मां बनना सरल नहीं होता… – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

अपनी पहचान खो कर एक नव सृजन करना पड़ता है…

प्रसव गृह की पीड़ा को केवल एक मां हीं समझ सकती है….

प्रसव गृह में चार नर्सें और दो लेडिज जूनियर डाक्टर और एक महिला सर्जन लगातार प्रसूता स्त्री का हौसला बढ़ाए जा रही थीं।

वाह बहुत अच्छा…

 थोड़ी सी और हिम्मत दिखा दो बस… 

अब बस बहुत कम समय में तुम अपने बच्चे को देख पाओगी..

 कोशिश करो … 

दर्द की अधिकता से प्रसूता के होंठ सूखने लगे थे… 

उसने अपने दांतों से होंठों को इतना कह कर भींच लिया था कि होंठों से खून निकल पड़ा… 

सहनशक्ति की अंतिम सीमा पर पहुंच कर उसका हौसला टूटने लगा था… 

हांफते हुए बोली – बस अब और नहीं… 

लेडिज डाक्टर ने फिर से एक बार उसका हौसला बढ़ाते हुए बोली _ बस थोड़ी सी हिम्मत और.. 

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अब अगर तुम रूक गई तो तुम्हारे बच्चे की जान संकट में पड़ सकती है… 

प्रसूता अंतिम बार अपनी पूरी शक्ति के साथ सृजन की तरफ बढ़ चली जाने कब पास खड़ी एक नर्स का हाथ उसके हाथों में आ गया.. 

उसने नर्स के हाथ को पकड़ कर इतनी शक्ति से जोर लगाया कि,

नर्स दर्द से चीख पड़ी…

और अपना हाथ छुड़ाने में असफल वो कसमसा कर रह गई.. 

नर्स का हाथ नीला पड़ गया.. 

उस समय प्रसूता के दर्द का अंदाजा लगाना भी हर किसी के बस की बात नहीं थी.. 

इतने में महिला सर्जन ने पास खड़ी जुनियर डाक्टर से कहा कि चीरा लगाओ नहीं तो बच्चे का सर फंस सकता है.. 

जूनियर ने जैसे हीं चीरा लगाया 

सर्जन फिर से चीख पड़ी.. 

ये क्या किया तुमने इतना बड़ा चीरा लगाने कुछ क्या जरूरत थी?? 

प्रसूता पूरे होशोहवास में ये सारी बातें सुन रही थी उसका मन वितृष्णा से भर उठा ये सोच कर कि यहां कोई मरीज जीवन और मृत्यु से जुझ रहा है मगर जूनियर डॉक्टर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता उसके लिए तो मरीज महज डाक्टरी सीखने का एक जरिया मात्र है… 

चीरा लगते हीं बच्चे के रोने की आवाज आने लगी.. 

अपनी मंजिल पर पहुंच कर प्रसूता धीरे धीरे अपने होश खोने लगी.. 

शरीर की शक्ति क्षीण होने लगी.. 

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आंखें अपने आप बंद होने लगी तभी एक नर्स ने आकर पानी का छींटा मारा और उसके सीने पर लाकर नवजात शिशु को रख दिया… 

नर्स प्रसूता का ध्यान भटकाने के लिए पूछने लगी – अच्छा बताओ तुम्हें लड़का चाहिए था या लड़की??? 

प्रसूता बोली – जो मिल जाए.. 

नर्स ने जब उसके नवजात शिशु जो कि बच्ची थी उसका मुंह दिखाया तो प्रसूता तुरंत हंस पड़ी… 

प्रसूता की जिंदगी के इन कुछ पलों में जो खुशियां आईं थीं उसने उसके गर्भावस्था और प्रसव काल के सारे दुखों को पल भर में हर लिया।सर्जन की घबराहट भरी आवाज ने सबका ध्यान खींच लिया.. 

जो सारे नर्स और जूनियर डाक्टर से कह रही थी.. 

बच्चे का नाल टूट कर अंदर हीं अटका रहे गया है प्रसव पीड़ा की अधिकता और प्रसूता के घबराहट के कारण अक्सर ऐसा हो जाता है तो हमें अब उसे अपने हाथों से हीं खींच कर निकालना पड़ेगा.. 

