मन की उलझन – कुमार मुकेश : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : दोस्तों बात उन दिनों की है जब मैं बी एस सी द्वितीय वर्ष में जीव विज्ञान से स्नातक कर रहा था।उन दिनों हमारे शहर में महाविद्यालय नहीं था तो हम सभी छात्र शहर से 15किमी दूर दूसरे शहर में पढ़ने जाते थे और बस से अप-डाउन किया करते थे।जैसे कि कॉलेज में छात्रों के ग्रुप बन जाते हैं,ऐसे ही हमारा भी एक ग्रुप बन गया था

जिसमें हम दस बारह लड़के लड़कियां थे हम लोग सभी साथ में ही कॉलेज आते जाते थे, और एक ही बस से अप-डाउन करते थे। चूंकि एक साल हो चुका था साथ में पढ़ते,सफर करते हुए तो हम सब आपस में बहुत घुल मिल गए थे। कॉलेज का दूसरा साल शुरु हुआ तब तक हमारे शहर में भी महाविद्यालय खुल गया,तो हमारे साथ के काफी सारे छात्रों ने अपना दाखिला अपने शहर के नये महाविद्यालय में ही करवा लिया।

लेकिन हमारे ग्रुप के सभी लोगों ने निर्णय लिया कि हम अपना स्नातक वहीं से करेंगे। सो अब हमारे शहर के पुराने छात्र तो कम हुए ही नये एडमिशन भी नहीं हुए,लेकिन पता नहीं कैसे हमारे शहर की एक लड़की का एडमिशन जीवविज्ञान प्रथम वर्ष में हमारे ही कॉलेज में हो गया और उसने भी उसी बस से अप-डाउन शुरु कर दिया।शुरू शुरु के दस पंद्रह दिन तो वो इतना घबराई रहती थी कि ना किसी से बात करती ना किसी की तरफ देखती,धीरे धीरे उसको पता चला कि हम लोग उसके सिनियर हैं और हमारे ग्रुप में लड़कियां भी हमारे साथ ही अप डाउन करती हैं तो वो थोड़ा हमारे ग्रुप के साथ ही आने जाने लगी।

धीरे धीरे उसकी हमारे ग्रुप की लड़कियों से अच्छी दोस्ती हो गई और ग्रुप में दूसरे लड़कों से भी वो अच्छे से घुल-मिल गई,किन्तु ना जाने क्यों वो मुझे देखते ही खामोश हो जाती थी।हां उसकी मुस्कान बहुत प्यारी थी और बातें भी वो बिल्कुल बच्चों जैसी करती थी।ना जाने क्या बात थी उसमें कि वो मुझे पहले दिन से ही अच्छी लगने लगी थी पता नहीं क्या था उसमें जो मुझे आकर्षित करता था।

चूंकि वो हमसे जूनियर थी उम्र में भी छोटी थी तो हम सब लोग उसका ध्यान रखते थे,लेकिन लोगों को लगने लगा कि मैं उसका कुछ ज्यादा ही ख्याल रखता हूं,तो सब लोग सोचने लगे कि मैं उसकी तरफ आकर्षित हूं और उससे प्यार करने लगा हूं। पर मैं खुद इस बात से उलझन में था,और यह फ़ैसला नहीं कर पा रहा था कि यह ये वही कॉलेज वाला प्यार है,या कुछ और या बड़े होने की वजह से जिम्मेदारी का अहसास।

इसी तरह आधा साल बीत गया,और जनवरी आ गया। यही वो समय होता है जब कॉलेज में पढ़ाई की टेंशन शुरु होने लगती है।खास तौर पर साइंस के छात्र प्रेक्टिकल वगैरह में व्यस्त हो जाते हैं,हम लोग भी अब अक्सर प्रेक्टिकल के कारण कॉलेज से देर से छूटने लगे। लेकिन हम लोग कोशिश करते थे कि सब लोग साथ में ही कॉलेज से वापसी करें और एक ही बस से अप-डाउन करें जिससे हम लोग काफी सारी परेशानियों से बच जाते थे और लड़कियां भी अकेले सफर करने की दुश्वारियों से बच जातीं थीं।

