Top 10 moral stories in hindi

 महादान : Short Moral Stories in Hindi

रामदीन अपने पिता के शव के पास खड़ा जोर-जोर से रो रो कर कह रहा था ,”मैं तो अपने पिता की अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर पाया। दिन-रात मजदूरी की, पसीना बहाया पर गाय नहीं खरीद सका पिता के हाथों दान नहीं करा सका। हे भगवान , मेरे पिता को स्वर्ग में स्थान देना । मैं जब भी पैसे इकट्ठे हो गए पिता के नाम से गाय दान कर दूंगा।”

डॉक्टर कमल जो यह सब सुन रहे थे उन्होंने कहा,” रामदीन मैं बिना पैसों के गाय दान से भी बड़ा दान करवा सकता हूं जो तुम्हारे पिता को सीधा स्वर्ग में स्थान दिलाएगा ।”

“डॉक्टर साहब मुझे तो पंडित जी ने बिना पैसों का ऐसा कोई दान नहीं बताया ।”रामदीन ने थोड़ी हैरानी से कहा ।

“यह पंडित जी नहीं बताते मैं बताता हूं। मैं दस दिन से आपके पिताजी का इलाज कर रहा था। मैंने देखा है इनकी आंखें बिल्कुल ठीक है ।अगर अब इनकी मृत्यु के बाद तुम इनकी आंखें पीजीआई मेडिकल को दान कर दो ।हमारे पास आंखें लगवाने वालों की लंबी वेटिंग लिस्ट, यह आंखें दो लोगों को जो अंधे हैं लगा दी जाएंगी। उनकी दुनिया रोशनी से जगमग उठेगी ।सारी उम्र वो आपके पिताजी को दुआएं देंगे ।गाय दान तो दान है आंखों का दान महादान है। शरीर के साथ जलाने से अच्छा है इन्हें दान कर दो “।डॉक्टर कमल ने अपनी बात रामदीन को समझाइए ।जिसे रामदीन के परिवार के सभी सदस्य ध्यान से सुन रहे थे।

रामदीन का छोटा भाई कमलू तुरंत बोला,” डॉक्टर साहब बिल्कुल ठीक कह रहे हैं भाई हम यह महादान करेंगे।” डॉ कमल के साथ सभी की आंखों में चमक थी यह सोच कर कि दो लोगों के जीवन में चमक आने वाली है।

