माँ मैं आपकी बेटी नहीं हूं – चाँदनी झा 

गायत्री ने महसूस किया, उसकी बेटी कुछ खोयी-खोयी सी है कुछ दिनों से, क्या बात है?? नीतिका वैसे हमेशा खुश और बिंदास रहनेवाली है। नीतिका अकेले जाकर खिड़की से बाहर निहारने लगती कभी। तो कभी अपने कमरे को बंद कर लेट जाती। कॉलेज भी जाना बंद कर दिया था। एक-दो दिन तो अंजनी ने नीतिका के मनोभाव को ठीक से महसूस करने की कोशिश किया। अपने स्तर से पता लगाने की कोशिश की, क्या बात है? लेकिन आज नीतिका से पूछ ही लिया। 1….2…..3 किसने लिया मेरी बेटी का मुस्कान छीन?? कुछ नहीं माँ, नीतिका ने उखड़े से जवाब दिया। कोई बात नहीं माँ। अरे, मैं मां हूं। मैं सब समझ सकती हूं। मेरी बेटी उदास है, क्या बात है? मां से तो शेयर करो।

गायत्री नीतिका से प्यार से पूछने की कोशिश कर रही थी। पर, नीतिका कुछ भी बताना नहीं चाह रही थी।

आखिर माँ उसके कंधे पर हाथ रखकर, कमरे तक लाती है। और बेटी का सर गोद में रखकर पूछती है, बता नीतिका, क्या बात है?? तेरी उदासी का कारण क्या है??

 

 

नीतिका दो बहन है, नीतिका और श्रेया । श्रेया  अभी दसवीं में है। और नीतिका स्नातक कर रही है।

पापा ज्यादातर ऑफिस के कार्य में व्यस्त रहते हैं। नीतिका अपनी माँ से जुड़ी है, पर उतना भी नहीं, जितनी आजकल की लड़कियां खुलेआम सबकुछ शेयर करती है।  या कोई झिझक, या कोई सवाल निडरता से कर सके। पर अंजनी के दवाब देने और प्यार से पूछने पर नीतिका दूर हटकर चिल्लाकर बोलने लगी, माँ मैं आपकी बेटी नहीं हूं, आपने मुझसे यह राज क्यों छिपाया? नीतिका गायत्री की बहन की बेटी थी, पर जन्म देते ही माँ गुजर गयी। और गायत्री अपने ससुराल से दूर अपने पति के साथ, जहाँ वह नौकरी करते थे वहीं रहती थी।



 तो बिन माँ की बच्ची को गायत्री अपने पास ले आई, और मासी से माँ बन गयी। ससुराल ज्यदातर नहीं जाती थी, गायत्री। और जाती भी थी तो बचपन में होस्टल में रहती थी नीतिका। कभी भी अपने सामाज में नीतिका का रहना नहीं हुआ। श्रेया  के मन में अहं की भावना, और नीतिका के मन में, दुःख का भाव न जन्म ले, इसलिए अंजनी ने हकीकत से सबको अंजान रखा था।

लेकिन नीतिका के कॉलेज में एक गुमनाम पत्र आया जिसमें सारी बातों का जिक्र था। वो भी अंजनी की बुराइयों से भरी। नीतिका को यक़ी न हुआ। लेकिन वह खोयी-खोयी और गुमसुम रहने लगी। चिल्लाते हुए नीतिका को पकड़कर, अंजनी ने कहा, मान लो आज जो सच तुम्हें पता चला है?

पता नहीं चलता? तो तुम्हें कभी कोई अंतर महसूस हुआ है? कि मैंने तुम्हारे और श्रेया  के साथ दो जैसा व्यवहार किया है? नहीं। तो फिर किसी बात से तुम क्यों परेशान हो रही हो?  यह बात सच है कि तुम 3 दिन की ही थी तो तुम्हारी मां नहीं रही। तुम्हारी मां मेरी छोटी बहन थी। और मैंने अपनी छोटी बहन के रूप में तुझे अपने पास रख लिया। तुम मेरी बहन भी हो बेटी भी हो। मेरी जीने की इच्छा हो। मुझे ममता का एहसास कराया। सब कुछ तुम हो मेरी। श्रेया  तो बाद में आई है, नीतिका ने कहा तो यह बात फिर मुझसे क्यों छुपाया आपने? मुझे लेकर शर्म महसूस कर रही थी? 

क्योंकि आपने कहा है सच्चाई कभी नहीं छुपानी चाहिए। ऐसी बात नहीं है, नीतिका बस, सब सच्चाई बताने का एक निश्चित वक्त होना चाहिए। आपने मुझे अब तक क्यों नहीं बताया था? मैं तुम्हारे 21 बर्थडे पर सब कुछ बताने वाली थी। लेकिन तुम्हें किसी और ने बताया, वह भी उल्टा सीधा। तो तुम बेटा इतनी समझदार तो जरूर हो गई हो? सच्चाई और गलत में फर्क महसूस कर सकती हो। कहकर अंजनी उठ कर चली गई। कुछ देर तक नीतिका अकेले सोचती रही। और उसे समझ आ गया कि मेरा अतीत कुछ भी था, लेकिन मेरा वर्तमान यही है। कि, यही मेरी मां है, श्रेया  मेरी बहन है, और पापा मेरे पापा हैं। अन्य सारी बातों से मुझे कोई लेना देना नहीं रहना चाहिए। उसने उस गुमनाम पत्र को फाड़ दिया। और उठकर मां से प्यार जताने चली गई। नीतिका का दिल साफ हो चुका था। गायत्री ने भी गले लगाकर चूम लिया नीतिका को। गायत्री ने भी महसूस किया कि, आज उसका एक बोझ उतर गया। मेरी बेटी मेरे और करीब आ गयी।

लेखिका 

चाँदनी झा 

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