माधुर्य – कंचन श्रीवास्तव

रवि के जाने के बाद रेखा बिल्कुल अकेली पड़ गई,पड़ती भी क्यों ना हर वक्त उसी के आगे पीछे जो घूमती रहती ।

उसे तो अंदाजा भी नहीं था कि ऐसा होगा उसकी जिंदगी में ,पर हुआ।

अब मरता क्या न करता अपने किए की सजा तो पानी ही है।

उसे अच्छे से याद है ,जब उसकी शादी हुई , तो सभी उससे बहुत प्यार करते थे पर धीरे धीरे उसके व्यवहार ने उसको सबसे दूर कर दिया।

किसी की बात न बर्दाश्त करना,छोटी छोटी बातों का इशू बनाना, गुस्सा जाना,पलटकर जवाब देना और सबसे बड़ी बात हर बात रवि को बताना , जैसे व्यवहार ने नजदीकियों पर ग्रहण लगा दिया ऐसा नहीं कि एकाएक ये सब हुआ,पहले तो लोगों ने बचपना समझ कर नज़र अंदाज़ किया फिर वो भी तब जब हर बात में दखल अंदाजी उसके पति की भी होने लगी।

अरे कभी कभी तो ऐसा होता कि गलती उसी की होती तो भी वो कभी मां कभी बहन और कभी भाभी पे बरस पड़ता।और आज तो हद ही हो गई,वो बाबू जी पर ही बरस पड़ा।


जो माया के लिए असहनीय रहा।अरे भाई अभी तक तो ठीक है  चलो बात औरतों औरतों के बीच रही।पर आज जब बात घर के मुखिया पर आई तो उससे बर्दाश्त न हुआ।

जो औरत पति को देवता की तरह पूजती हो,उसका जी जान से ख्याल रखती हो,और सबसे बड़ी बात कि उसने घर की बात कभी पति से नहीं बताया। सिर्फ ये सोचकर कि माहौल खराब हो जाएगा।

और परिवार की एकता में बांधा आएगी।वो भला पति की बेइज्जती कैसे बर्दाश्त करती।फिर उसी दिन के व्यवहार से वो उसके मन से जैसे उतर गई।

रह जरूर  रही है पर कुछ मतलब न रखती।

अचानक कुछ महीने बात बेटे का तबादला बाहर हो गया।वो भी ऐसी जगह कि परिवार को लेके जाने लायक रहा ही नहीं,तो उसने यही छोड़ना बेहतर समझा।

फिर तो दो बच्चों के साथ उसे अकेले ही सफर करना पड़ा।

चूंकि बच्चे छोटे थे इसलिए नौकरी भी छोड़नी पड़ी।अब घर में पड़े पड़े वो बोर होने लगी।

काम भी आखिर कितना करती, सुबह  नाश्ता  खाना बनाना और उन्हें ट्यूशन के लिए तैयार करके कोचिंग भेजना, यही काम रह गया।

बाकी सारे कामों के लिए नौकर नौकरानी जो लगा रखे थे।


वहीं सामने वाले घर में भी संयुक्त परिवार रहता है। वहां का सामंजस्य इतना बढ़िया कि क्या कहने बहू और बेटे दोनों नौकरी कर रहे थे और बच्चों को दादी बाबा देखते।जिसे देख इसे बड़ी कोफ्त ( कुढ़न ) होती, कि काश मैंने भी सामंजस्य बिठा कर रखा होता तो रवि के जाने बाद इतना अकेला पन महसूस न होता।

सच आज उसको समझ आया,कि परिवार क्या होता है।

छोटी छोटी बातें नज़र अंदाज़ करने से रिश्तों में माधुर्य बना रहता है।सबसे बड़ी बात एक दूसरे के दिल में जगह बनी रहती है।

फिर फर्जदायी की भावना दिल में नहीं रहती।कि करना मजबूरी है। बल्कि प्रेम की भावना होती है एक दूसरे के लिए मन में।फिर सबसे बड़ी बात अकेलापन महसूस नहीं होता।

जैसा की आज उसे हो रहा ।सच आज उसे ऐसा महसूस हो रहा कि माधुर्य का संबंध त्याग और समझौता तथा खामोशी से है।

स्वरचित

आरज़ू

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