धोखा – गणेश पुरोहित

     मैं गांव में रह कर राजनीति करता रहा और सुधीर शहर जा कर एक बड़े राजनेता का शार्गिद बन गया। राजनीति में आगे बढ़ने के गुर उसे आगये। मैं गांव की राजनीति करते- करते सिर्फ सरपंच बन कर रह गया और वह एमएलए, सांसद और मंत्री बन गया। उसके पास तिकड़मी धूर्तता और बेईमानी से इतना पैसा आगया कि हमारी आंखें फटी की फटी रह गई। यह सब किस्मत का खेल हैं, सोच कर मैं चुप्पी साधे रहा, क्योंकि हम जानते हैं, चाह कर भी इन लोगों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता। ये लोग राजनीति की शतरंज की हर चाल को बहुत सोच समझ कर चलते हैं। 

     हमारे गांव में एक विधवा स्त्री रहती थी, जिसका नाम प्रभा था।  उसकी बचपन में शादी हो गई थी। श्वसुराल कभी गई नहीं, क्योंकि शादी के कुछ वर्षों बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई और वह बाल विधवा हो गई। जवानी की दहलीज पर पांव रखते ही उसे जीवन में कई अनचाहे कष्ट उठाने पड़े। हालात ने उसे तेज तर्रार बना दिया। उसका आक्रामक स्वभाव उसे राजनीति में खींच लाया और हम लोग उसका उपयोग पार्टी प्रचार के लिए करने लगे। उसे महिला मोर्चे का अध्यक्ष बना दिया। गावं की औरतों को कैसे अपने पक्ष में वोट डलवाये जा सकते हैं, इस बारें में वह निपुण हो गई।

      हमारे संसदीय क्षेत्र का प्रत्याशी घोषित होने के बाद सुधीर चुनाव प्रचार के लिए हमारे गांव आया। उसकी नज़र प्रभा पर पड़ी और उसे अपनी चुनाव प्रचार टीम में सम्मिलित कर दिया। अक्सर वह उसके साथ दौरे पर जाने लगी। उसके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था भी सुधीर  कर देता था। बड़े व्यक्ति के प्रोत्साहन और सहयोग से वह और मुखर हो गई। महिलाओ की सभाओं में वह भाषणा भी देने लगी। सुधीर के साथ रहने से उसमें इतना साहस आ गया कि उसने अपने परिवार, जाति समाज की परवाह करना भी छोड़ दिया। एक दिन सुधीर किसी शहर के गेस्ट हाऊस में ठहरा हुआ था। उसकी टीम के साथियों के लिए उसने हॉल में सोने की व्यवस्था की थी, पर महिला होने के कारण प्रभा को अलग कमरा दिला दिया। आधी रात के बाद सुधीर ने प्रभा का दरवाज खटखटाया। निश्चिंत हो कर उसने दरवाज़ा खोल दिया। सोचा था- कोई काम होगा। परन्तु ऐसा नहीं था, सुधीर नशे में था और उसने प्रभा के साथ शारीरिक संबंध बनाने की पहल की। उसने पहले तो इंकार किया, पर बाद में समर्पण कर दिया। घुट-घुट कर अभिशापित जीवन जीने के बजाय, उसे लगा कि एक पुरुष की संगत में जीने से उसके जीवन की रंगत बदल जायेगी। 




     पर यह उसका भ्रम निकला। पुरुष हमेशा स्त्री की मजबूरी का लाभ उसके शारीरिक शोषण के लिए उठाता है। मतलब निकलने के बाद उसे उठा कर इस तरह फैंक देता है, जैसे दूध में से मक्खी। सुधीर चुनाव जीत गया और केन्द्रीय मंत्रीमण्ड़ल में शामिल हो गया। तीन-चार महीने तक प्रभा का भरपूर शारीरिक शोषण करने के बाद उसकी उपेक्षा करने लगा। एक दिन प्रभा उसके सरकारी बंगले पर  जा धमकी। पहले तो उसे मंत्री महोदय की व्यस्तता के कारण मिलने की अनुमति नहीं दी, पर काफी जोर डालने पर दूसरे दिन रात को दस बजे उसे मिलने की अनुमति मिली। मंत्री महोदय उसे देखकर अपने रंग में आ गये और वह क्रोध में आवेशित हो कर बोली, “ क्या अब मेरी इतनी औकात भी नहीं बची कि मैं आपके घर में प्रवेश कर सकूं ?”

