मैं  ही क्यों ? – पूनम अरोड़ा

वैदिक मैसेज कर रहा था रिमि को ” मुझे पीहू के साथ अचानक रेस्ट्रां में  देखकर अपने मन में  मेरे  उसके साथ किसी रिश्ते की काल्पनिक  अवधारणा  बना कर तुम बिना कुछ  पूछे , बिना कहे एक मिनट में सब  कुछ खत्म करके मायके चली गई । मैंने कितनी बार तुमसे  बात करने की कोशिश  की कि वो मेरी क्लाइंट थी दोस्त नहीं  लेकिन तुमने यह कहकर कि “तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है” ,मुझसे बात करने की कोशिश  नहीं  की ।यह बात तो मैं  भी कह सकता हूँ  कि उसके और मेरे बीच  ऐसी बात कोई  नहीं  है  , यह बार बार कहने के बावजूद इस बात का विश्वास न करके तुमने मेरा भी तो विश्वास तोड़ा है।

आज समझ में  आ रहा है कि कई बार गलतफहमी “गलती करने” से भी ज्यादा विनाशक भयंकर हो सकती है।गलती तो सिर्फ दिल की दीवार में  दरार डालती है लेकिन “गलतफहमी”  उसे दीमक की तरह खोखला कर देती है । अपनी गलती न होते हुए भी सिर्फ इसलिए कि तुम मुझे गलत समझ रही थी मैंने तुमसे बार बार बात करने की कोशिश की लेकिन तुमने हमेशा  मेरी उपेक्षा ही  की।एक बार सोचो कि अगर मैं  गलत होता तो तुमसे आँखे चुराता न कि बार बार तुमसे बात करके सब ठीक करने की कोशिश करता।




मैंने तो बिना गलती के माफी माँगने में भी  कोई   पुरूषोचित अहं नहीं  दिखाया लेकिन तुमने  रिश्तों  की परवाह न करके ईगो  को ही महत्व दिया ।जब सम्बंधो में अभिमान का प्रवेश हो जाता है तो वह रिश्ता पहले किरचता है ,फिर टूटता है और फिर चूर चूर कर देता है चाहे वो दोस्ती  का माधुर्य हो ,खून के रिश्तों  की मजबूत नींव  हो या पति पत्नी के बीच का संवेदनशील और चिरकालिक प्रणय संबंध – विश्वास । वो तो सुना ही होगा कि  Ego के तीन शब्द  Relationship  के 12 शब्दों  को तबाह कर देते हैं । मैंने  तुमको मैसेज कर के बाहर मिलने को बुलाया  तुमने उसका जवाब नकारात्मक  में दिया ।
मैंने  फोन  पर बात करने की कोशिश  की तो  तुमने आक्षेप प्रत्यारोपण के तीक्ष्ण  वार से मुझे विदीर्ण  कर दिया  फिर भी मुझे आशा थी कि जल्दी  ही सब ठीक हो जाएगा।मेरा यह मानना था कि हमारा रिश्ता ऐसा नाजुक  तो नहीं  है  कि एक प्रतिकूल हवा के झोंके  से बिखर कर ढह जाए  लेकिन  शायद यह भ्रम था मेरा । उस दिन अपने बीमार होने का मैसेज करने पर भी जब तुम नहीं आई  तब से मेरा मन  खंडित हो गया है । रिश्ते कायम रखने के लिए दोनों  का प्रयास जरूरी है । एक व्यक्ति  कब तक अपने पक्ष में  तर्क  देता रहेगा । ताली एक हाथ से नहीं बजती ,एक हाथ से सिर्फ थप्पड़  ही लगता है । दोनों  में  से  कभी भी किसी की गलती हो साॅरी मैने ही कहा है ।हर बार मैं  ही क्यों?

 मैं  थक गया हूँ  अपनी बेगुनाही का सबूत देते देते ।आखिर क्यों करूँ अब ये सब ? जैसे मुझे तुम्हारी  जरूरत और रिश्ते की नजाकत की वैल्यू है  ऐसे ही तुम्हें  भी मेरे महत्व का एहसास हो इसलिए अब से मैं  अपनी तरफ  से समझौते का कोई प्रयास नहीं करूँगा। तुम रहो अपनी  गलतफहमियों  के साथ ,मैं अपने विश्वास और सच्चाई  के साथ हूँ। बेशक हार हो या जीत  लेकिन  कम से कम  मुझे यह मलाल तो नहीं  रहेगा कि मैंने  रिश्ता बचाने की कोशिश नहीं  की। अब जब तुम्हें  मेरे चरित्र  पर  विश्वास और मेरे वजूद का  एहसास हो तब आ जाना ‘”अपने घर”  ।

#अभिमान 

पूनम अरोड़ा

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