दहशत – डाॅ संजु झा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : वकील नीरा अपने दफ्तर में महिलाओं की समस्याओं का हल ढूँढ़ते हुए सोचती है-“औरत का जीवन आज भी समस्याओं से  घिरा हुआ  है।कभी घरेलू हिंसा,कभी आर्थिक समस्याएँ,कभी बलात्कार की समस्या  तथा अनेकों समस्याओं के चक्रव्यूह में फँसी रहती हैं।

उसकी इज्जत काँच के समान होती है।उसपर एक छोटा-सा भी दाग लग जाएँ,तो हमारा पुरुष-प्रधान समाज उसे जीने नहीं देता है।आधुनिक नारी भले ही कितनी भी पढ़-लिख क्यों न गई हो,परन्तु उसके प्रति समाज की रूढ़िवादी सोच नहीं बदली है।”

उसी समय नीरा की सोच पर विराम लगाते हुए उसकी सहायिका कहती है-“मैडम!एक दम्पत्ति अपनी तेरह-चौदह वर्षीया बेटी के साथ आपसे मिलना चाहते हैं।”

नीरा -“ठीक है!आधे घंटे के बाद उनको कमरे में भेज देना।”

तबतक नीरा कुछ आवश्यक फाइलें निपटाती है।

आधे घंटे बाद एक प्रौढ़ दम्पत्ति अपनी चौदह वर्षीया बेटी के साथ कमरे में प्रवेश करते हैं।नीरा को नमस्ते कर अपना परिचय देते हैं तथा बेटी का नाम सीमा बताते हैं।तीनों के चेहरे सूखे पत्तों की भाँति कुभ्लाएँ हुए हैं।

लड़की सीमा की आँखों में दहशत  स्पष्ट दिखाई दे रही है।उसकी हिरणी-सी आँखों में सपने मानो गुम से हो गए हों।उसके माता-पिता कलेजे पर पत्थर रखकर अपनी बेटी के साथ हुए दुष्कर्म को बताते हुए कहते हैं कि गाँव के ही तीन गुंडों ने उनकी बेटी के साथ बलात्कार किए हैं।उन्होंने उनकी बेटी सीमा के चरित्र पर जिन्दगी भर का दाग लगा दिया है।उन वहशियों को कड़ी सजा दिलवानी है।

इस बीच सीमा बिल्कुल गुमसुम  और डरी-सहमी सी बैठी हुई है।नीरा उसपर नजर डालते हुए उसके माता-पिता से कहती है-”  मुझे सबसे पहले अकेले में सीमा से बातें करनी है।”

यह सुनकर सीमा के माता-पिता कमरे से निकल जाते हैं।

नीरा कहती है -” सीमा!अपने साथ हुए  दुष्कर्म के बारे में मुझे सबकुछ स्पष्ट रुप से बताओ।” 

नीरा की बातों को सुनकर भी मानो सीमा कुछ नहीं सुनती है,बस उसकी आँखों से अनवरत आँसू बह रहे थे।फिर  वह एकाएक उठकर खड़ी हो जाती है और कहती है-“मुझे किसी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं करनी है।मुझे अकेली छोड़ दो।मैं मर जाऊँगी।”

इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल जाती है।उसके माता-पिता बेबस नजरों से नीरा की ओर देखते हैं।नीरा उनकी मनःस्थिति को भलीभाँति महसूस करती है और उन्हें सीमा को घर ले जाने की इजाजत देती है।

उनलोगों के जाने के बाद  नीरा ने  अपनी भींगी पलकों को मूँदकर कुर्सी की पुश्त पर सर टिका दिया।मूँदी पलकों में मानो एक बार फिर से उसका ही अतीत आकर सामने खड़ा हो गया।उसके अधर मौन थे,पर दिल में शब्दों की अनवरत आँधियाँ चल रही थीं।

