इतना अभिमान सही नहीं…. – रश्मि प्रकाश

“ बस भी करो रितेश … कब तक ऐसे सिर झुकाकर सबकी बातें सुनते रहोगे।” राशि ने अपने छोटे भाई का हाथ पकड़कर धीरे से कहा 

वही किनारे पर सुमिता जी खड़ी अपनी बेटी का रिश्ता टूटता देख घबरा रही थी 

लड़के वाले दल बल के साथ लड़की देखने आए थे या चढ़ाई करने ये समझ ही नहीं आ रहा था… राशि के इस तरह कहते लड़के वालेचल दिए सुमिता जी और रितेश हाथ जोड़कर किनारे पर खड़े रह गए

सबके चले जाने के बाद सुमिता जी राशि का हाथ पकड़कर कमरे में ले गई और कमरा बंद कर ग़ुस्सा करते हुए बोली,“ हर बार मुँहखोलना ज़रूरी होता है… सत्यवादी हरिश्चंद्र बनने का बड़ा शौक़ चढ़ा है तुम्हें….. अरे बहुत बार परिस्थिति देख मुँह बंद नहीं कर सकती……जानती है पिता नहीं है जो करना है वो तेरे भाई रितेश की ज़िम्मेदारी है अब और तुम हो कि सब रिश्ते को ऐसे ही मना करती रही तो हो गया ब्याह !”

सुमिता जी का तमतमाया चेहरा देख राशि डर भी रही थी पर भीतर ही भीतर खुश हो रही थी कि ऐसे अभिमानी परिवार से रिश्ता जुड़ने सेबच गया ।

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई… “ माँ दरवाज़ा खोलो … हरीश चाचा बुला रहे हैं ।”

सुमिता जी दरवाज़ा खोल कर बाहर आई और हरीश जी के सामने हाथ जोड़ते हुए बोली,“ माफ़ कीजिएगा भाई साहब आपने इतना अच्छा रिश्ता बताया और इस राशि ने सब गुड़ गोबर कर दिया ।”

“ भाभी जी राशि बिटिया ने जो किया सही ही किया….वीरेन मेरा जिगरी दोस्त था… उसके नहीं रहने पर आप सब से पारिवारिक संबंध होने के कारण बिटिया की शादी का सोच कर मुझे जो रिश्ता पता चला मैं उन्हें ले कर आ गया पर उस लड़के की माता जी का कहने का तरीक़ा मुझे भी जरा ना पसंद आया… अगर राशि बिटिया का ब्याह उस घर में हो जाता तो वो उन अभिमानियों के घर घुट घुट कर मर जाती….वो दो बेटे की माँ होने का इतना दंभ भर रही थी कि ना आपसे सही से बात कर रही थी ना रितेश से…लोग परिस्थिति देख कर भी नरम हो जाते हैं पर वो तो अपने सरकारी अफ़सर बेटे के लिए जो माँग कर रही थी वो कहीं से भी जायज़ नहीं था …. मुझे भी अंदाज़ा नहीं था कि वो एक पूरी लिस्ट लेकर रितेश के सामने खड़े हो जाएँगे… बेचारा बच्चा बहन को अच्छा घर देने के चक्कर में उनकी बातें सुने जा रहा था …अरे जितना हो सकता उतना तो सब अपनी बेटी के लिए करते ही है ।” कहते हुए हरीश जी माफ़ी में हाथ जोड़ निकल गए 




लगभग सप्ताह भर बाद एक दिन हरीश जी फिर सुमिता जी से मिलने आए और बोले,“ भाभी जी उस दिन जो लड़के वाले आए थे उसमेंलड़के की एक दूर की चाची भी आई थी याद होगा… उन्होंने राशि के साथ अपने बेटे के रिश्ते की बात कही है…. साथ ही उनकी एकशर्त यही है की आप जो चाहें सोच समझ कर कह सकते हैं पर वो राशि की मर्ज़ी ज़रूर जानना चाहेंगी क्योंकि उस दिन उन्हें राशि काअपने परिवार के प्रति सजग होकर बोलना बहुत भा गया था…बाहर निकल कर सब चर्चा कर रहे थे बड़ा अहंकार है लड़की में इतनाअभिमान लड़की में सही नहीं है पर मुझे वो बहुत स्वाभिमानी लगी और मुझे अपने बेटे के लिए ऐसी लड़की ही चाहिए…. अगर आपकीहाँ हो तो लड़का लड़की एक बार मिल कर एक दूसरे को देख समझ ले फिर आगे की बात की जाएगी ।”