डॉ अंजना गर्ग

कान देना ज़रा : Moral stories in hindi


शशि सुबह की चाय पीने बैठी थी,एक सिप लिया दूसरे के लिए कप का कान पकड़ने ही वाली थी कि मोबाइल बज उठा।
उठाया ,उधर से सहेली वीणा थी।हैरान – परेशान सी,पति की कारस्तानियां बताने लगी। लव मैरेज किया था दोनों ने।
मैंने कहा,”अरे!अभी तो कुछ ही दिन हुए तुम्हारे विवाह को । कुछ समय दो एक- दूसरे को ;पसंद नापसंद को समझो।ये क्या लड़ने बैठ गई और दुखी क्यों होती हो?कभी चुप लगा लो तो देखो पतिदेव ढूंढते- पूछते नज़र आयेंगे तुम्हें।”उसे बात जंच गई , ख़ुश हो घर लौटी।
मेरी चाय पर नज़र गई, ठंडी हो गई थी।बेसिन में गिरा कर, दोपहर का लंच बनाने की सोच ही रही थी कि सहेली रागिनी आ धमकी उतरा चेहरा लिए।काम एक तरफ़ कर रागिनी को बैठाया। कंधे पर हाथ रखते ही वह फफक कर रो पड़ी।
पता चला गर्भ न ठहरने के कारण सास,नन्द ताने
मारती रहती हैं।पति उसे प्यार करते हैं,पर मां -बहन को कुछ कह नहीं पाते।
रागिनी को चुप कराया,”तुम लोग दूसरे डॉ को क्यों नहीं दिखाते? हताश-निराश होने की बात नहीं। पति साथ हैं तुम्हारे यह क्या काम है! और मान लो बच्चा न भी हुआ तो,गोद लेने की बात सोचना ,यह च्वाइस ही है तुम्हारे पास।”
“ठीक है दीदी”,कहती वह मेरे थमाए गिलास से पानी पीकर घर लौट गई,शायद एक उम्मीद लेकर गई।
सोफे़ से उठने ही वाली थी कि एक कलीग का फ़ोन आ गया कि,”बॉस ने तो आज ख़ूब क्लास ली मेरी।ईमानदारी से काम करता हूं,पर उनकी नज़र में नहीं आता। चापलूसी करने वाले लोग पसंद हैं, और मुझे चापलूसी आती नहीं। सोचता हूं कहीं और जॉब देखूं।”
मैंने आश्चर्य से उनसे कहा ,”अरे- अरे रुको ज़रा।जॉब क्यों छोड़ना, सब जगह ऐसे ही लोग मिलेंगे।तुम टिके रहे वहीं।जो काम करते हो पूरी ईमानदारी से करो,बॉस को और दूसरे लोगों को जबतब बताया भी करो अपने काम के बारे में। कभी लोगों से पूछो कुछ ,और कुछ बताओ भी।चापलूसी ज़रूरी नहीं,पर लोगों से अपने काम को ज़रूर डिस्कस करो। भई,कुर्सी पर जो भी हो उसकी इज़्ज़त तो करनी पड़ती है।”
बात उन्हें जंच गई,बोले,” थैंक्स ,तुम्हारी बात से बहुत राहत मिला मुझे,अब से मैं यही करूंगा।”
मोबाइल एक तरफ़ रख ब्रेड पर बटर लगा ही रही थी कि पड़ोसन आ धमकी,”ये क्या खा रही हो ! दोपहर में ब्रेड – बटर?”
सारी दास्तान सुनाई तो वह बोली,”यार, तुमने तो जैसे सबकी बात सुनने का ठेका ले रखा है।जिसे देखो तुमसे अपना दुखड़ा सुनाता रहता है।क्या तुम बोर नहीं होती लोगों का रोना – धोना और उनकी परेशानियां सुन कर।कैसे सुन लेती हो? रिटायर हो कर भी इन सब में बिजी रहती हो।”
मैंने हंस कर कहा,”मैडम आजकल सुनने वाले कान कहां रहे,सबको बस अपनी रामकहानी सुनानी होती है।पता है अगर किसी की बात को हम लोग कान धर कर सुन लें न,तो लोगों की आधी बीमारी,परेशानी,हताशा यूं ही चुटकी बजाते ग़ायब हो जाए।मुंह के साथ कान का रिश्ता कितना गहरा है ये दिल और दिमाग़ से पूछो तो जानो। चलो अब बहुत हुई बातें ,तेज़ भूख लगी है ।अब तुम मुझे अपना कान दो और कुछ बना कर खिलाओ तो!” और हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं।
*सत्यवती मौर्य

गिरगिट की तरह रंग बदलना : Moral stories in hindi

“मालिक ने हमारे लिए बहुत किया, मुस्किल घड़ी में हमारे साथ खड़े थे…”

“हां और मेरे मां के ऑपरेशन के टाइम लोन भी नहीं मिलता ना कोई पैसे दे रहा था पर मालिक से बात की उन्होंने तुरंत मेरी मां के इलाज के लिए मुझे पैसे हाथ में दिए और सर पर हाथ फेरा…”

इतिहास में आज पहली बार ऐसा हुआ की कंपनी घाटे में जा रही थी। “कृताग्नगी प्राइवेट लिमिटेड” के मालिक कमल किशोर जी आज अपाहिंज महसूस कर रहे थे। और उन्होंने अपने कंपनी में काम करते हुए सारे एम्प्लॉय से कंपनी की सच्चाई बताई और खुद हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग कर कहा, की इस महीने का और अगले कुछ महीने का पगार वो नहीं चुका पायेंगे लेकिन जैसे ही स्थिति सुधरेगी, वे पगार भी एक साथ चुका देंगे! वे सबका साथ चाहते थे। ऐसे में वहां काम करते लोग आपस में बात करने लगे… की कौन जायेगा और कौन रहेगा।

“सच कहा… और मेरे घर में तो मेरे अकेली के कमाई में चार लोग खाने वाले है!! मैं अभी यहां रही तो अपने घर वालों को कैसे खिलाऊंगी” तृषा अपनी दोस्त महिमा से कहती है।

“हां यार और मेरी भी अगर पगार नहीं हुई तो मेरे आईफोन का लोन भी कई कैसे चुका पाऊंगी!” शालिनी बोली।