जब नियति का कुठाराघात आत्मा को खंडित कर पीड़ा देता है,तो इंसान किंकर्तव्यविमढ़  हो उठता है।कुछ ही क्षणों उसका गुजरा हुआ काला अतीत उसकी आँखों के सामने नाचने लगा।उसकी आँखों में दर्द छलक उठा।उसकी सुप्त कटू यादें उसे कुरेदने लगीं।

गोरा रंग,काले लम्बे बाल,छरहरी कायावाली नीरा की खंजन-सी आँखों में  भविष्य के बड़े-बड़े सपने थे।उसके नयनों में उज्ज्वल भविष्य के इन्द्रधनुषी रंग-बिरंगे ख़्वाब नित नए-नए आकार ले रहे थे।वह माता-पिता के साथ गाँव में ही बारहवीं की  पढ़ाई कर रही थी।

पढ़ाई में वह कुशाग्र  थी और  जीवन के प्रति बेहद आशावान  और ऊर्जा से भरपूर!माता-पिता की वह बेहद लाडली थी।एक बड़ा भाई पुणे शहर में नौकरी करता था।उस मनहूस दिन नीरा की बारहवीं की परीक्षा खत्म हो चुकी थी।

उसके बाद  नीरा ने अपनी दो सहेलियों के साथ सिनेमा देखने का प्रोग्राम बनाया।उसके माता-पिता ने भी उन्हें राहत महसूस कराने के ख्याल से सिनेमा जाने की इजाजत दे दी।

सिनेमा देखकर लौटते हुए रात के आठ बज चुके थे।सभी लड़कियों ने फोन से अपने घर लौटने की सूचना दे दी थी।तीनों सहेलियों ने घर लौटने के लिए टैक्सी ले ली।उनके नौ बजे तक घर पहुँचने की उम्मीद थी।

तीनों सहेलियाँ अपने मनपसन्द अभिनेता शाहरुख की फिल्म देखकर लौट रहीं थीं।सभी की आँखों में प्यार के बादशाह शाहरुख खान की छवि तैर रही थी।सभी अपने-अपने भावी राजकुमार के सपनों पर खुलकर हँसी-मजाक कर रहीं थीं।बातों-बातों में  कब दोनों सहेलियों का घर आ गया,पता ही नहीं चला!

दोनों सहेलियाँ उतर गईं।नीरा का घर बीस-पच्चीस मिनट बाद आनेवाला था।अभी तक तो नीरा का ध्यान टैक्सी ड्राइवर पर नहीं गया था।ध्यान से देखने पर वह उसे डरावना लगने लगा।गाँवों में तो वैसे भी रात के आठ बजे सड़कें सुनसान हो जाती हैं ।

टैक्सी  ड्राइवर  नीरा को बार-बार शीशे से घूर रहा था।अब नीरा को डर लगने लगा।वह डरी-सहमी सी सीट के कोने में सिमटकर बैठ गई।अचानक  से सुनसान रास्ते पर ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी।नीरा घबड़ा उठी।उसने हिम्मतकर पूछा -” भैया!बीच सड़क पर गाड़ी क्यों रोक दी?”

ड्राइवर ने कुटिलता से जबाव देते हुए कहा-” देख रहा हूँ!लगता है कि  गाड़ी में कुछ खराबी आ गई है।”

एक अकेली खुबसूरत जवान लड़की को देखकर ड्राइवर के मन में पाप आ चुका था।उन बातों से बेखबर  नीरा गाड़ी से उतरकर चारों ओर देखने लगी।तभी अचानक से दो बलिष्ठ भुजाएं अपनी बाँहों की जंजीरों में जकड़े हुए  सड़क के पास झाड़ियों में घसीटकर ले गई।

नीरा उस दैत्यरुपी राक्षस  से छूटने के लिए भरपूर संघर्ष करती है,परन्तु शेर के जबड़े से मेमना भला कभी बच पाया है!वह बेबस-सी चिल्लाती रही,परन्तु उस सुनसान झाड़ियों में उसकी चीख गुम होकर रह गई।