“ देखो, मेरा सेकेट्री नया है, उसे तुम्हारे बारें में मालूम नहीं था, इसलिए रोक दिया, पर भविष्य में ऐसा नहीं होगा, मै उसे कह दूंगा… अब गुस्सा थूंको और शांति से सोफे पर बैठ जाओ।…..एक बात और सुन लो, अब मेरे और तुम्हारे बीच वह सब कुछ नहीं होगा, जो अब तक हुआ था, क्योंकि हम लोग सार्वजनिक जीवन जीते हैं, हमारे एक-एक काम पर लोगों की पैनी नज़र रहती है। ” 

     “ पर जो हो गया, उसका क्या करुं….मैं आपके बच्चे की मां बनने वाली हूं ….मैं अब गांव में नहीं रह सकती….यहीं कहीं मेरे रहने की व्यवस्था करो और आने वाले बच्चे की जिम्मेदारी लो ।”  

     “ बस जरा सी बात और इतना घबरा गई,” उन्होंने मुस्कराते हुए धीरे से बात ऐसे कही जैसे सामान्य घटना हो। कुछ देर मौन रहने के बाद वे धीरे से बोले- “ बच्चे को मै खत्म करवा दूंगा और तुम्हें गांव का सरपंच बनवा दूंगा…राजनीति में जमी रहो…बहुत आगे जाओगी…..”




     “ मतलब आप मुझसे पिंड़ छुड़वाना चाहते हैं और यह कहना चाहते हैं कि मैं तो समय बिताने के लिए एक खिलौना थी….मजा लिया और फेंक दिया।…..पर मैं ऐसा नहीं कर सकती…मैं उस बच्चे को जन्म दूंगी और उसकी परवरिश करुंगी…बुढ़ापे में वह बच्चा मेरा सहारा बनेगा।…..मेरी आपसे एक ही विनती है- मैं पत्नी का दर्जा नहीं चाहती….रखैल बन कर भी रह लूंगी, पर मेरे रहने की व्यवस्था कर दो…गुजारा करने के लिए मैं शहर में कोई काम कर लूंगी और ज़िंदगी जैसे-तैसे गुजार लूंगी।” 

     “ क्यों अपनी ज़िंदगी एक बच्चे के लिए कुर्बान करने की जिद कर रही हो…..अभी तो जवान हो, तुम्हारे शरीर से खेलने वाले और खिलाड़ी मिल जायेंगे… हो सकता हैं, तुमसे शादी कर लें और……”

     “ आपके कहने का मतलब मैं वैश्यावृति करुं और पेट भरुं।….. आपके मेरे बीच जो रिश्ता बना उसे समाप्त समझूं ” …कहते-कहते वह आवेश में आ गई और फफक पड़ी।

     वे कुछ नहीं बोले। गर्दन झुकाये बैठे रहे। वह डबडबाई आंखों से उन्हें देखती रही। उसे उस चेहरे के पीछे एक शैतान का चेहरा दिखाई दे रहा था, जो पूर्णतया निष्ठुर और निर्मम था। उसके मन में न दया थी और न ही एक अबला स्त्री के प्रति सहानुभूति।

     जब बहुत देर तक उसकी बात का कोई जवाब नहीं मिला और भर्राये गले से फिर प्रश्न पूछा- “ मेरे प्रश्न का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं आप ?”

     “ मुझे तुम्हारी पवित्रता पर भरोसा नहीं है…पता नहीं कितने लोगों के साथ तुमने रिश्ते बनाये होंगें….और अब मेरी प्रतिष्ठा का नाज़ायज फायदा उठाने की कोशिश कर रही हो…..मैंने तुम्हारे साथ जो कुछ किया, उसकी क़ीमत ले कर यहां से जा सकती हो…”.उन्होंने यह बात कुछ कठोर शब्दों में कही थी। 




     वह क्रोध से आवेशित हो कर खड़ी हो गई और लगभग चीखते हुए बोली, “ सुधीर काम्बले, तुम गिरे हुए नीच इंसान हो…! …. मैं यह तो जानती थी कि राजनीति में झूठ, प्रपंच और धोखा तो चलता है, पर वह सब वोट और सत्ता पाने के लिए होता है, किन्तु निजी जीवन में कोर्इ किसी स्त्री के शरीर से खेल कर ऐसा छल कर सकता है…यह मुझे आज मालूम पड़ा है……पर याद रखो, मैं तुम्हें जीने नहीं दूंगी…….मैं मर जाऊंगी पर इतना बदनाम कर दूंगी कि तुम्हारी इस चमकती दुनियां में जीना मुश्किल हो जायेगा।…..सात दिन का समय दे रही हूं, इन सात दिनों में मुझे यदि जवाब नहीं मिला तो मैं दुनिया के सामने तुम्हारी इज्जत तार-तार कर दूंगी।” अपनी बात समाप्त कर वह तेजी से बाहर निकल गई।

      प्रभा की कहानी सुनाता-सुनाता  विनोद मौन हो गया चुपचाप नीचे देखता हुआ कुछ सोचने लगा। 

       “ आपने यह सारी जानकारी कहां से जुटाई..?..और कहानी का अंत तो आपने किया ही नहीं और मौन हो गये।”

