तोड़ मेहनत से थोड़ा सा आराम भी मिले। लेकिन आज तो कितनी सुविधा है,घर-घर हाथ धोने के लिए नल हैं। साफ-सफाई के तमाम उपकरण हैं। यहां तक कि सरकार भी फ्री सेनेटरी पैड बंटवा रही है, विज्ञापन के जरिए जनता को जागरूक कर रही है लेकिन कुछ पढ़े-लिखे लोग बिना हकीकत समझे अब भी लकीर के फकीर बने रहते हैं..है कि नही? ” वह फिर से हँस दीं।

 

” सच में दादी कितनी बदल गयी हैं..” दादी के विचार सुनकर उसने राहत की साँस ली और “थैंक्यू माई इंटेलिजेंट एंड मॉडर्न दादी..” कहते हुए दादी के गले लग गई।

 

 

कल्पना मिश्रा

कानपुर

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