“आखिर गिरगिट की तरह अपना रंग बदल ही लिया ना! क्यों महिमा याद नहीं मालिक ने तुझे तेरे अत्याचारी ससुराल वालों से कैसे बचाया था भूल मत अगर वो नहीं होते तो तुम यहां नहीं होती और शालिनी तुम्हें अपने आईफोन की पड़ी है, याद कर वो दिन जब तुम्हारे घर पर छत भी नहीं थी तो मालिक ने तुम्हें छत दी आज उनके बुरे समय में तुमलोग उन्हें छोड़ना चाहते हो… मालिक हमारे पिता समान है और हम सब जानते है की अभी स्थिति क्या है! माफ़ करना, एहसान फरामोश हो तुमलोग!” दोस्त कावेरी की बात सुन दोनों का सर शर्म से झुक गया था।

मनीषा देवनाथ 🖋️

(मुहावरा: गिरगिट की तरह रंग बदलना)

दोस्त ऐसे नहीं होते : short story with moral

“ यार तू मेरा भरोसा कर सकती है सच कह रही हूँ मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूँगी ।” अपनी रूममेट नित्या पर भरोसा कर राशि ने अपनी सारी परेशानी कह डाली

कुछ दिनों बाद राशि देख रही थी नित्या उसी लड़की के साथ मजे से हँस बोल कर घूम रही है जिसके साथ हुई परेशानी नित्या से कही थी और वो लड़की राशि का मज़ाक़ बना रही थी

रूममेट होने के नाते राशि नित्या को कितना ही नज़रअंदाज़ कर सकती थी एक दिन वो किसी बात पर दुःखी हो बैठी थी तभी नित्या ने फिर सहानुभूति जताते हुए पूछा,“ क्या बात है मुझे बता सकती है आख़िर तेरी रुममेट हूँ ।”

“ तुम पर अब भरोसा करने की गलती नहीं कर सकती तुम गिरगिट की तरह रंग बदलती हो..जहाँ तुम्हारा मक़सद पूरा होता उधर चली जाती हो… दोस्त ऐसे नहीं होते जैसी तुम हो…लानत है तुम पर जो तुम्हें अपनी परेशानी बताऊँ…कभी तो किसी की अपनी बन कर रहो… नहीं तो कल को तुम्हें कोई भी नहीं पूछेगा ।” राशि हिक़ारत भरी नज़रों से उसे देखने लगी

पता नहीं नित्या को कितना समझ आया नहीं आया … पर अगर हमारी ज़िन्दगी में कोई ऐसा है तो उससे दूरी बना कर रहने में ही भलाई है जो ज़रूरत परने पर गिरगिट की तरह रंग बदल कर दूसरे पाले में जा बैठते।

रश्मि प्रकाश

मौलिक रचना

#गिरगिट की तरह रंग बदलना ( मुहावरा)

“मां का वादा ” : hindi kahani with moral

अरी ओ रमिया कहा है तू, जल्दी इधर आकर मेरी एक बात तो सुन जरा”

आवाज लगाती हुई कांता ने रमिया की झुग्गी में कदम रखा तो देखा उसकी बेटी मीरा स्कूल की वर्दी पहने खड़ी थी…

कांता ने विस्मय से मीरा की ओर देखा और रमिया से बोली ये क्या इसे स्कूल भेज रही है तू???…

हां जिज्जी मैने कल सरकारी स्कूल में अपनी मीरा का दाखिला करा दिया है अब मेरी बच्ची भी पढ़ेगी, लिखेगी और खूब नाम कमाएगी, ये सब कहते कहते रमिया जैसे भविष्य ही देखने लगी थी…

अरे मूर्ख खुद के खाने पीने का तो पता नहीं है तुझे और चली है इसे पढ़ाने, कांता ने तीखा व्यंग किया तो रमिया बेबसी और अपमान से तिलमिला उठी… और बोली जिज्जी चार घरों में काम करके इतना तो कमा ही लेती हूं की अपना और अपनी बेटी का पेट भर सकू, रही बात पढ़ाई की तो सरकार ने 12वी तक की पढ़ाई लड़कियों के लिए निशुल्क कर दी है और ये बात मुझे मेरी एक मैडम ने जोकि सरकारी स्कूल में पढ़ाती है, ने कल बताया भी और दाखिला भी करा दिया है…

“पर तुझे क्या जरूरत पड़ गई इसे पढ़ाने की” मेरी बात मान और इसे मेरे साथ भेज दे, बच्चा खिलाने का काम है सुबह मेरे साथ जाकर शाम को मेरे साथ ही आ जाया करेगी…अच्छा खाना, कपड़े और पगार भी बढ़िया मिलेगी कांता बोली….

