मनहूस वो नहीं हम है…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

मेहंदी की रस्म शुरू होने वाली है और शर्वरी की नजर अपनी एकलौती भाभी को ढूंढ रही है। उसने अपनी दोस्त को मां को बुलाने भेजा अहिल्या जी ने आते ही पूछा “तुमने अभी तक मेहंदी लगवानी शुरू नहीं की?” “नहीं मां, मैं भाभी की राह देख रही थी वो आते ही हम दोनों के हाथ में मेहंदी रचायेंगे ।” अहिल्या जी ने शर्वरी को एक तरफ खींचते हुए कहा “पागल हो गई है क्या? मैंने ही उसे दो दिन तक कमरे से बाहर निकलने को मना किया है तुम्हारी विदाई के बाद अपने कमरे से बाहर निकलेगी। उसका मनहूस छाया भी तुम्हारे पर पड़ना नहीं चाहिए, विधवा जो ठहरी।”

शर्वरी का भाई प्रथम और भाभी दिपीका दोनों एक-दूसरे को कॉलेज से पहचानते थे और दोनों की नौकरी भी एक ही जगह होने की वजह से दोनों के बीच प्यार हुआ पर प्रथम पहले शर्वरी की शादी करना चाहता था क्योंकि वह मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है और उस पर पिताजी का साया भी नहीं है तो प्रथम को लगता है कि अगर शर्वरी की शादी पहले हो जाएं तो वह अपनी शादी साधारण तरीके से मंदिर में जाकर कर लेगा।

दिपीका ने प्रथम का साथ निभाने का वादा किया था तो वो प्रथम के हर फैसले से खुश थी। प्रथम को पंद्रह दिन से बुखार आ रहा है और उसका शरीर भी गल रहा है। रिपोर्ट करवाने पर पता चला कि उसको ब्लड कैंसर है और वो चंद दिनों का मेहमान है। दिपीका को जब यह बात पता चली तो उसने पहले प्रथम से शादी करने का निर्णय लिया। प्रथम और बाकी घर के सदस्यों के मना करने के बावजूद भी दिपीका ने प्रथम से शादी करने का निर्णय बदला नहीं और साधारण तरीके से प्रथम जैसा चाहता था वैसे ही दिपीका ने प्रथम से शादी की।



शादी के बाद दिपीका ने अपना सबकुछ दांव पर लगा कर प्रथम को बचाने की कोशिश की पर उसकी कोशिश नाकाम रही और प्रथम दस दिन बाद दिपीका को अलविदा कह गया। अब दिपीका का जीना हराम कर दिया दुनिया वालों ने और उसके साथ उसकी सास ने पर इस बीच शर्वरी अपनी भाभी की ढाल बनकर खड़ी रही। शर्वरी ने दिपीका को बहुत करीब से देखा था प्रथम के राम में तड़पते हुए दिपीका की सास अहिल्या जी जब तानों से उसका दिल छलनी कर देती तो उस पर मरहम लगाने का काम शर्वरी करतीं अभी प्रथम के ग़म से उभरी भी नहीं थी दिपीका और उसे ऑफिस जाने का फरमान जारी कर दिया साथ में घर का सारा काम भी अहिल्या जी उसे चैन से दो निवाले भी खाने नहीं देती हैं और पूरी तनख्वाह अपने पास रख लेती है पर अपने प्यार प्रथम की मां को वो कुछ नहीं बोलती है क्योंकि वह प्यार करती है प्रथम को और उससे जुड़ी हुई हर चीज को जिसमें अहिल्या जी भी शामिल हैं।

दिपीका नहीं चाहती है कि वो कुछ ऐसा करें कि जिसे प्रथम की आत्मा को दुख पहुंचे इसलिए वह चुपचाप अहिल्या जी को सहती जा रही है और आज भी वही कारण था और वो कमरे में बंद हो गई थी। शर्वरी अपनी मेहंदी की रस्म में दिपीका का इंतज़ार कर रही है और अहिल्या जी ने जब बताया कि दिपीका को मैंने आने से मना किया है। इतना सुनते हीं शर्वरी को अपनी मां पर गुस्सा आया और वो जोर से चिल्लाई “फिर मां आप और बुआजी को भी कमरे में बंद रहना चाहिए और मां आप एक बात भूल गई शायद, भाभी को भी मालूम था कि भैया को कैंसर है और वो चंद दिनों के मेहमान है, फिर भी अपने प्यार की खातिर सब के मना करने बावजूद भी भैया से शादी की, मनहूस वो नहीं हम हैं और एक बात और बता दूं मैंने भैया से वादा किया है कि मैं उनके सुख-दुख में बराबर भागीदार रहूंगी और मेरी शादी की हर रस्म वह भैया बनकर निभाएंगी। अगर आप सबको एतराज है तो आप सब शादी में सामिल मत होइए पर मैं यह शादी अपनी भाभी के बगैर नहीं करूंगी।”

इतना कह कर आंखों में आंसू लिए शर्वरी दौड़ पड़ी अपनी भाभी से मिलने जो उसे उसके भैया की तरह प्यार करती है। अहिल्या जी को अपनी गलती समझ में आ गई थी, उन्होंने कमरे में जाकर दिपीका के सर पर ममता भरा हाथ सहलाया और कहा “बेटा मुझे माफ़ कर देना, मैं तो भूल ही गई थीं कि तुमने मेरे बेटे की जगह ले ली है, तुम मेरी बहु नहीं पर बेटा हो” इतना सुनते ही दिपीका अहिल्या जी के गले लग गई। दिपीका ने शर्वरी की शादी में भाई का जो रस्म अदायगी होता है वह खुशी खुशी निभाया और अपनी लाडली ननंद को आंखों में आंसू लिए डोली में बिठाया । 

दोस्तों आप को कैसी लगी मेरी यह सब से अलग कहानी बहन का भाभी के प्रति प्यार, आज भी हमारा समाज विधवा को अपशगुनी मानते हैं। अगर आप को मेरी कहानी अच्छी लगे तो शेयर और लाईक जरुर करे।

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद

आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय 

 

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