जड़ें – सारिका चौरसिया

सौंदर्य की प्रतिमूर्ति स्वंय को सर्वगुण सम्पन्न समझने वाली लेखा जी का मानना था कि दुनिया की किसी भी उपलब्धि और सफलता पर सिर्फ उनका ही अधिकार हो सकता है। इस बदगुमानी में की घर -बाहर आस-पड़ोस की सभी औरतें उनकी सुंदरता और गुणों से चिढ़ती हैं लेकिन पहनावे ओढावे में सभी उनकी ही नकल भी करतीं हैं। इस लिये वे अक्सर यह जुमला बोला करतीं की “हमीं बनना चाहते हैं हमी से चिढ़ कर”। स्वयं को स्थापित करने की होड़ में वे किसी भी हद को पार कर लेती थी साम दाम दंड भेद की उनकी इस कला के उनके पति भी पारखी थे।और परिवार में पति के वर्चस्वपूर्ण व्यवहार का लाभ लेखा जी बखूबी उठाती भी थीं।उधर अपने कार्य से कार्य रखने वाली शांतचित्त किन्तु गलत पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की आदि सरिता रिश्ते में तो लेखा जी की जेठानी थी किन्तु अपने पति के क्रोधी स्वभाववश विवश रहती। 

सरिता के पति की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी अतः उन्होंने पति के सहायतार्थ घर से ही ब्यूटीपार्लर चलाने का निर्णय लिया और अपनी मेहनत से सुचारू भी कर दिया।अब लेखा जी को यह भी नागवार गुजरा की सम्पूर्ण अधिकार की स्वामिनी हो कर भी मैं मात्र गृहणी बनी रहूँ और जेठानी व्यवसायी बन कर आत्म निर्भर बन जाय! यह कैसे सम्भव?अतः उन्होंने जड़ खोदनी शुरू की और महिला ग्राह्नको को भड़काने का काम शुरू कर दिया। एक दिन सरिता ने प्रत्यक्ष देख ही लिया जब, एक महिला जो दुल्हन के श्रृंगार हेतु पार्लर की बुकिंग कराने आयी थी उसे लेखा जी भड़का रही थीं,की सरिता से बेहतर श्रृंगार मैं करती हूं और सरिता को कुछ नहीं आता आप मुझे बुक करें।

अवाक सरिता ने काफी प्रयास किया की यह लेखा का ब्यूटी पार्लर नहीं है यह उनका पार्लर है,ना ही लेखा के पास इससे सम्बंधित कोई स्थान अथवा डिग्री ही है। सरिता के पास कोई हेल्पर भी नहीं थी, जिससे कि वह प्रत्यक्ष प्रमाण दे पाती।किन्तु इस क्लेश पूर्ण कशमकश भरे माहौल में ग्राह्नक भड़क चुकी थी और अविश्वास करते हुए उसने बुकिंग करवाने से इनकार कर दिया। उसके जाते ही विजयी मुस्कान के साथ लेखा जी भी खिसक लीं।



इस तरह के अनेक उपक्रम करती लेखा जी अपनी मंशा में कामयाब होती जा रही थी।डब्बों में से क्रीम निकाल लेना,चीजे गायब कर देना, उपकरण खराब कर देना यह सब मामूली कर्म थे। जिसकी सरिता प्रत्यक्ष गवाह रहती किन्तु पारिवारिक विवशतावश वह कुछ कह न पाती थी।

अंततः साजिशों के तहत पारिवारिक क्लेश और अंदरूनी उपद्रव के साथ ब्यूटी पार्लर बन्द हो गया। पति के असहयोगी भावना की आदि सरिता ने एक बार पुनः नियति मान कर अनेक दुखद कटु अनुभवों की तरह यह दर्द भी अपने दिल में समेट धैर्य धर लिया।

 

किन्तु कहते हैं न कि मानव स्वभाव अंत तक प्रयास नहीं छोड़ता। जब तक जीवन है इंसान जीवनयापन के संघर्ष को जीता ही है। सरिता भी जीवन की नैया पार करती रही, और साजिशों के दौर सहती रही। इस दौरान सरिता ने अपने जीवन के दुखद अनुभवों और उनसे मिले बल को लेखनी बद्ध करना शुरू कर दिया और ईश्वर की अनुकम्पा से वह प्रसिद्धि की तरफ मुड़ने लगी।

पुनः लेखा जी के पेट मे दर्द शुरू हुआ और उन्होंने अपनी साजिशों को जबरदस्त रंग देना शुरू कर दिया। तथा स्वयं अपने मुख से ही कभी कहे गए जुमले “हमीं बनना चाहते हमीं से चिढ़ कर” को स्वयं पर सार्थक करने लगी और कूद पड़ी इस क्षेत्र में भी।

ऐड़ी चोटी का जोर लगाती वे अब सरिता के सभी सम्पर्क खंगालने और आजमाने में जुट गयीं।

प्रौढ़ावस्था की ओर बढ़ती सरिता जो अब तक अभावों और तकलीफों से जुड़े दर्द की सभी सीमाएं पार करती बच्चों की कुशल परवरिश करती चली आयी थी अब कहीं ज्यादा परिपक्व हो चुकी थी।अनुभवों ने उन्हें बहुत कुछ सीखा दिया था।सुंदरता चार दिन की मेहमान और धोखे तथा मक्कारी की भी एक उम्र होती है यह बात अब तक वे समझ ही चुकी थी।

उन्होंने लेखा जी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है, उनकी जड़ें उनके बच्चें अब मजबूत जो हो चुके हैं।।

#दर्द 

 

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश।

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