मंशा – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अरे वाह भाभी…आपके तो बड़े ठाठ हैं और ये लिखने का नया शौक कब से शुरू हो गया । स्नेहा के हाथ में पेन डायरी देखकर मायके आई ननद मयूरी ने पूछा ।

क्या बताऊं मयूरी… लिखने का शौक तो बचपन से ही था जिसकी वजह से आकाशवाणी से भी जुड़ी रही , पर बीच में बच्चे , परिवार , घर गृहस्थी के कारण थोड़ा विराम लग गया था ..पर अब मैंने फिर से लेखन का कार्य शुरू कर दिया है । आप जानती है मयूरी …जब मैं लिखने बैठती हूं और …..

” खयालों को शब्दों का जामा पहना पन्नों पर बिखेरती हूं तो गजब का सुकून मिलता है ” सारे तनाव अपने आप दूर हो जाते हैं ।

अच्छा है भाभी.. आप अपने शौक ससुराल में भी पूरा तो कर पा रही है ना… वरना… अभी मयूरी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी उसने स्वयं ही अपनी बात वहीं रोक दी । मयूरी के टीस (शिकायत)भरी मुस्कान से साफ जाहिर हो रहा था कि वो कहीं ना कहीं अपने ससुराल में असंतुष्ट है ।

स्नेहा ने मयूरी की मनोदशा भापँते हुए कहा , हर समय एक समान नहीं होता मयूरी …और फिर हर समय ..वक्त , परिस्थिति, परिवार को दोष देना ठीक नहीं ! जब लगन और जज्बा हो ना तो शुरुआत कभी भी , कहीं से भी की जा सकती है… अब मुझे ही देखो ना ….

शुरू शुरू में बिल्कुल समय नहीं मिलता था फिर मैंने समय का प्रबंधन तरीके से किया , हर काम को नियत समय पर करने की कोशिश की कल क्या बनाना है उसकी रूपरेखा मस्तिष्क में पहले से ही तय कर लेती थी …धीरे-धीरे समय निकालना सीख गई ,और फिर मम्मी जी मेरी भावनाओं को समझने लगी । मुस्कुरा कर स्नेहा ने अपनी सासू मां की तरफ देखा ।

मयूरी जो ध्यान से स्नेहा की बातें सुन रही थी उसे तो समझने , सोचने की बजाय…. अपने ससुराल से सिर्फ शिकायत ही शिकायत नजर आ रही थी…. उसने इतराते हुए कहा भाभी आपको इतना अच्छा ससुराल मिल गया है ना इसलिए आप इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रही हैं । कहीं ना कहीं मयूरी की बातों में स्नेहा के लिए भी प्रतिस्पर्धा झलक रही थी ।

अब जब मयूरी को कुछ और बातें नहीं मिली तो उसने स्नेहा से तपाक से पूछ लिया ……

अच्छा ये बताइए भाभी ,आप दोहा , सोरठा , छंद , अलंकार , वीर , हास्य आदि किस रूप में अपनी कविताएं लिखती है ?

स्नेहा , मयूरी की बातों का जवाब दे पाती उससे पहले ही सासू मां ने मयूरी की ” मंशा ” समझते हुए तपाक से कहा ..बेटी ,बहू की …

” रचनाओं में जिस रूप में भी , भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है.. हम पाठकों के समझ में आ जाता है और विचारों का आदान-प्रदान इतना सरल , सहज और सशक्त होता है जिसे आसानी से सोचा समझा और एहसास जा सकता है “

अभी तक तो स्नेहा ही मयूरी को समझा रही थी पर अब सासू मां ने बिटिया रानी को बताना शुरू किया..

देख बेटा , पहले तो मुझे समझ में नहीं आता था । देर रात तक इनके कमरे की लाइट जलती रहती थी… दरअसल दिन में सारा काम खत्म करके अपने आराम के समय में से थोड़ा समय चुरा कर ये अपना लेखन का शौक पूरा करती थी ….तब मैंने सोचा , क्यों ना थोड़ा मैं भी मदद करूं… बस फिर क्या था… अब स्नेहा लिखती है , और जानती है मयूरी मुझे भी बड़ा इंतजार रहता है …जब फेसबुक में इसकी कहानी छपती है ना तो मुझे भी पढ़ने में बड़ा मजा आता है ।

मम्मी जी की बातों से मयूरी को समझ में तो आ गया था.. एक्सक्यूज या बहाना तो अब यहां चलने वाला नहीं है ।

दूसरों की शिकायत कर अपनी गलती को छुपाना और महान बनना या अपनी गलती को छुपाने के लिए दूसरों की शिकायत करना…शायद यहां नहीं चलेगा इसलिए मयूरी ने कहा..ठीक है मम्मी , मैं भी अपने शौक पूरा करने की अपनी कोशिश जारी रखूंगी ।

#शिकायत

( स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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