एक शादी ऐसी भी – सुषमा यादव

किसी शादी में चले जाएं तो लोग इतना दिखावा करते हैं,हम हैरान रह जाते हैं। उनके पास इतना पैसा नहीं होता है कि वो अमीरों या उच्च मध्यम वर्गीय लोगों जैसे पानी की तरह बेतहाशा पैसा शादी में बहाएं। पर कुछ लोग दिखावे में आकर खूब धूमधाम से शादी करेंगे। वो भला किसी से क्यों कम रहें। यहां तक कि सबसे कर्ज लेकर भी अपने शौक पूरे करते हैं। चाहे इसके लिए बाद में उन्हें कितनी ही परेशानियां और अपमान झेलना पड़े। मैंने कितने ही लोगों को देखा है। आतिशबाजी, मेहमाननवाजी, रिटर्न गिफ्ट और दान दहेज देने में अपनी औकात से भी ज्यादा पैर पसारने की। दिखावा में लोग अपना सुख,चैन,नींद, खुशी सब गंवा रहे हैं।

इन सबसे अलग मैं एक ऐसी शादी के बारे में जिक्र कर रहीं हूं, जो समाज और हमारे लिए एक मिसाल बन गई है।

मधू की बेटी ऋतु की शादी हो रही थी। लड़का एक कंपनी में मैनेजर था, ऋतु भी बहुत अच्छी पोस्ट पर थी। ऋतु के पापा नहीं थे, सबकुछ मां और छोटी बहन ही शादी की व्यवस्था कर रहीं थीं।

एक बहुत बड़ा मैरिज गार्डन बुक किया गया था। बारात आने वाली थी। आरती, अगवानी के लिए सब तैयार,इतने में शोर मचा,बारात आ गई,बारात आ गई। मधु के साथ साथ सब हैरान रह गए, ये कैसी बारात है,ना बैंड बाजा,ना आतिशबाज़ी और ना ही नाचने,शोर मचाने की आवाजें।




कुछ लोगों ने आगे बढ़कर पूछा, इतनी शांत बारात कैसे ? क्या कोई बात हो गई है? 

दूल्हे के पिता ने कहा, नहीं जी, कोई बात नहीं है। दरअसल हम लोगों को ये सब फिजूल खर्ची लगती है, शादी में पता नहीं क्यों लोग इतना दिखावा करते हैं, तमाम तरह के ताम झाम करते हैं। यहां इतना प्रदूषण वैसे भी बहुत है,हम ये सब कर के क्यों और प्रदूषण बढ़ाएं। 

ये सुनकर सब उनकी तारीफ़ करने लगे। सबने फूल माला, पहना कर, आरती,टीका करके खूब स्वागत, सत्कार किया।

खुशी के माहौल में पंडित जी के मंत्रोच्चार के साथ दूल्हे, दुल्हन ने सात फेरे लिए।

सब रीति रिवाज समाप्त होने के बाद दूल्हा और उसके माता-पिता उदास बैठी मधु के पास आये। दूल्हे ने मधु का हाथ थाम कर कहा,, मम्मी जी,आप क्यों उदास और दुःखी हो,हम ऋतु को बहुत ही अच्छे से रखेंगे,समधी समधन ने कहा,अब ये हमारी बेटी है,आपको शिकायत का एक भी मौका नहीं देंगे। अब पापा, मम्मी की कमी हम दूर कर देंगे। ऋतु को हमारे घर में पूरा सम्मान मिलेगा। आप बिल्कुल चिंता मत करिए।

मधु की आंखें छलछला आईं, मैं आप पर पूरा भरोसा करतीं हूं। 

पर आपने दहेज में रुपया पैसा, ज़ेवर कुछ नहीं लिया । यहां का सब इंतज़ाम भी आप ही देख रहें हैं, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। 




उन सबने एक साथ कहा, लेकिन हमें किस बात की कमी है। दूल्हे ने कहा, मम्मी, जो भी हमें चाहिए,हम अपने ही मेहनत से लेंगे, हमें बस आपकी खुशियां चाहिए।

फिर भी विदाई के समय मधु ने ऋतू के परिवार वालों को सोने की चेन पहनाई,एक बड़ी धनराशि का चेक पकड़ाया, थोड़ी देर बाद मधु के हाथों में चैन सहित चेक पकड़ा दिया गया ये कहकर,कि इसे आप अपनी छोटी बेटी की शादी के लिए और अपने लिए रखिए, पता नहीं कब आपको स्वास्थ्य की कोई समस्या हो जाए। आपके साथ दो दो बुजुर्ग हैं। हमें तो बस आपका आशीर्वाद ही चाहिए।

बारात और बिटिया की विदाई के बाद जब मधु और ऋतु सबका पेमेंट देने गईं तो पता चला कि पेमेंट तो हो गया है, आश्चर्य से मधु ने पूछा,, किसने किया। तो रजिस्टर खोल कर नाम दिखाया, दूल्हे के पिता का।

इस तरह उन्होंने पूरे मैरिज गार्डन का,खाने का और जिस होटल में बरातियों को जनवासा दिया गया था,सबका बिल चुकता करके सबको एक सुखद अहसास कराकर, आश्चर्य में डाल कर बाराती एक मिसाल बन कर फ्लाइट से जा चुके थे।

ये मेरे जीवन की सच्ची कहानी है।

इतने साल बीत गए, बेटी, दामाद ने घर,कार लोन से खरीदा, मेरी प्रापर्टी बिकने पर मैंने उन्हें फिर कुछ देना चाहा, नातिन,नाती के लिए चेन लेकर गई पर सब वापस कर दिया।आप अपने भविष्य के लिए रखिए। 

काश, ये दिखावटी समाज इनसे कुछ सबक ले सके।

#दिखावा

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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