भेद-भाव  – डाॅ संजु झा

पत्नी के इंतजार में रवि आसमान  में उड़ते हुए  बादल और ढ़लते  सूरज की रश्मियों की लुका-छिपी का खेल देख रहा है।नौकरी की आपा-धापी की व्यस्तता से समय निकालकर पत्नी और बच्चों से मिलने आया है।बच्चे बाहर खेलने गए हैं और वह बेसब्री से अस्पताल से डाॅक्टर पत्नी रिचा का इंतजार कर रहा है।रवि रिचा की व्यस्तता को समझता है,परन्तु रिचा ने ही उसे फोन कर कहा था -” रवि !मैं कुछ देर में आ रही हूँ।शाम की चाय दोनों साथ ही पिऐंगे।”

इसी कारण रवि रिचा के आने की राह देख रहा है।कुछ ही देर में रिचा घर में दाखिल  होती है।नौकर को चाय बनाने को कह फ्रेश होने चली जाती है।फ्रेश होकर  रवि के पास सोफे पर बैठ जाती है।

रवि उससे पूछता है  -” आज देरी हो गई?कुछ परेशान भी लग रही हो?”

जबाव देते हुए रिचा कहती है-“रवि!हमारा समाज  कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले,परन्तु जातिवाद का भेद-भाव जो बीस साल पहले था,वो अभी भी कोढ़ की तरह समाज में विद्यमान है!”

रवि कहता है-“रिचा!किसी भी कुरीति को समाप्त होने में वर्षों लग जाते हैं।आज ऐसा क्या हो गया ,जिसके कारण तुम परेशान हो?”

रिचा हाथ में चाय का प्याला थामे हुए  रवि को बताती है कि आज एक ऑनर किलिंग का मामला अस्पताल  में आया।परिवारवालों ने ही दोनों को मारकर फेंक दिया।लड़के की मौत  तो तत्क्षण हो गई होगी,लड़की की साँसें चल रहीं थीं,परन्तु अत्यधिक रक्तस्राव के कारण लड़की को भी मैं बचा नहीं पाई। उसी में पुलिस आई थी।इन्हीं कारणों से आज देरी हो गई,कहते-कहते रिचा की आँखें भर जाती हैं।

रवि उसके कंधे को सहलाते हुए कहता है-” अब छोड़ों भी इन बातों को!”




रिचा-“रवि!कैसे भूल जाऊँ,बीस साल पहले के अपने अतीत को?वो भेद-भाव का लम्हा मेरे सम्मुख उपस्थित होकर आज भी मुझमें सिहरन पैदा कर गया।रवि रिचा का हाथ अपने हाथों में लेकर लेता है और  वह अतीत के गलियारों में विचरण करने लगती है।

रवि और रिचा दोनों एक ही हाई स्कूल  में पढ़ते थे।दोनों के गाँव अलग-अलग थे।दोनों पढ़ने में बहुत  ही कुशाग्र थे।एक बार  स्कूल के लड़के रिचा को छेड़कर परेशान कर रहे थे,उसी समय रवि उन लड़कों के साथ रिचा के कारण उलझ पड़ता है।उस दिन  से दोनों दोस्त  बन जाते हैं। संयोगवश दसवीं में अच्छे नंबरों से पास करने पर शहर में दोनों का दाखिला एक ही काॅलेज में हो जाता है।रवि की गणित में रूचि थी और रिचा को बायोलॉजी में।दोनों के चंचल युवा मन काॅलेज की दहलीज पर मन में नए सपनों के साथ कुछ डर ,भय,झिझक लिए  हुए पहुँचा।अनजान  शहर में जीवन के एक नए पड़ाव  में जाने की उत्सुकता से दोनों एक-दूसरे के करीब आने लगें,परन्तु दोनों अपने भविष्य के  सपनों के प्रति सजग थे।

 मेहनत के फलस्वरूप  रवि का इंजिनियरिंग काॅलेज में दाखिला हो गया और रिचा का मेडिकल काॅलेज में।अलग होते हुए  भी दोनों के मन में प्यार की कोपलें फूटने शुरु हो गईं थीं।बेहतर जिन्दगी  के सपनों के हरे-भरे पत्ते एक-दूसरे के मन में उगने लगें।दोनों ने एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार किया और अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर हो गए। उस समय मोबाइल की सुविधा नहीं थी।जब छुट्टियों में दोनों मिलते, तो आपस में ढ़ेर सारी बातें करते।दोनों को महसूस  होता कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।उनकी सोच और जिन्दगी के प्रति सकारात्मक रवैया एक-सा था।दोनों की सोच में कोई भेदभाव नहीं था।दोनों का प्यार  दिन-ब-दिन गहराता जा रहा था।




पढ़ाई  समाप्ति के बाद  दोनों ने एक साथ जिन्दगी गुजारने का फैसला किया।उस समय जातिवाद का भेदभाव  समाज को पूर्णतः जकड़े हुए। दोनों ने जैसे ही अपने परिवार में शादी की बात  की,वैसे ही दोनों के परिवार  में भूचाल उठ खड़ा हो गया।रवि कट्टरपंथी ब्राह्मण परिवार  से था और रिचा नीची जाति से।दोनों के गाँववालों ने इस शादी को  अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया।गाँववाले इस शादी पर खून-खराबे पर उतारु थे।रवि घर और समाज से डटकर सामना करने को तैयार  था,परन्तु अपने प्यार  को छोड़ने को तैयार नहीं था।इन परिस्थितियों से घबड़ाकर रिचा पूछती है-” रवि!अब हमारे प्यार का क्या होगा?”