नही जिज्जी इसके पिता होते तो वो भी यही चाहते की उनकी बेटी पढ़े, लिखे…काल के क्रूर हाथों से मैं उन्हें तो बचा नही पाई पर अब ठान लिया है की ये मेरी तरह किसी की मोहताज नहीं रहेगी, मेरे मां बाप ने अगर मुझे पढ़ाया होता तो शायद मैं भी कही अच्छी नौकरी पर होती, यू घरों में बर्तन ना घिस रही होती और जो मैने सहा है, मेरी बेटी वो सब नही सहेगी ये एक मां का वादा है … दृढ़ विश्वास से रमिया ने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और बाहर निकल आई..

पीछे से उसकी जेठानी कांता ने चिल्ला कर कहा…

हां ले जा, ले जा हम भी देखेंगे की चार किताब पढ़ने से इसे क्या मिल जायेगा …

“सम्मान और दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की ताकत ” रमिया ने पलटकर जवाब दिया..

और चल पड़ी अपनी बेटी के साथ उसका जीवन संवारने।।।।

स्वरचित मौलिक रचना

#मातृ दिवस

कविता भड़ाना

माँ की एहमियत : moral stories for adults

“रिया आजा बेटा तुझे कचौड़िया बनाना सिखाऊं !” नीता जी ने बेटी को आवाज़ दी।

” नही मुझे नही सीखना मुझे नही पसंद ये खाना बनाना !” रिया झुंझला कर बोली।

” बेटा आज मैं हूँ सीख ले कल ना रही तो कौन सिखाएगा ससुराल मे सब बहू से अपेक्षा ही करते है !” नीता जी बोली।

कुछ दिन बाद ही नीता जी की तबियत खराब रहने लगी डॉक्टर से पता लगा कैंसर है बहुत इलाज करवाया पर होनी को कौन टाल सकता है। सबको रोता बिलखता छोड़ वो चली गई कुछ समय बाद रिया की शादी भी हो गई।

” बन गई कचौड़ी ?” तभी रिया को उसके पति की आवाज़ सुनाई दी और अचानक उसके हाथो पर घी छलक पड़ा। “उफ़” करती रिया सोच से बाहर निकली।

सबको कचौड़ी देने के बाद वो भरी आँख से बोली ” माँ देखो आपकी रिया कचौड़ी बनाना सीख गई एक बार आकर बता दो कैसी बनी है । आप सही कहते थे माँ के बिना कोई नही सिखाता बस सबको बहू से अपेक्षा ही होती है । आपकी और आपकी बातो की एहमियत आज समझ आ रही है जब आप नही हो!” ये बोल रिया फूट फूट कर रो दी ये आँसू हाथ जलने के थे या माँ को याद कर के ये वही जानती थी।

माँ की एहमियत पता चलती है माँ के जाने के बाद

आँसू पोंछने वाला भी कोई नही मिलता माँ के जाने के बाद।

संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

सम्मान की ख़ातिर : short moral stories in hindi for class 8

कृतिका-मम्मी कल स्कूल में पीटीएम है, हॉफ़ इयरली एग्जाम का रिजल्ट मिलेगा।

पायल (कृतिका की मम्मी)-ठीक है चलूँगी, कल ऑफिस में हॉफ़ डे ले बोल दूँ।

अगले दिन दोनों स्कूल पहुँचते है और रिजल्ट लेकर घर लौट रहे होते है।

पायल (कृतिका की मम्मी)-अबकी बार फिर साइंस में 8 मार्क्स कम है तुम्हारा पढ़ाई में मन नहीं लगता नहीं है अब। अभी 7th क्लास में ये हाल है तो बोर्ड में तो फेल ही हो जाओगी। आज से तुमरा टीवी, डांस क्लास सब बंद। प्रेमा (पायल की पड़ोसन) फिर सुनाएगी कि उसकी बेटी ने क्लास में फिर टॉप किया है। हमेशा शर्मिंदा करा देती हो मुझे।

