मन की गांठे खुल जायेगी – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

मै रायपुर नहीं जाऊंगी, आपको जाना है तो आप चले जाओं, वैसे भी उस घर में कोई इज्जत और मान-सम्मान तो मिलता नहीं है, आपकी मम्मी है, आपका भाई है आपको जाना हो तो चले जाओं, निधि ने एक सांस में ही सब कह दिया, जतिन ने ज्यादा बहस नहीं की, क्योंकि उसे भी पता था कि निधि के मन में गांठ पड़ चुकी है, और उसे खोलना एकदम से संभव नहीं है, इसके लिए उसे पहले रायपुर जाकर अपनी मम्मी और भाई और उसकी पत्नी से बात करनी होगी, फिर वो निधि से बात करेगा।

ठीक है, मत चलो, पापा बीमार है तो मै ही उनकी तबीयत पूछकर आता हूं, तुम यहां हमारी गुड़िया को संभालो।

जतिन रायपुर चला जाता है, अकेले बेटे को देखकर शांति जी का मन गुस्से से भर आता है, थोड़ी भी लाज शर्म तेरे अंदर बची है या नहीं, अकेला चला आया, अपनी पत्नी को तो लाता, अब इतनी गर्मी में रसोई कौन संभालेगा? लीना तो सुबह ऑफिस चली जाती है, शाम को तेरे जीजी-जीजाजी भी आ रहे हैं, बच्चों के साथ, अब मैं अकेली क्या -क्या संभालूंगी?

जतिन चुपचाप से सब सुन लेता है, और मां के पांव छूकर वो अपने पिताजी के कमरे की ओर रूख करता है, तभी छोटा भाई विपिन उसी ओर आते हुए दिखता है, आ गये भैया? भाभी को नहीं लायें? ऐसे वक्त में भाभी को घर-परिवार के साथ में होना चाहिए, आखिर वो इस घर की बड़ी बहू है, उन्हें अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए, और ये कहते हुए वो अपने कमरे में चला जाता है।

जतिन अपने ठहरे हुए कदमों को फिर से उठाता है, जाकर पिताजी की तबीयत पूछता है, वहीं बैठे-बैठे उनके पैरों की मालिश करता है, इतने घंटे आये हुए हो गये, पर एक चाय का कप तक कोई लेकर नहीं आया, वो वहीं बैठा रहता है।

तभी बाहर शोर-शराबा होता है, उसकी बड़ी जीजी कल्पना और जीजाजी आते हैं, वो सीधे पिताजी के कमरे में ही आ जाती है, और रोने लगती है, पिताजी आपकी देखभाल के लिए मै आ गई हूं, आप बहुत जल्दी अच्छे हो जायेंगे, बहू ना सही बेटी तो आपकी सेवा करेगी, मुझे तो अपने कर्तव्यों का पूरा ज्ञान है, मै आपकी देखभाल करूंगी और यही आपके पास रूकूंगी।

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कल्पना ने अप्रत्यक्ष रूप से जतिन को ताना दे दिया था, जतिन सब समझ गया था, पर वो संस्कारों के चलते, अपनी बड़ी बहन से कुछ नहीं बोला।

मां, चाय मिलेगी क्या? इतनी लंबी यात्रा करके घर के जंवाई और बेटी आये है, और चाय का एक कप तक नहीं मिला, बेटी के उलाहने शांति जी के कानों में गये तो उन्होंने चाय चढ़ा दी, उनके भी घुटने में दर्द रहता था, चिकित्सक ने ज्यादा खड़े होने को मना किया था, पर क्या करती, सबके लिए चाय लाकर अकेली ही भोजन की व्यवस्था में लग गई।

रात के आठ बजे करीब लीना ऑफिस से आई, सबसे औपचारिक बात की, भोजन करने लगी, शांति जी उससे कुछ ना कह सकी।

मां, मै तो आज ही जा रही हूं, आपकी बड़ी बहू तो काम के डर से आई नहीं और छोटी के अलग ही ठसक है, वो कभी सीधे मुंह बात ही नहीं करती है, अपना भोजन लिया और खाने लग गई, आखिर घर की बहूओं के कुछ कर्तव्य होते हैं या नहीं?

जतिन तू निधि को क्यों नहीं लाया? अभी मां को मदद मिल जाती, तुझे पता नहीं है कि अभी मां कितनी परेशान हैं।

जतिन सब सुनकर इस बार चुप नहीं रहता है, “जीजी आप भी तो मां की मदद करवा सकती हो, अभी तो पिताजी से आप यही कह रही थी कि, मैं तो यहां आपकी सेवा के लिए आई हूं, अब पिताजी इतने बीमार है, और मां के भी घुटने में दर्द है तो भोजन आप भी बना सकती थी??

जतिन की बातें सुनकर कल्पना सकपका गई, तू भी बोल लें, तेरी पत्नी तो हमें इज्जत देती नहीं है और तू भी सुना रहा है।

हां, मेरी पत्नी किसी को इज्जत नहीं देती, क्योंकि आप सबने उसे कभी इज्जत नहीं दी, उसके मन में गांठ पड़ गई है, आप सबके तानें, बातों और व्यवहार ने उसका कलेजा छलनी कर दिया है, आज वो भी अपने ससुराल आती, अगर आप सबका व्यवहार उसके प्रति थोड़ा भी अच्छा होता।

आप सबको याद है, जब वो विवाह करके घर में आई थी, आप सबने मिलकर उसका क्या हाल कर दिया था, मै नौकरी के कारण दूसरे शहर गया था, तब वो  गर्भवती थी, उसे भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।

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सुबह पांच बजे से लेकर वो रात तक अकेले घर का काम करती रहती थी, उसकी थकान, उसके पैरों की सूजन, उसके खाने-पीने की इच्छाओं की उपेक्षा कर दी जाती थी।

मां की तरफ मुंह करके पूछता है, “मां आप तो खुद तीन बच्चों को जन्म दे चुकी है, आपको नहीं पता था कि गर्भावस्था में एक होने वाली मां की क्या इच्छाएं होती है? 