जल्द से जल्द हमें नाल को बाहर निकालना पड़ेगा वरना मां की जान भी जा सकती है… 

जूनियर डॉक्टर जो कि अभी सीखने के क्रम में थी उसने विवशता से सर्जन को देखा और बोली मैम मुझसे नहीं हो पाएगा ये.. सर्जन ने हाथों पर दास्तानें चढ़ाएं कोई रसायन हाथों पर लगाया और प्रसूता के अंदर से नाल को खींचने का प्रयास करने लगी.. 

प्रसव की असह्य पीड़ा को सहकर प्रसूता में अब इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि इस दर्द को सहन कर सके.. 

इस बार वो पूरी शक्ति से चीख पड़ी.. 

दर्द के मारे चेहरा नीला पड़ गया… 

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अपनी सारी शक्ति लगाकर भी वो 

उस दर्द से नहीं जूझ पा रही थी.. 

दो नर्सों ने उसके दोनों हाथों और दो जूनियर डॉक्टर ने उसके पांव पकड़ रखे थे.. 

सर्जन ने कई बार प्रयास किया और नाल के बस छोटे छोटे टुकड़े हीं निकाल पाई… 

प्रसूता की दर्द भरी चीखों से पूरे प्रसव गृह की दीवारें भी रो पड़ी थीं।

उसने अब तक जितने भी देवी देवताओं के नाम याद किए थे बारी बारी से उन्हें याद कर लिया था फिर भी उसका दर्द कम नहीं हुआ… 

6:30 बजे बच्चे को जन्म देने के बाद रात के नौ बजे तक वो इस असह्य पीड़ा को सहती रही..

बार बार असफल हो कर भी सर्जन पुनः प्रयास करती रही लेकिन वो पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकी…

प्रसव गृह की परिचारिका जब डाक्टर के लिए चाय लेकर आई तो उसने कहा कि मैडम आप चाहें तो मैं प्रयास करूं शायद मैं कर दूं ये कार्य?? 

सर्जन को ये बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी.. 

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उसने परिचारिका से कहा-

हमने इतना कुछ सीखा हुआ है, यहीं हमारा रोज का काम है तब हम असफल हो रहे हैं बार बार तो तुम क्या कर लोगी?? 

परिचारिका बोली – मैडम बुरा मत मानिएगा मैंने काफी सालों तक गांव में दाईं का काम किया है और ऐसे अनेकों मामले मैंने संभाले हैं.. 

मुझे अनुभव है इस कार्य का.. 

आप कृपा कर के मुझे ये कार्य करने दें एक महिला के जीवन और मृत्यु का प्रश्न है आप ज्यादा सोच विचार ना करें… 

सर्जन ने तुरंत उसे आज्ञा दिया.. 

परिचारिका ने हाथों में दस्ताने पहने और एक विशेष शैली में प्रसूता के अंदर हाथ डाल कर नाल को खिंच लिया… 

नाल के साथ रक्त का एक सैलाब फुट पड़ा.. 

प्रसूता अपनी पूरी शक्ति से चीख पड़ी.. 

डाक्टर और नर्स सब दौड़ पड़ी और रूई और सूती कपड़े का एक बंडल रख दिया वहां… 

कुछ पल में हीं प्रसूता के रक्त से वो सब सराबोर हो गये…  

डाक्टर के अथक प्रयास के बाद भी खून का गिरना बंद नहीं हुआ… 

दो नर्सें लगातार प्रसूता के चेहरे पर पानी का छींटा मारा रही थी… 

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सर्जन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था… 

वो बोल रही थी नर्स कुछ भी करिए लेकिन इसे बेहोश होने से रोकिए वरना ये कोमा में चली जाएगी… 

प्रसूता के एक हाथ में पानी और दूसरे में खून की बोतल लगाई गई… 

डाक्टर खून को रोकने का हर संभव प्रयास कर रहे थे.. 

लगभग तीन घंटे के अथक प्रयास और ईश्वरीय कृपा से खून का बहाव रोका जा सका… 

प्रसूता का चेहरा पीला पड़ चुका था… 

हृदय की धड़कनों के सिवा सब-कुछ रूका हुआ था.. 

इसके आगे की कहानी लिखने की मुझमें हिम्मत नहीं है और शायद आप में पढ़ने की भी नहीं….

शून्य में निहारती हुई सोच रही थी कि कितनी आसानी से हर बार वो मां को कह दिया करती थी कि मां तुमने मेरे लिए किया हीं क्या है।

डोली पाठक 

पटना बिहार

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