कृतिका बिल्कुल शांत थी, पर मन में कई तरह की आवाज़ों ने तूफ़ान मचा रखा था।

पायल ने कृतिका को घर छोड़ा और ऑफिस के लिए रवाना हो गई।

शाम को पायल घर लौटकर आयी तो घर में भीड़ देखकर घबरा गई अंदर जाकर देखा तो चीख पड़ी मेरी कृति, मेरी कृति, ये क्या किया तुमने। उठ जा मेरी बच्ची, कुछ तो बोल।

पर मृत शरीर कब बोला है, पर ऐसा लगा कृतिका के मृत पड़ें शव से आवाज़ आयी कि मम्मी आपके #सम्मान के लिए ये करना ठीक लगा, कही मैं बोर्ड में फेल हो जाती तो प्रेमा आंटी फिर आपको चिड़ाती।

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह।

#सम्मान

निर्णय : moral stories in hindi for class 10

नीरा थोडी़ देर से घर पहुंची ।आफिस में काम अधिक था।फिर घर के लिये साग भाजी लेने में भी थोडा़ समय लग गया। नतिन आज जल्दी घर आ गया था ।घर में पत्नी को न देख उसका क्रोध सातवें आसमान पर था।

“कहां गुलछर्रे उडा़ रही थी ।यह समय है घर आने का”!

“साॅरी ,अभी चाय नाश्ता बनाती हूं ।मुझे भी भूख लगी है”।”

“पहले अपना तनख्वाह निकाल”जतिन गुर्राया। उसे जुए में दाव लगाने की जल्दी थी।

“नकद नहीं मिले ,मेरे एकाऊंट में जमा हो गये”।

जतिन झपटकर बैग से नोटों का बंडल निकाल चीख पडा़,”यह क्या है ?मुझसे झूठ बोलती है …”गालियों के साथ लातघूंसे चलने ही वाले थे कि नीरा तनकर खडी़ हो गई,”खबरदार ,जो इन पैसों को हाथ लगाया।ये पैसे मैंने अपनी वृद्धा मां के इलाज के लिये रखा है ,उनका मेरे सिवा है ही कौन!”

“मैं तुम्हारा कोई नहीं …ला ये रुपये मुझे दे नहीं तो यही चीर कर रख दूंगा।”

शराबी एय्यास क्रूर पति कुछ भी कर सकता है।नीरा ने एक जोर का धक्का जतिन को दिया ।नशेबाज भरभराकर गिर पडा़।गालियां बकने लगा।वह संभल पाता उसके पहले ही नीरा कुछ जरुरी सामान कपडे़ बैग में ठूंस ,नोटों का बंडल छीन तेजी से बाहर निकल पडी़।बाहर से कुंडी बंद करना न भूली।

चार वर्षो से इस शराबी जुआरी दुश्चरित्र पति की गालियां मार सह रही है।

वृद्धा मां की उपेक्षा अब बर्दाश्त नहीं।वह पढीलिखी है कमाती है …अब वह अपनी मां के साथ सम्मान का जीवन जियेगी ।उसने निर्णय कर लिया था।

मौलिक रचना-डाॅ उर्मिला सिन्हा

#सम्मान

बिन मांगे मोती मिलें : moral stories in hindi for class 7

इस बार का प्रतिष्ठित शिक्षक सम्मान मुझे ही मिलेगा….देख लेना मां ऐसी गोटी बिठाई है कि बस…. अविनाश पूर्णतः आश्वस्त था सारे डॉक्यूमेंट्स अपने सभी कार्यों के प्रमाणपत्र हर गतिविधि की फोटोग्राफ और फिर सारे उच्च अधिकारियों से मुलाकात …!

अरे बेटा अपना ही सम्मान करवाने के लिए इतना जोड़ तोड़ इतनी मारा मारी !!!सुजाता जी हैरान थीं क्या तेरे कार्यों का प्रमाणीकरण भी तुझे ही देना पड़ेगा!!क्या किसी को दिखाई नहीं पड़ता!!