“ उनके ही रिश्तेदारों में ये शादी की बात सही है भाई साहब…. कहीं कुछ ऊँच नीच ना हो जाए?” सुमिता जी घबराते हुए बोली 

” माँ एक बार बात कर के देख सकते है उसमें हर्ज ही क्या है?” रितेश ने कहा

“ रितेश सही कह रहा है भाभी जी…एक ही परिवार में सब तरह के लोग होते हैं उनका एक बेटा एक बेटी है… परिवार बड़ा नहीं है ना हीवो सब एक घर में रहते हैं एक ही शहर में ज़रूर रहते हैं बाक़ी आप देख लीजिए ।” हरीश जी ने कहा 

सुमिता जी के ये सब बताने के बाद राशि उस लड़के निकुंज से मिलने को राजी हो गई … सब कुछ सही देख शादी भी हो गई जो ज़्यादादिखावे से परे थी ।

राशि की ज़िन्दगी उस घर में बहुत ही सुगम चल रही थी ।




राशि की सास सुनंदा जी रिश्तेदारी निभाने उस लड़के के घर जाती रहती थी उनसे ही पता चला कि कुछ महीने के भीतर उस लड़के कीभी शादी हो गई ….बहुत पैसे वाले घर की किसी लड़की से जिन्होंने उस घर का हुलिया ही बदल दिया…. बेटी के शानों शौक़त की सारीचीज़ें और अलग से एक कार भी।

महीने भर बाद ही उस लड़की ने सबका जीना दुर्भर कर दिया था…सास की तो वो जरा ना सुनती … उल्टा वो ही उन्हें चिप करा देती…..लड़के की माँ की माँग पैसा थी और वो लड़की इसी दंभ में सास को जब तब सुनाती रहती आपके घर की शान तो मेरे आने से बनीहै….पहले क्या ही था आपके घर में…. पति कुछ बोलता तो उल्टा उसे सुनाती कि तुम्हें तो समझो पैसे देकर मेरे पिता ने ख़रीद लिया है… मैं तुम्हारी सुनने नहीं आई हूँ…..

राशि की सास को किसी रिश्तेदार ने बताया कि उस लड़के की माँ कह रही थी ,“सुनंदा क़िस्मत वाली निकली जो राशि जैसी बहूमिली…. मैं लड़के की माँ होने का दंभ भर पैसे की माँग कर बैठी और अच्छी बहू खो दी ।”

“ बहू मैं जानती हूँ तुम्हारे लिए ये रिश्ता पहली बार में ज़रूर अजीब लगा होगा कि जब उस घर के एक सदस्य ने मना कर दिया तो मैंकैसे तुम्हें बहू बनाने के लिए तैयार हो गई …. तो बहू उस दिन मुझे जेठानी जी की बात पर सच में बहुत क्रोध आया था पर तब मैं बसतुम्हें देख रही थी….जेठानी जी हमेशा से इस अभिमान में रही की दो बेटों की माँ है वो कभी किसी बेटी के माता-पिता की तरह हाथफैलाकर शादी की बात करने नहीं जाएगी…. बल्कि वो जो माँग करेंगी सब पूरी करेंगे क्योंकि उनके बच्चे अच्छी पोस्ट पर है पर उसवक़्त जब तुमने भाई को जिस तरह से रोका वो क़ाबिले तारीफ़ था क्योंकि इतनी हिम्मत वही कर सकती है जिसे सही गलत की समझहो और तुम तभी मुझे भा गई थी….सच कहती है जेठानी जी मैं सच में क़िस्मत वाली हूँ ।” सुनंदा जी ने कहा और राशि के सिर पर प्यारसे हाथ फेर दी।

आज भी कहीं कही पर ऐसी सोच वाली महिलाएँ मिल जाएगी जो बेटे की माँ होने के अभिमान से भरी रहती है उनकी नज़रों में लड़की केपरिवार की कोई महत्ता नहीं होती…. कई जगहों पर तो ये भी देखने में आया है कि लड़की की माँ लड़के की माँ के पैर तक छूती है ये मेरीनज़र में सही नहीं है आप बताइए आपने भी ऐसा कुछ कहीं देखा है?

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

मौलिक रचना 

#अभिमान

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