उस पापी ने कोमल सुकुमार नीरा के शरीर के साथ उसके मन को भी पूरी तरह रौंद डाला था।उस पापी दुष्कर्मी ड्राइवर ने भय दिखाने हेतु नीरा पर थप्पड़ों की भी बारिश कर दी तथा किसी से भी इस बात का जिक्र करने से मना किया।

रात के अंधेरे में लुटी-पीटी नीरा घर पहुँची।उसे इस हालत में देखकर उसके माता-पिता किसी अनहोनी की आशंका से काँप उठे।बेटी से घटना की आपबीती सुनकर दहल उठे।

आज जिस तरह सीमा की आँखों से सुनहरे सपने गायब थे,उसी प्रकार उस समय उसकी भी हालत हो गई थी।उसे भी सीमा की तरह ही आत्महत्या करने का विचार बार-बार मन में आ रहा था।

नीरा के पिता तो दरिन्दे ड्राइवर के खिलाफ  पुलिस में जाने को तत्पर हो उठे,परन्तु उसकी माँ ने उन्हें थाने जाने से मना करते हुए कहा-“थाने जाने से समाज नीरा के ही दामन पर दाग लगाऐगा।

हमारे समाज की यही तो विडम्बना है कि बलात्कार के दोषी निर्भीक होकर  घूमते रहते हैं और पीड़िता की कोई गल्ती नहीं होने पर भी उसे ही मुँह छिपाना पड़ता है।बलात्कार की घटनाएँ तो दरिन्दे के लिए मात्र जिस्मानी खेल होता है,परन्तु पीड़िता की तो पूरी जिन्दगी दागदार हो जाती है।

स्त्रीरुपी सफेद वस्त्र पर दाग लगाना कितना आसान है,परन्तु उसके निशान को मिटाना काफी कठिन!कोई नारी कैसे साबित कर सकती है कि  बलात्कार में उसका कोई दोष नहीं है।वास्तव में उसके दाग तो वास्तव में समाज  के दामन पर लगे दाग हैं!पीड़िता तो बिल्कुल पवित्र  रहती है।हम थाने जाकर अपनी बेटी को और प्रताड़ना का शिकार नहीं बनाऐंगे,वरन् उसका  उज्ज्वल भविष्य बनाने का प्रयास करेंगे।”

इस घटना की खबर सुनकर नीरा का भाई माता-पिता और नीरा को लेकर पुणे आ गया।वक्त बहुत बड़ा मलहम है।उस घटना को भूलने के लिए  नीरा ने खुद को वकालत की पढ़ाई में झोंक दी।पढ़ाई पूरी होने पर अपने शहर में आकर महिलाओं को न्याय दिलाने में समर्पित हो गई। 

नीरा के  रीतते -रीतते जख्म अब भरने लगे थे।सालों में सहेजी व्यथा की आँच क्रमशः धीमी हो चली थी।पुराने जख्मों पर धूल भरी चादर पड़ चुकी थी,परन्तु आज सीमा की कहानी सुनकर मानो उसके दुष्कर्म के जख्म फिर से हरे हो उठे।

उसकी आँखों से आँसू बरसने लगें। उसे महसूस  होता है कि अगर उस समय उसके माता-पिता ने उस बलात्कारी ड्राइवर को सजा दिलवाई होती ,तो हो सकता है उससे सीख लेकर  समाज में कम-से-कम  एक बलात्कारी तो कम होता!

नीरा बार-बार ख्यालों में खुद को सीमा की जगह   महसूस करती है।उसने खुद से प्रण किया कि सीमा के बलात्कारियों को हर हाल में सजा दिलवानी ही होगी।सीमा के मन से बलात्कार के दाग को मिटाना ही होगा। नीरा अगले दिन  दफ्तर जाने से पहले सीमा को न्याय दिलाने हेतु उसके घर पहुँच गई। 

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

#दाग

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