मैं चुपचाप कमरे की छत को एकटक देखे जा रही थी और कुछ कर भी तो नहीं सकती ।
याद आ रहे थे वो पल जब मैंने भावुक होकर रिश्ते निभाए और बदले में पाया विश्वासघात, सिर्फ विश्वासघात।
क्या कोई अपना इतना निर्मम हो सकता है??
पर ये कैसा प्रश्न ?? इतनी निर्ममता के कारण ही तो मैं आज यहां अस्पताल के वार्ड में अकेली पड़ी ईश्वर से मौत की भीख मांग रही हूं और ईश्वर भी तो निर्मम ही है ,वह भी मेरी एक नहीं सुनी रहा। मूर्छित करके ही रह गया, क्या मुझे हार्ट अटैक न पड़ सकता था?
कैसे सह गई मैं वो सब?
मम्मी पापा ने बड़ी खोजबीन के बाद मेरे लिए हीरे सा लड़का ढ़ूंढा था, नाम भी तो कैसा था कि सुनते ही प्यार आ जाए- मोहित।
मोहित में ईश्वर ने हर वो गुण दिया था जिससे कोई भी मोहित हो जाए ।
रुप, रंग ,सौम्यता और बुद्धिमता , किसी की भी तो कमी न थी उसमें, मुस्कान ऐसी कि सीधे दिल में उतर जाए ।
नज़रों से ही प्यार की बरसात सी कर देता मेरा मोहित। वह हर रिश्ते को दिल से निभाता। यहां तक कि वह मुझसे जुड़े हर रिश्ते को न केवल अपना मानता बल्कि पूरी शिद्दत से निभाता ।
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शुरु शुरु में मुझे लगता कि औपचारिकता वश करता होगा,पर नहीं ये उसके संस्कार थे, जो उसके माता-पिता ने उसे दिए थे।
शादी के दिन से अगले पांच साल तक कभी लगा ही नहीं कि ईश्वर ने मेरे लिए कुछ ऐसा भी लिखा होगा कि मेरी जिंदगी तड़प की एक मार्मिक कहानी बनकर रह जाएगी।
पांच सालों तक वह मुझे पलकों पर बिठाए रखा।
घर में जब कभी नन्हे-मुन्ने की बात होती तो वह बात संभाल लेता और कहता अभी हमें जिंदगी जीनी है बच्चे तो होते रहेंगे, मां पापा।
उसने कभी ये जाहिर न होने दिया कि मुझमें कुछ कमी है, कि मुझे डॉक्टर ने अभी कुछ समय और इंतजार के लिए कहा है।
वो दिन आज भी आंखों के सामने तैर रहा है जब खुशी के अतिरेक में उसने मुझे बांहों में भींच लिया और यह तक भूल गया कि हम डॉक्टर के क्लिनिक में हैं।
जैसे ही डॉक्टर ने कहा कि अब आप मां बनने के लिए तैयार हैं लेकिन आपको विशेष सावधानियां बरतनी होंगी , अन्यथा…।
मैं कुछ कहती उससे पहले ही मोहित बोला, हम हर तरह की सावधानी बरत लेंगे डॉक्टर साहिबा आप बस बता दीजिए करना क्या है??
डॉक्टर ने बहुत सी बातों के साथ यह भी बताया कि मुझे अब फुल रेस्ट करना होगा और खुश रहना होगा।
मोहित बोला इसमें कोई समस्या ही नहीं है ,ये सब हो जाएगा और हम घर आ गए।
अब बात यह थी कि घर से दूर इस शहर में हमारा अपना कोई न था , मेरी मां और सासू मां दोनों ही बढ़ती उम्र और बीमारियों के चलते हमारी वैसी मदद नहीं कर सकतीं थीं जिसकी दरकार थी, तो अब किया क्या जाए ?
क्योंकि पूरे नौ महीने तो मोहित भी छुट्टी पर नहीं रह सकता था ।
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अब घर पर मम्मी- पापा और सास- ससुर से विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि रीना जो कि वर्क फ्रॉम होम करती है ,उसे बुला लिया जाए जिससे किसी तरह की परेशानी न हो।
इस तरह उसकी नौकरी भी चलती रहेगी और वो मेरी देखभाल भी अच्छे से करती रहेगी।
रीना भी खुशी खुशी एक बार में ही इसके लिए तैयार हो गई ।
हालांकि मुझे हैरानी हुई , क्योंकि वह बचपन से ही स्वार्थी रही है तो वह क्यों कर मेरी सेवा करने को यूं बिना मान मनौव्वल के तैयार हो गई??
फिर सोचा कि अब वो बड़ी हो गई है और अपनी जिम्मेदारियां समझने लगी होगी, आखिर अब वह भी तो शादी कर घर बसाएगी,तो समझदार तो बनना ही पड़ेगा।
वैसे भी मुझे तो कुछ सोचना ही नहीं था जैसा कि डॉक्टर ने हिदायत दी थी ।
यह मेरे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सही नहीं था।
इस तरह से एक मनहूस दिन रीना मेरे घर आ गई।
मैं बिस्तर पर रहती और मोहित जितने समय घर में रहता मेरे आस-पास ही रहता और कभी आंखों से तो कभी प्रेमिल स्पर्श से मुझे प्यार जताता रहता।
पांच सालों तक हम कभी भी एक दूसरे से दूर न रहे थे,हर रात वो मेरी और मैं उसकी जरूरत थे। इन दिनों हमारे प्यार की निशानी को सही सलामत दुनिया में लाने के लिए हम बस स्पर्श से ही एक-दूसरे को खुश करते।
कभी कभी मुझे लगता कि रीना के रहते यह ठीक नहीं , वह कुंवारी लड़की है,उसे न जाने कैसा लगता होगा?