मां आजकल कार्य करने वालों को नहीं कार्यों का ढिंढोरा पीटने वालों को ही पुरस्कार मिल पाता है..!अपने को ही देख लो …. सारी जिंदगी गांव में नौकरी की क्या क्या नहीं किया तुमने वहां के सुधार के लिए पूरी कर्मठता से फिर खामोशी से सेवा निवृत्त भी हो गई …कोई पुरस्कार मिला आज तक !!बिना प्रयास के जोड़ तोड़ बिठाए कुछ नही मिलता मां ..!!व्यंग्य से हंसता वो पुरस्कार स्थल की ओर प्रस्थान कर गया था।

धड़कते दिल से उसे अपने ही नाम के परिणाम की प्रतीक्षा थी।

तभी देखा…. मुख्य अतिथि जिला कलेक्टर स्वयं एक बुजुर्ग सी महिला को मंच पर ससम्मान ला रहे हैं…थोड़ी ही देर में माइक पर उनका बहुत विनम्र स्वर गूंज उठा …आज के इस प्रतिष्ठित शिक्षक सम्मान की सही हकदार हैं परम श्रद्धेय सुजाता मैडम जिन्हें पाकर आज ये सम्मान भी सम्मानित हो गया है.. जिंदगी भर सुदूर गांव में समर्पित भाव से जिन पिछड़े बच्चो के उत्थान के लिए ये संघर्ष रत रहीं ..उनमें से एक जीता जागता उदाहरण मैं स्वयं आपके समक्ष खड़ा हूं …क्या इन्हे अन्य किसी भी प्रकार के प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है..!!”

अश्रुपूरित नेत्रों और सम्मान भरे हृदय के साथ अपनी मां के लिए जोर जोर से तालियां बजाता अविनाश समझ गया था

सच है कर्म ऐसे करो कि सम्मान मांगना ना पड़े।सम्मान आपको ढूंढता हुआ खुद चल कर आ जाए।

लतिका श्रीवास्तव

खीर कचौरी : moral stories in hindi with moral

वीना आज दाल कचौरी और खीर खाने का मन हो रहा हैँ ! तू हर साल हमारी सालगिराह पर बनाती हैँ ,एक दिन पहले से ही दाल भिगो देती हैँ ,दूध ज्यादा लेकर आती हैं ! अबकी बार बनाने का इरादा नहीं हैँ क्या तेरा ? 80 वर्षीय विनायक जी अपनी पत्नी वीना जी से भी बोले !

जी आपको पता हैँ ना कि आप कितना बिमार हो गए थे पिछली बार ,चीनी खाने वाली बिमारी और वो ज़िसमें कुछ बढ़ जाता है ,डॉक्टर चिकनाई की मनाही करते हैँ ,वो हो गया था आपको ,भर्ती कराना पड़ा था आपको अस्पताल में ! सबके कैसे हाथ पांव फूल गए थे ! बेचारा शुभू (बेटा ) ,बिन्नी (बहू ) भागते हुए आयें थे ! जबकि शुभू तो बोर्डर पर था ! छुट्टी भी कितनी मुश्किल से दी थी उसके साहब ने ! इसलिये मैं कोई परेशानी नहीं चाहती अब दलिया ,करेले का जूस ही पीजिये ,दवाई खाईये ,परहेज से रहिये ! चले गए हमारे दिन कचौरी खीर खाने के !

मैं कहीं ना मर रहा ! अगर तूने आज नहीं बनायी तो मेरी आत्मा तुझसे मांगने आयेगी ! सोच ले एक बार ! थोड़ा सा ही खाऊँगा !

तो तुम नहीं मानोगे बुढ़ऊ !

मुझे पता है मेरी बुढ़िय़ां मेरी बात नहीं टालेगी ! अपनी बुढ़िय़ा की ठुड्डी पकड़ते हुए बुढ़ऊ बोले !

हटो जी ,तुम भी अपनी बात मनवा ही लेते हो ! ठीक हैँ अभी भिगो देती हूँ दाल ,शाम को बना दूँगी ! दूध भी ज्यादा ले आऊंगी !

शाम को विनायक जी ने बड़े मन से एक कचौरी थोड़ी सी खीर खायी ! खाने का मन तो और भी था पर बिमारी का सोचकर सब्र कर लिया ! अपनी बुढ़िय़ां को भी अपने हाथ से एक टुकड़ा खिलाया !

आज विनायक जी के उस दिन के आठ दिन बाद ह्रदय आघात से परलोक सिधार जाने के बाद वीना जी सोच रही कि पूरा जीवन इंसान किसी और बिमारी से जूझता हैँ ,दुनिया से विदा किसी और वजह से होता है ! शायद उनके बुढ़ऊ खीर कचौरी की आस में ही थे ! आत्मा तृप्त हो गयी ,दुनिया से विदा हो गए !

वीना जी बस उनके चेहरे के संतुष्ट भाव को देख आंसू पोंछती रही !

मीनाक्षी सिंह की कलम सेआगरा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!