उसे किन शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, उस वक्त आपके तानों से ज्यादा उसे आपके ममत्व और आपकी देखभाल की जरूरत थी, कभी आपने उसकी पसंद पूछकर उसे उसकी मर्जी का कुछ भोजन बनाकर खिलाया था?

और आप उम्मीद करते हो कि वो यहां आती और आपके बेटी जंवाई की खातिरदारी करती ?

ये सुनकर शांति जी ने अपनी नजरें झुका ली, जतिन इस पर भी चुप नहीं हुआ, कल्पना जीजी, आप भी तो मां थी, उस समय होने वाले दर्द को आप निधि का नाटक क्यों बताती थी, सिर्फ इसलिए कि वो एक बहू है और बहू का दर्द सिर्फ नाटक ही क्यों समझा जाता है, उसकी तकलीफों को नजरअंदाज क्यों कर दिया जाता है? आपका भाई कुछ महीने यहां नहीं था, तो आपको उसे बहन के समान स्नेह देना चाहिए था 

मेरा ये छोटा भाई, इसने तो मेरी पत्नी को नौकरानी ही समझ लिया था, गर्भावस्था में उससे बोलता है कि बाहर खड़ी कार साफ कर दों, जब निधि ने मना किया तो कहता है कि आप रोटी तो भरपेट खा लेते हो, कार साफ करने की ताकत नहीं है, गर्भावस्था के आठवें महीने में ये शब्द तीर की तरह चुभकर उसके मन की गांठ बन गये है।

विपिन, ऐसे वक्त में देवर भाभी की ताकत बनते हैं, उसके भाई की भूमिका निभाते हैं, और तूने अपनी भाभी को परेशान किया, तुझे घर की बड़ी बहू के क्या कर्तव्य है, ये तो याद है, पर भाभी के प्नति तेरे क्या कर्तव्य है, ये याद नहीं है, ये सुनकर विपिन ने भी अपनी आंखें झुका ली।

जतिन फिर भाई की पत्नी लीना से कहता है, “लीना देवरानी तो जेठानी की सबसे अच्छी सहेली होती है, उस वक्त तुमने भी अपनी भाभी का मन दुखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जब मै यहां नहीं था तो तुम्हें अपनी भाभी का ख्याल रखना चाहिए, पर तुम हमेशा से इस गुरूर में रही कि तुम बहुत अच्छा कमाती हो, उसकी तकलीफों को अनदेखा कर दिया, कभी किसी काम में सहयोग नहीं किया 

मैं आप सबसे यही कहना चाहता हूं कि परिवार का तात्पर्य यही होता है कि वो अच्छे और बुरे समय में एक-दूसरे के साथ रहें।

मै नौकरी करने बाहर गया था, मुझे वहां पूरी व्यवस्था करने में कुछ महीने लग गये, तब तक भी आपने मेरी पत्नी का ध्यान नहीं रखा, और आशा करते हो, वो आप सबकी सेवा करें।

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आप सब यह तो चाहते है कि निधि इधर आयें, घर का काम करें, हम सबकी सेवा करें, अपना कर्तव्य निभायें, लेकिन आप सबने अपने कर्तव्य कब निभाये?

घर की बहू तो हमेशा अपने कर्तव्य निभाती है, लेकिन ससुराल वालों को तो अपना कर्तव्य निभाने का अवसर कम ही मिलता है।

एक बहू जब गर्भावस्था में होती है, तब उसे सबसे ज्यादा, प्यार और देखभाल की आवश्यकता होती है,यही समय होता है, इस समय की गई देखभाल को और इस समय की गई उपेक्षा को वो जीवन भर नहीं भुलती है, अगर आप सब सेवा करवाने  के अधिकारी हो तो, देखभाल करने के लिए भी आगे आना चाहिए, वो घर की बहू है तो इसका मतलब यह नहीं है कि सब कुछ सहेगी, और कुछ ना कहेगी।

निधि अभी इसीलिए नहीं आई कि उसके मन में कुछ गांठें है, जो उसे यहां आने से रोकती है, वो बहुत कुछ जरूरी होता है, तभी आना पसंद करती हैं, ससुराल में प्यार और सम्मान मिले तो बहू भी बेटी बन जाती है, अगर प्यार और सम्मान नहीं मिलें, तो बहू घर की बहू भी नहीं रहती है।

अगले महीने गुड़िया का प्रथम जन्मदिवस है, उस अवसर पर आप सब आइयेगा, आपस में बैठकर मन की गांठें खोल लीजिएगा, कोई भी रिश्ता तभी फलता-फूलता है जब उसमें कोई गांठ ना हो, वरना वो मात्र एक औपचारिकता बनकर रह जाता है।

जतिन की बातें सुनकर सबको बुरा लगा, लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि जतिन कुछ गलत नहीं कह रहा है, निधि ससुराल वालों से कटी -कटी सी रहती है, आती है तो ज्यादा बात करना पसंद नहीं करती, और ना ही लंबे समय तक रूकती है। 

जतिन अपनी ओर से निधि के मन की बातें कहकर चला गया, उसे पूरा विश्वास था कि उसके परिवार वाले इस बारे में सोचेंगे और गुड़िया के जन्मदिन के शुभअवसर तक पिताजी ठीक हो जायेंगे और निधि के मन की गांठें भी खुल जायेगी, पूरा परिवार एक हो जायेगा।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना 

#मन की गांठ

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