घर का चिराग-बेटियाँ – प्राची लेखिका : short story with moral

short story with moral : रश्मि तीसरी बार गर्भ से थी। पहले से ही उसकी दो प्यारी- प्यारी बेटियाँ पलक और पंखुरी थी। वह तीसरा बच्चा पैदा करना नहीं चाह रही थी। लेकिन उसकी सास की पोता देखने की लालसा ने उस पर दबाव बना रखा था। उसका पति भी तो चाहता था कि उसे भी पुत्र रत्न प्राप्त हो।

सुबह से तबीयत सही नहीं थी। उसका तीसरा महीना पूरा होने वाला था। उसकी सास और पति जबरजस्ती उसे अस्पताल ले जाना चाह रहे थे। रश्मि समझ रही थी सारा माजरा।

उसको समझ में आ रहा था कि यह लोग उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की लिंग की जांच कराना चाहते हैं। अगर उसके गर्भ में बेटा होगा तो ये लोग उसकी खूब कद्र करेंगे।

खुदा ना खास्ता अगर इस बार भी लड़की हुई तो ये सब मिलकर जबरदस्ती उसका गर्भपात करा देंगे और उसकी हालत और भी दयनीय हो जाएगी।

सास दबाव बना रही थी जल्दी से तैयार होने का। रश्मि जूझ रही थी परिस्थितियों से। उसने अपनी सास से कड़ककर कहा भी था,”मम्मी जी आप खुद एक औरत होकर इतनी नीच सोच कैसे रख सकती हैं।

आप स्वयं की तो एक लड़की ही रही होंगी ना।”

उसकी सास तड़क कर बोली,”चुप रह। मेरे बेटे की सारी कमाई इन लड़कियों में ही लग जाएगी। कल को इनके ब्याह शादी भी करने पड़ेंगे।कितना दान दहेज देना पड़ेगा। कभी सोचा है तूने।”

रश्मि की सास और गरज कर कहती हैं,”लड़कियों को कितना रखाना पड़ता है। आजकल समय कितना खराब है। लड़कियों की वजह से कुल में #दाग बहुत जल्दी लग जाता है।”

उसका पति भी अपनी माँ की हां मैं हाथ मिलाते हुए बोला,”मैं कब तक दूसरों के दरवाजे पर गिड़-गिड़ करता फिरुंगा। एक बेटा होगा तो कोई मेरे सामने भी हाथ जोड़ेगा।

बेटी के बाप को कितने हाथ जोड़ने पड़ते हैं बेटियों के हाथ पीले करने के लिए”

रश्मि की कोई भी दलील काम नहीं आई। उसकी सास और पति जबरदस्ती उसे अस्पताल चेकअप के लिए ले जाते हैं। जांच होती है। गर्भ में पल रहा शिशु लड़का होता है।

लड़के की खबर सुनकर उसकी सास और पति फूले न समाते हैं। अब तो रश्मि की रात दिन सेवा की जाती है। क्योंकि उसकी सास पोते का मुंह देखने वाली थी।

डिलीवरी का वक्त नजदीक आ जाता है। पलक और पंखुड़ी समझदार बच्चियांँ थी। वह अपनी मम्मी को बिल्कुल भी परेशान नहीं करती थी।

प्रसव पीड़ा सहने के बाद रश्मि को दर्द से निजात मिल जाती हैं। पोते का मुंह देख कर सास फूली नहीं समा रही है।

वक्त आगे बढ़ता गया। पलक और पंखुड़ी पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थी। बड़े होकर पलक डॉक्टर और पंखुड़ी एक अधिवक्ता बन जाती है ।

दादी के लाड प्यार में उनका भाई समर ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाता। उसकी रोज शिकायतें आती। लेकिन उसकी दादी उसकी हिमायत लेने से कभी न चूकती।

पलक और पंखुड़ी के विवाह के लिए रिश्तो की कतार लगी रहती। हर कोई उन्हें अपने घर की बहू बनाने के लिए लालायित रहता। पलक और पंखुड़ी के विवाह में दहेज का मुद्दा भी हावी नहीं हुआ। अपनी सामर्थ्य के हिसाब से उनके पिता ने राजी खुशी धन भी लगाया। पलक और पंखुड़ी दोनों को अच्छे घर वर मिले। दोनों ही बेटियां खूव खुश थी।

बेटियों के विवाह तो हो गए पर समर भी धीरे-धीरे विवाह योग्य हो गया। दादी की पोत बहू देखने की बड़ी इच्छा थी। सबके आगे मिन्नते करती। पर कोई भी लड़की देने को तैयार नहीं था।

उसके पति दिवाकर सबके सामने हाथ जोड़ते कि कोई अपनी लड़की का विवाह उनके बेटे समर से कर दे। पर कोई भी बेटी वाला तैयार नहीं होता।

समर की संगति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। घर में सभी को उसके विवाह की बहुत चिंता थी। दादी सोचती एक बार शादी हो जाएगी तो सब सुधर जाएगा। यह उम्र होती ही है बिगड़ने की।

जब कहीं से रिश्ते की बात नहीं बनी तो उसकी सास और पति सलाह मशवरा करते हैं। उसकी सास अपने बेटे से कहती हैं,”बेटा कुछ जुगाड़ कर। अगर कहीं पैसे भी खर्च करने पड़े, तो खर्च कर देंगे। पहले लड़कियों की शादी में दहेज ना देना पड़ता था। अब बहू लाने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च कर देंगे। सारा ब्याह हम खुद ही निपटा लेंगे। बस कोई लड़की दे दें।”

दिवाकर कहते हैं अगर हाथ भी जोड़ने पड़े, तो जोड़ देंगे। घर तो बस जाएगा बेटे का।

रश्मि मां बेटे के इस वार्तालाप को सुन दंग रह जाती है। समय कितना परिवर्तनशील है।

जिन बेटियों के पैदा होने पर उसकी सास सवाल खड़ा करती थी। आज वही सास किसी की बेटी को बहु बनाने के लिए कितनी लालायित हैं। और रही# दाग की तो बेटियाँ ही कुल की इज्जत पर बट्टा नहीं लगाती, बेटे भी खानदान की इज्जत को मिट्टी में मिला देते हैं। आज इंसान अगर बेटी पैदा होने पर शोक संतप्त होगा तो कल बहु ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगी।

बेटे ही घर का चिराग नहीं होते, दो कुलों को रोशन करती हैं बेटियाँ।

#दाग

स्वरचित मौलिक

प्राची लेखिका

बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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