रवि -” रिचा!तुम घबड़ाना नहीं।कुछ दिन गाँव का माहौल देखता हूँ,नहीं सँभलने पर हम कोर्ट  विवाह कर लेंगे।”

दोनों गले लगकर कुछ दिनों के लिए  एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।उन्हें भरोसा था कि गाँववाले उनके प्यार को मंजूरी दे देंगे,परन्तु हुआ इसका उल्टा।दोनों के गाँववाले एक-दूसरे के दुश्मन  बन बैठे।किसी भी हालत में दोनों की शादी नहीं होने देना चाहते थे।

आखिरकार हारकर दोनों ने कोर्ट-विवाह कर लिया।रवि के अटूट  प्रेम,विश्वास और सुलझे हुए  व्यक्तित्व  ने रिचा की जिन्दगी को खुशियों से भर दिया,परन्तु दोनों के मन में परिवार के आशीर्वाद की कसक बनी हुई थी।कुछ दिनों बाद  दोनों को महसूस हुआ कि गाँव का वातावरण  सामान्य हो चुका है,तो दोनों परिवार से आशीर्वाद लेने गाँव की ओर निकल गए। इधर गाँववालों ने  उनके आने की आहट सुन ली थी और गाँव में घुसने से पहले ही दोनों को मार देने की गुपचुप योजना बनाई  थी।




फोन की असुविधा के कारण रवि और रिचा को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।रास्ते में एक आदमी ने उन्हें आगाह करते हुए  वापस शहर लौटने को कहा,जिसे रवि की माँ ने भेजा था।आखिर  एक माँ अपने बच्चों को बलि होते हुए  कैसे देख सकती थी!परन्तु तब तक काफी देर हो चुकी थी।गाँववाले झुण्ड में लाठी,तलवार, भाला,फरसा लिए  हुए आगे बढ़ रहे थे।रवि और रिचा चारों तरफ से घिर चुके थे।उन्हें अपनी जान बचाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।रात का सन्नाटा था और सुनसान रास्ते।  बुद्धिमत्ता दिखाते हुए  दोनों पहले ही  बस से उतरकर दूर-दूर तक फैले मक्के के खेत के अन्दर घुस गए। दोनों के शरीर भय से काँप रहे थे।दोनों अपनी साँसों के उतार-चढ़ाव  को काबू में कर दम साधकर बैठे थे।आज अँधेरी रात उनके लिए  वरदान साबित  हो रही थी।रह-रहकर  कुत्ते की भौंकने की आवाज  और पक्षियों की फड़फड़ाहट  उनके शरीर का मानो रक्त जमाने के लिए काफी था।दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे ,बस भगवान  से प्रार्थना कर रहे थे।एकसमय तो उन्हें महसूस  हुआ  कि गाँववाले टॉर्च की रोशनी डालते हुए  और गालियाँ बकते हुए उनके काफी करीब आ गए।उनकी तो बस जान ही निकलनेवाली थी,तभी किसी ग्रामीण  ने कहा -” बाहर ही खोजो।शहरी बच्चे खेतों में कहाँ घुसेंगे?”

आखिरकार  गाँववाले रवि और रिचा को न पाकर वापस लौट  गए। दोनों रातभर खेतों में ही छिपे रहे।वह रात उनकी जिन्दगी की सबसे भयावह और लम्बी रात  प्रतीत हो रही थी।आखिर उषाकाल की लालिमा क्षितिज  पर फैलने लगी पक्षियों के कर्णप्रिय कलरव सुनाई  देने लगें,तो दोनों खेतों से निकलकर  शहर वापस आ गए। दोनों के मन में समाज का भय इस कदर समा चुका था कि उन्होंने अपने शहर से बहुत दूर दिल्ली आकर नौकरी करने का फैसला लिया।इस बीच दोनों दो बच्चों के माता-पिता भी बन गए। परिवारवालों ने उन्हें माफ भी कर दिया,परन्तु इन बीस सालों में उस भयंकर  घटना का खौफ जो थोड़ा धूमिल हो चला था,आज की घटना से एक बार पुनः आँखों के समक्ष आ खड़ा हुआ और वह फफककर रो पड़ी।रवि उसकी आँसुओं को पोंछते हुए कहता है-” रिचा!हमारे समाज में ऊँच-नीच,जाति-पाॅति ,अमीर-गरीब का भेदभाव बहुत हद तक कम हुआ है,परन्तु अभी भी इस  कुरीति को मिटाने के लिए समाज को लम्बे रास्ते तय करने हैं।”

रिचा प्रेमभरी नजरों से रवि की ओर देखती है और उसके गले लग जाती है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)।

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