” मेरी बेटियां ” – सीमा वर्मा

आज उनके घर पति की तेरहवीं थी। 

बेतरतीबी से पहनी हल्के हरे रंग की साड़ी आंखों में गहन उदासी उनकी चिर- परिचित सहज सौम्य रूप से बिल्कुल भी मेल नहीं खा रही थी।

उनके साथ- साथ उनकी तीन बेटियां उनकी छाया की तरह पीछे लगी हुई थीं।

उन्होंने मुझे आते देख होंठों पर जबरन मुस्कान फैला दीं

मैं भी अपनी दोनों बाहें फैला कर उनके तरफ बढ़ गई।

नजदीक आने पर वे मेरी फैली बांहों में भर्रा कर सिमट गईं और खासी दुखी आवाज में ,

” मुझे पता था आप जरूर आएंगी “

”  तुम्हारी बेटियों की हिम्मत पर दाद देनें तो आना ही था ? ” मैं ने सावधानी बरतते हुए कहा।

उनके साथ उनकी तीनों बेटियां क्रम से , ‘ नेहा, सुषमा और हेमा ‘ खड़ी थीं।

” बड़ी ही प्यारी बेटियां हैं तुम्हारी “

उन तीनों द्वारा सादर नमस्कार किए जाने के उपरांत मैं बोल उठी।

” प्यारी बच्चियों , हैट्स ऑफ यू !  




समाज में तुम तीनों ने नया उदाहरण बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है “

वे तीनों सिर्फ हल्के से मुस्कुरा कर रह गईं।

जो उनकी सहज-सुढृढ़ शिक्षा एवं संस्कार की परिचायक थीं।

वंदना जी एक सशक्त , सर्मपित और प्रबुद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। 

हम दोनों एक साथ कितने ही सामाजिक कार्यक्रमों में साथ – साथ  काम कर चुके थे।

 वे एक सहज, सौम्य और शांत महिला थीं। 

एक बार मैं उनकी र्कमठ कार्यशैली से प्रभावित हो कर उनसे पूछ बैठी थी ,

 ” घर और तीन- तीन बेटियों की जिम्मेदारी संभालती हुई आप इतना सब एक साथ कैसे कर लेती हो वंदना  ? “

मेरी बात सुन कर वंदना जी एकदम से झल्ला गयीं ,

” घर, कैसा घर , किसका घर ? तुम जानती नहीं मैं घर और पति द्वारा निष्कासित हूं ?

 अब तो यही बच्चियां मेरी सब कुछ एवं मेरी सुख – दुख की भागी हैं “




सास – ससुर और पति की सेवा करते हुए जब दस बर्षों में मैं तीन बेटियों की मां बन गई तो।

बेटियां पैदा करने का ठीकरा मेरे सिर पर फोड़ते हुए सबने मुझे 

 कोंचने की जिम्मेदारी उठा ली।

जबकि मैं कभी भी इस तरह के भेदभाव किए बिना उनका भरण पोषण खुद के बलबूते करती रही।

 लेकिन चौथी बार महज बेटे के लिए पुनः गर्भवती होना मुझे कत्तई मंजूर नहीं हुआ ” ।

वे बिना रुके एक ही सांस में सब कह गयी थीं।

” जबकि उन्होंने समाज में अपने घर- खानदान की मान मर्यादा, रीति-रिवाज के नाम पर मेरी बेटियों को कोसते हुए उन्हें सताना शुरू कर दिया “

मैं भी और कितना बर्दाश्त करती। 

” वंश वृद्धि के नाम महज पुत्र प्राप्ति के लिए पति को दूसरे विवाह के लिए उत्सुक होते देख मेरे द्वारा विरोध किए जाने पर मुझे घर से बाहर कर दिया गया “।

इतना कह कर उस दिन वे चुप हो गईं। उनके आंखों की उदासी और गहरी हो गई। 

हालांकि थोड़ी देर बाद ही सहज हो कर दार्शनिक अंदाज में बोल पड़ी थीं,

” मैडम जी! दुःख कोई बांटने की चीज नहीं है। 




हां!  जिंदगी में फिर दुबारा खड़े होने के लिए उन्हें जज्ब करना पड़ता है। तो मैंने सोचा क्यों नहीं ऐसा ही किया जाए।

यही सोच कर मैं इतना सब कुछ कर ले पाती हूं” 

” अब तो यही लड़कियां मेरी दो आंखें और एक नाक हैं।

 पता है ? दो इंजीनियरिंग और एक सबसे छोटी बी. फार्मा कर रही है “।

” इनके पिता को दूसरी शादी से और कोई औलाद ही नहीं नसीब हुई तो उन्हें अंतिम जल भी इन्हीं के हाथों नसीब होने वाला है “

कहती हुई शून्य में ताकती वे जड़वत हो गयीं।

लगता था उस दिन वंदना जी जिह्वा पर स्वयं सरस्वती विराजमान थीं।

अचानक से सुना।

उनके पति लंबी बीमारी से जूझते हुए मृत्यु शैय्या पर पड़े हैं।  घर वाले दूर- दराज के भतीजे पर आश्रित हो कर उसकी राह तक रहे थे।

तब वंदना जी अपनी तीनों लड़कियों के साथ आई थीं। मरणासन्न पति के मुख में बेटियों से गंगाजल डलवाया था। उस समय दूसरी पत्नी भी शायद उनकी ही राह तक रही थीं। 

वंदना जी को देखते ही उनके कंधे से लग फुसफुसाती हुई ,

 ” दीदी ! पिछला सब माफ करो,




इनका उद्धार इनकी जाई संतानों द्वारा करवा कर इन्हें मुक्त कर दो “

फिर ऐसा ही हुआ वंदना जी की तीनों सुशीला पुत्रियों ने उन्हें कांधा दे कर घाट तक पहुंचाया। सबसे बड़ी बिटिया नेहा ने मुखाग्नि दी।

उस दिन बेटे – बेटी का भेदभाव मिट चुका था।

वंदना जी अपनी बेटियों के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं करते हुए पहले अपने वजूद को संभाला फिर बेटियों को सक्षम बनाकर ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंचाया।

सीमा वर्मा / नोएडा

#भेदभाव आधारित ” मेरी बेटियां”

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