मैंने अपना फर्ज निभाया – विधि जैन : Moral Stories in Hindi

श्यामलाल पढ़े-लिखे और समझदार इंसान थे ।

गांव में उनकी चलती थी किसी के घर कोई लड़ाई झगड़ा होता तो वह तुरंत ही सुलाझाते थे ।

श्यामलाल ने बी ई किया था 1970 में ।

और उनकी अच्छी खासी नौकरी शहर में लगी हुई थी…

 लेकिन उनका मन गांव में रमता था… 2 साल लगभग नौकरी शहर में की ।

और मां-बाप की याद आने लगी तो वापस गांव में आकर रहने लगे।

 गांव में उन्होंने एक सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर नौकरी की।

 उनकी शादी एक अनपढ़ लड़की से हुई पर उन्होंने कभी भी उसका मजाक नहीं उड़ाया ।

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उसका नाम समता था श्यामलाल समता से कहते थे।

 कि तुम पढ़ाना चाहती हो तो मैं तुम्हें पढ़ा सकता हूं… और उसने हां मी भर दी …समता ने आठवीं की परीक्षा दी।

 फिर लगातार पढ़ाई करती रही और 12वीं कक्षा में पहुंच गई

 श्यामलाल संता की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देते थे …स्कूल में भी बच्चों को बहुत अच्छे तरीके से पढ़ते थे ।

जब तक उन्हें याद नहीं होता जाता था ।

उनकी पढ़ाई हुए बच्चे आज कई शहरों में ऊंचे पद पर आसीन है ।

और बीच-बीच में उनसे मिलने आते हैं ….श्यामलाल की दो बेटियां हुई एक सीता और एक गीता सीता और गीता को भी उन्होंने बहुत अच्छे संस्कार दिए ।

गांव में रहकर उन्होंने कभी भी ट्यूशन नहीं लगाई…उन दोनों की परवरिश बहुत अच्छे से की।

 दोनों पढ़ाई में बहुत होशियार और हमेशा क्लास में अब्बल रहने वाली… लड़कियां थी पापा के कहे अनुसार उन्हें भी कई कॉन्पिटेटिव एग्जाम दिए ।

और क्लियर भी कर लिए ।

श्यामलाल बच्चों को शाम के समय ट्यूशन भी पढ़ा देते थे और वह भी फ्री में …कभी भी वह एक्स्ट्रा पैसा नहीं लेते थे ।

उनकी जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी समता भी उनका बहुत अच्छे से साथ देती थी।

 कुछ सालों में श्यामलाल के पापा की तबीयत बहुत खराब रहने लगी।

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 उन्हें कैंसर हो गया श्यामलाल ने बहुत उनकी सेवा की ।

समता ने भी उनकी बहुत सेवा की लेकिन ईश्वर की मर्जी थी ।

उन्हें बचा नहीं पाए और मां अकेली पड़ गई ।

मां का ध्यान श्यामलाल बहुत अच्छे से रखते थे कभी उन्हें कष्ट नहीं होता था ।

श्यामलाल की मां भी इतनी अच्छी थी कि कभी किसी काम में पीछे नहीं हटती थी ।

घर का सारा काम समता के साथ कर लेती थी ।

दोनों सास बहू की बहुत अच्छी जमती थी।

 सीता और गीता अब बड़ी हो चली थी दोनों के अच्छे रिश्ते आने लगे थे।

 दोनों सरकारी नौकरी पर थी दोनों के रिश्ते भी अच्छे आ रहे थे।

 पहले सीता की शादी हो गई फिर गीता की शादी हो गई।

 श्यामलाल ने सीता और गीता की शादी करके निश्चित हो गए ।

और स्कूल पर अच्छे से ध्यान देने लगे ।

उन्हें अपने जीवन में कभी भी कोई भी छुट्टी नहीं ली ।

चाहे घर में कितना इमरजेंसी काम हो किसी की तबीयत खराब हो… लेकिन वह अपने फर्जी से कभी भी पीछे नहीं हटते थे।

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 क्लास हमेशा रेगुलर लेते थे पूरे गांव वह फेमस थे।

 की पढ़ाई करना है तो श्यामलाल बाबू से करना चाहिए।

 इन जैसा शिक्षक कभी जीवन में नहीं मिला है ..एक-एक बच्चे को ध्यान देते थे घर में शादी विवाह दुख सुख में कभी छुट्टी मिले थे।

 अपनी क्लास लेने के लिए टाइम से जाते थे उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा था।

 एक दिन अचानक फोन आया कि गीता की तबीयत बहुत खराब हो गई।

 श्यामलाल ने कहा कि मेरी तो क्लासेस रहेंगी। 

मैं कैसे जाऊंगा तो उन्होंने समता को शहर भेज दिया…गीता की देखने के लिए गीता को ब्लीडिंग इतनी हो गई थी ….की उसे चार-चार बोतल खून देने के बाद भी वह नॉर्मल नहीं हो पा रही थी।

 सबने बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन गीता को कोई भी नहीं बचा सका… और उसने छोटी सी प्यारी सी बच्ची को जन्म देकर।

 और इस दुनिया से अलविदा कह दिया …इस समय श्यामलाल अपनी बेटी को देखने रात में निकले ।

और सुबह उसकी विदाई आर्थी तक साथ में रहे… और कुछ देर बाद वह गांव पहुंच गए।

 और गांव में लहर की तरह खबर फैल गई की श्याम लाल की बेटी नहीं रही है ।

सभी लोग श्यामलाल से मिलने आ गए लेकिन श्यामलाल अपनी साइकिल उठकर स्कूल चले गए।

 और आंसू पहुंचते हुए बच्चों को पटाया जब वहां पहुंचे तो एक शिक्षक ने कहा कि श्यामलाल आप क्यों आ गए हैं ।

सर आपको तो आना ही नहीं था आज आपकी बेटी की विदाई हुई है।

 आपका इतना बड़ा दिल कैसे हैं उन्होंने कहा कि मैं इतने सारे फर्ज निभाएं हैं ।

और आज मैं इन बच्चों का भविष्य कैसे बिगड़ सकता हूं मुझे तो अपना फर्ज निभाना ही था ।

अपना कर्तव्य निभाना था और आंसू पूछते हुए वह क्लास की ओर बढ़ गए।

 और बच्चों को पटाया मैं कहूंगी शायद दुनिया में श्यामलाल जैसा कोई शिक्षक नहीं हुआ होगा।

 उनके रिकॉर्ड में आज भी लिखा हुआ है कि उन्होंने कभी भी एक भी छुट्टी नहीं ली है ।

इसी तरह हमें भी अपने काम में अपने कर्तव्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए।

विधि जैन जबलपुर

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