     “ उस स्त्री की कहानी का दुखान्त सुनाते- सुनाते मैं यकायक विचलित हो गया….दरअसल मैं भी गुनहगार हूं, क्योंकि मैं उसके साथ छल नहीं करता तो उस बेचारी की दुखद मृत्यु नहीं होती।” कुछ देर मौन रहने के बाद फिर उसने अपनी बात जारी रखी- “ काम्बले से मिलने के तीन-चार दिन बाद प्रभा मेरे घर आई थी। वह मेरी पार्टी की कार्यकर्ता थी। मैं ही वह शख्स हूं, जिसने उसे राजनीति की एबीसीड़ी सीखाई और उस क्षेत्र में उतारा। उसने रोते हुए मुझे सारी व्यथा- कथा सुना दी। उसने यह भी बताया कि सुधीर का बनावटी  सौम्य और मधुर स्वभाव को समझ नहीं पाई और धोखा खा गई। परन्तु मेरे मन में आशंका तो शुरु से थी, इसलिए मैंने उस महंगे फोन से, जो उसने मुझे गिफ्ट में दिया था, वे सारी  बातें रिकार्ड़ कर ली, जो हमारे बीच एकांत में होती थी। ….जब भी वह मेरे पास आता, मैं फोन का केमरा ऑन करके रख लेती। केमरा ऐसी जगह पर रखती, जिससे उसे भनक नहीं पड़ती।….मैं सच कह रही हूं विनोद, उसने मुझे गम्भीरता से नहीं लिया तो मैं उसे दुनिया के समक्ष बेनकाब कर दूंगी…….और फिर आत्महत्या कर अपनी जान दे दूंगी। कहते-कहते वह फूट-फूट कर रो पड़ी। ” 




     इस घटना के दो दिन बाद ही उसका शव एक कुअे में तेरता हुआ मिला। मैं भी घटना स्थल पर पुलिस के साथ पहुंचा। उसका पोस्टमार्टम हुआ, जिससे उसके गर्भवती होने की पुष्टि हुई। लोगों को आत्महत्या करने का कारण समझ में आ गया। परन्तु मेरा माथा ठनका और मुझे संदेह हो गया कि यह सुधीर काम्बले की ही कोई घटिया हरकत है। मैं उसके घर गया और उसके पिता से उसका मोबाइल ले लिया। उस फोन में मुझे वह सारा मसाला मिल गया, जिसके आधार पर प्रभा काम्बले को समाज के समक्ष नंगा करना चाहती थी, परन्तु वह ऐसा करती उसके पहले ही इस दुनिया से कूच कर गई।

     सुधीर जैसा नौटंकीबाज मैंने आज तक नहीं देखा। वह घटना के दूसरे ही दिन अपनी पार्टी की एक कार्यकर्ता की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने गांव आ धमका। जब मैने उससे एकांत में मिलने का समय मांगा तो वह चैांक गया और कुछ सम्भलते हुए बोला,  क्या बात करनी हैं, यहीं कर लेते हैं।”… जब मैंने इशारे ही इशारे में उसे समझा दिया कि बात ऐसी नहीं है, जिसे सार्वजनिक किया जाय। मेरा जवाब सुन कर  थोड़ा सोच में पड़ गया और फिर तपाक से बोला, “ चलो, तुम्हारे ही घर चल कर बात करते हैं।” 

     वह मेरे घर आ गया। मैंने कमरे का दरवाज़ा भीतर से बंद कर दिया और धीरे से प्रश्न पूछा, “ तो प्रभा की हत्या तुमने करवाई है ? ” 

     मेरा प्रश्न सुनते ही वह आवेश में आ गया और ऊंची आवाज में बोला, “ क्या बकवास कर रहे हो तुम !”

     “ ज्यादा ड्रामा मत करो…मुझे प्रभा ने सारी बातें बता दी हैं…उसके पास मैंने ऐसे प्रमाण भी देखें हैं, जिससे वह तुम्हें नंगा कर सकती थी, पर उसके पहले ही तुमने उसे रास्ते से हटा दिया !”

     उसकी बात सुन कर वह ठंडा पड़ गया और धीमे से बोला, “ इसके सिवाय मेरे पास कोई चारा ही नहीं था, उसका मुंह बंद करवाना जरुरी था, इसलिए…..”




    “ छोड़ो, मेरा मुंह बंद करवाने के लिए कितना दोगे ?” मैं तुरन्त काम की बात पर आ गया था। बहुत दिनों बाद मेरे नियंत्रण में एक मोटा मुर्गा आया था। 

“ पर यह बात भी ध्यान से सुन लो कि मेरी हत्या करवाना इतना आसान  नहीं होगा।” मैंने उसे चेतावनी भरे लहजे में कहा था। 

     “ मैंने उसकी हत्या नहीं की…हत्या करवाई है और उसका कोई प्रमाण तुम्हारे पास नहीं है।…मैंने किसी को सुपारी दी थी। उस व्यक्ति ने दो आदमी गांव में भेजे थे। वे उसकी रेकी करते रहे। एक दिन खेत में उसे अकेला देख कर उसके मुंह पर कपड़ा बांध दिया और उठा कर पास वाले कुअे में डाल दिया। …जिन्होंने यह कृत्य किया वे मुझे नहीं जानते और जिसने यह हत्या करवाई उस व्यक्ति को वे दोनो हत्यारे नहीं जानते। …सिर्फ पैसे के लेन-देन पर सारा खेल खेला गया… तुम्हें यह भी मालूम हैं, ऐसे केस अदालतों में नहीं टिकते…..।”

गणेश पुरोहितस्वरचित मौलिक रचना

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