एक दिन हम सभी लोग कॉलेज से वापस आने के लिये बस में चढ़ गये,बस चलने के कुछ देर बाद मुझे ख्याल आया कि वो फर्स्ट ईयर वाली वो लड़की हमारे साथ नहीं है। मैंने अपने साथ वाले सभी लोगों से पूछा तो पता चला कि उसका वनस्पति विज्ञान का प्रेक्टिकल है जिसकी वजह से वो लेट हो जाएगी।

उस वक्त पांच बज रहे थे,अगली बस छः साढ़े छः से पहले मिलना नहीं थी ,तब तक अंधेरा हो जाएगा और घर तक पहुंचते पहुंचते तो रात हो जाएगी।मुझे लगा कि यूं उस लड़की को अकेला छोड़कर जाना अच्छी बात नहीं है।मैंने अपने साथियों से बात की तो सभी का यही कहना था कि आ जाएगी अकेले इतना भी परेशान होने की बात नहीं है,पर ना जाने क्यों मेरा मन नहीं माना और मैंने अकेले ही उसके लिये रूक कर उसके साथ आने का निर्णय लिया और मैं बस से उतर कर पैदल ही वापस कॉलेज की ओर चलने लगा।

अभी मैंने आधा रास्ता ही पार किया होगा कि मुझे वो लड़की दिखाई दी,वो बहुत तेजी से चलते हुए आ रही थी और काफी घबराई हुई थी।उसने जैसे ही मुझे देखा वो दौड़कर मेरे पास आई और मुझसे गले लगकर रोने लगी एक पल को तो मैं हक्का-बक्का रह गया, क्योंकि उस जमाने में किसी लड़की का किसी लड़के से यों इस तरह सरे राह गले लग जाना मामूली बात नहीं थी। थोड़ी देर में जैसे ही मैं कुछ संभला मैंने अपना हाथ उसके सिर पर रखा और बोला पगली क्यों रोती है मैं हूं तो।

मेरी बात सुनकर उसका रोना कुछ कम हुआ,तब उसने मुझसे जो कहा वो मेरी जिंदगी के सबसे प्यारे शब्द थे,उन शब्दों ने मेरी सोच को सही दिशा दी और शुरुआत हुई हम दोनों के रिश्ते की और वो रिश्ता था दुनिया का सबसे पवित्र रिश्ता,भाई और बहन का रिश्ता।

जी हां दोस्तों मेरे गले लगकर उस दिन उस प्यारी सी मासूम लड़की ने मुझे से कहा-मुझे पूरा विश्वास था कि चाहे कोई रुके ना रुके आप जरुर मेरे लिए रुकोगे और अगर आज आप मेरे लिए नहीं रुकते तो मैं आपसे कभी बात नहीं करती।

ये सुनकर मैंने उससे कहा बात तो तू मुझसे वैसे भी नहीं करती है।

तब उसने बताया कि-मैं जबसे कॉलेज आने लगी मेरी सबसे दोस्ती हो ग‌ई पर मैं आपसे बात नहीं कर पाती थी , क्योंकि मेरा कोई भाई नहीं है और मैं हमेशा भाई की कमी महसूस करती थी,लेकिन आपसे मिलने के कुछ दिनों में ही मुझे लगने लगा कि मेरा भाई होता तो वो आपके जैसा ही होता ।

दोस्तों उस दिन मुझे पता चला कि क्यों मेरे मन में उसके लिये अलग तरह का प्यार पनप रहा था,उसके बोलने के बाद ही मेरी मन की सारी उलझन दूर हो ग‌ई और मैं समझ पाया कि प्यार सिर्फ एक ही रिश्ता नहीं बनाता बल्कि प्यार के हजारों रुप हैं जो मन को खुशी देते हैं बस जरूरत है सही समय पर सही रुप को पहचान कर हम उस प्यार को उसी रुप में आगे बढ़ाएं।

कुमार मुकेश

 

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