पर मोहित मेरी ऐसी सब बातों को हंसी में उड़ा देते।
एक दिन मैंने ही बहिन प्रेम में आकर मोहित से कहा, मोहित देखो नए शहर में मेरी सेवा करते करते रीना ऊब जाती होगी ,इसे कभी कभार यहां वहां घुमा लाया करो, इसे भी तो घर की याद आती होगी?
ये सच है कि बचपन से ही हम दोनों में वह लगाव नहीं था जो कि बहनों में हुआ करता है, एक अलग तरह की प्रतियोगिता सी हम में रहती थी। हमारे लड़ाई झगड़े से मम्मी भी परेशान रहतीं और कहतीं कि कहीं से नहीं लगता कि तुम दोनों सगी बहनें हो ,हर वक्त बिल्लियों की तरह लड़ती झगड़ती रहती हो, जब शादी होकर दूर चली जाओगी तब तुम्हें याद आएगी एक दूसरे की और वह तुनककर कहती,याद?? और इसकी कभी नहीं, जिस दिन ये यहां से जाएगी तब ही मुझे चैन पड़ेगा।
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इस तरह हम साथ रहकर हमेशा लड़ती ही रही थीं।
लेकिन अब वह मेरे घर पर थी तो बड़ी होने के नाते उसका ख्याल रखना मेरी नैतिक जिम्मेदारी थी।
मोहित ने हमेशा की तरह मेरी बात मानते हुए कहा कि हां ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था, आगे से ध्यान रखूंगा।
इस तरह अब हर रविवार शाम को और कभी कभी बीच में भी ये दोनों घूमने जाने लगे।
शुरु में तो सब कुछ सामान्य था पर धीरे धीरे बाहर रहने का समय बढ़ने लगा। मुझे कभी कभी शक होता पर फिर मैं अपने आप को समझा लेती कि यह सब मुझे यूं ही लगता है , मोहित ऐसा कभी नहीं कर सकता ।
ये सच है कि मुझे रीना का एतबार कभी भी नहीं था पर मोहित, वह धोखा दे सकता है ऐसा सपने में भी मैंने नहीं सोचा था।
मोहित हर रात मुझे थपकी देकर सुलाता था ,ये नियमित था और मैं भी एक बच्चे की तरह उसकी बाहों में कब गहरी नींद में सो जाती पता ही नहीं चलता ।
इस तरह धीरे धीरे संयम के साथ लगभग आठ महीने बीत चुके थे बस एक महीने की बात और थी और फिर हमारा नन्हा मुन्ना सकुशल हमारे हाथों में होगा। कभी कभी ख्यालों में मैं उसे हाथों पर रखकर झुला रही होती।
एक रात अचानक बैचैनी में मेरी आंख खुली तो मैंने मोहित को हिलाकर उठाना चाहा,पर मेरे हाथ के दायरे में मोहित नहीं था।
मैंने लैंप जलाकर देखा तो मोहित बिस्तर पर भी नहीं था । रात के दो बज रहे थे। मोहित टॉयलेट में होगा यह सोचकर मैंने कुछ मिनट इंतजार किया पर मेरी बैचेनी बढ़ रही थी , दिमाग में नकारात्मक विचार तेजी से धमा-चौकड़ी करने लगे ।
मैं धीरे से बिस्तर से उठी और कमरे से बाहर आई तो ड्राइंग रूम का नजारा देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं।
ये क्या है ?
मोहित की बाहों में रीना ??
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और दोनों प्रेमालाप में इतने लीन कि मेरी उपस्थिति का आभास तक उन्हें नहीं हुआ।
मैं चीखना चाहती थी पर आवाज घुटकर रह गई।
और अचानक आए चक्कर के कारण में शायद वहीं गिर पड़ी और आंखें खुली तो स्वयं को यहां अस्पताल के बिस्तर में पाया।
मुझे अभी नहीं पता कि मेरे बच्चे का क्या हुआ??
आठ महीने का बच्चा,बच भी सकता है और नहीं भी । बाहर सब मेरे होश में आने का इंतजार कर रहे हैं और यहां मैं होश में आकर भी आंख बन्द कर बेहोशी में ही रहना चाहती हूं।
मुझे किसी की भी शक्ल देखने की इच्छा नहीं है ।
दिल से बस यही बद्दुआ निकल रही है कि ,मेरी आत्मा को तकलीफ़ देकर तू कभी सुखी न रह सकती है, रीना।
तुम दोनों ने मेरे विश्वास का गला घोंटकर ठीक नहीं किया। तुमने मेरा विश्वास ही नहीं तोड़ा बल्कि रिश्तों की मर्यादा भी ताक पर रख दी है।
बहिन होकर बहिन का घर उजाड़ने चली है तू?
अब मां- पापा से क्या कहूंगी मैं, कि आपकी लाड़ली मेरी खुशियां निगल गई?
रह रहकर उस दिन को कोस रही हूं जिस दिन इसे बुलाने के लिए मैंने मोहित से कहा था।
क्या शारीरिक जरूरतें खून के, आत्मा के रिश्तों को भी भूल जाती है?
प्रश्न तो बहुत हैं ,पर उत्तर नहीं हैं।
अब यहां से जाकर मुझे क्या करना है? मैं नहीं जानती, मुझे फिर से मूर्छा आने लगी है।
पूनम सारस्वत
अलीगढ़।
#मेरी आत्मा को तकलीफ देकर तू कभी सूखी नहीं रह सकती है